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Jharkhand Sanskrit College: भगवान भरोसे देव भाषा संस्कृत! आचार्य से लेकर वेद, ज्योतिष तक की पढ़ाई हुई ठप

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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Sep 1, 2023, 8:42 AM IST

Updated : Sep 1, 2023, 9:05 AM IST

Teachers and staff not appointed in Sanskrit colleges in Jharkhand for 30 years
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झारखंड में संस्कृत कॉलेज में 30 साल से शिक्षक और कर्मचारियों की नियुक्ति नहीं हुई है. बदहाली का आलम ऐसा है कि प्रदेश में आचार्य से लेकर वेद और ज्योतिष की पढ़ाई भी पूरी तरह से ठप हो गयी है.

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रांचीः जो भाषा अन्य भारतीय भाषा की जननी कही जाती है, आज वही पौराणिक भाषा झारखंड में दम तोड़ रही है. हम बात कर रहे हैं देव भाषा संस्कृत की जो आज प्रदेश में हाशिए पर है. इस भाषा के उन्नयन के लिए संयुक्त बिहार के समय में खोले गए स्कूल-कॉलेज आज बंद होने के कगार पर हैं.

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हालत यह है कि संस्कृत कॉलेजों में विगत 30 वर्षों से एक भी शिक्षक या कर्मचारियों की नियुक्ति नहीं हुई है, ऐसे में राज्य में आचार्य की पढ़ाई बंद हो चुकी है. आचार्य करने के लिए छात्रों को वाराणसी, दरभंगा, इलाहाबाद जैसे जगहों के लिए रुख करना पड़ता है. स्थिति की गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि राजधानी की नाक के नीचे 100 वर्ष से ज्यादा समय से चल रहा संस्कृत कॉलेज में मात्र दो शिक्षक हैं, जिसमें एक प्राचार्य और एक सामान्य संस्कृत विषय के अध्यापक हैं.

ऐसे में आधा दर्जन से अधिक विषय की पढ़ाई शिक्षक के अभाव में बंद हो चुके हैं. जिन विषयों की पढ़ाई बंद हो चुकी है, उसमें व्याकरण, ज्योतिष, आगम, वेद जैसे विषय शामिल हैं. कॉलेज के प्राचार्य राम नारायण पंडित के अनुसार इस कॉलेज में 10 स्वीकृत पद हैं, जिसमें मात्र दो कार्यरत हैं, जिसमें एक प्राचार्य हैं. स्वभाविक रुप से शिक्षकों के अभाव में इन विषयों में नामांकन नहीं लिया जाता है.

झारखंड में संस्कृत विश्वविद्यालय का अभावः झारखंड में संस्कृत की पढ़ाई को लेकर उदासीनता का आलम यह है कि राज्य गठन के 23 वर्षों में एक भी संस्कृत विश्वविद्यालय नहीं है. अगर बात करें संस्कृत कॉलेज की तो राज्य में 6 संस्कृत कॉलेज हैं, जिनमें तीन अंगीभूत हैं और तीन मान्यता प्राप्त हैं. मान्यता प्राप्त संस्कृत कॉलेज रांची, देवघर और चाईबासा में हैं, वहीं एफिलिएटेड संस्कृत कॉलेज देवघर, डाल्टनगंज और रांची में हैं. इन सभी संस्कृत कॉलेज का संचालन विनोबा भावे विश्वविद्यालय हजारीबाग के द्वारा होता है.

इसी तरह राज्य के संस्कृत स्कूलों का भी हाल है, जहां शिक्षकों की कमी की वजह से शैक्षणिक कार्य ठप होने के कगार पर है. संस्कृत आचार्य शैलेश कुमार मिश्र का मानना है कि संस्कृत शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए शिक्षकों की नियुक्ति के साथ-साथ व्यापक प्रचार प्रसार करने की आवश्यकता है. यह भाषा रोजगारपरक भाषा में से एक है जिसका लंबा इतिहास है. मगर शैक्षणिक माहौल बनाने के लिए तो शिक्षक देना ही होगा. अंतरराष्ट्रीय मैथिली परिषद के प्रदेश महासचिव और सामाजिक कार्यकर्ता अजय झा कहते हैं कि राज्य में संस्कृत दिवस तभी खास होगा जब हम संस्कृत के साथ न्याय करेंगे. स्कूल कॉलेजों में रिक्त पड़े पदों पर बहाली के लिए जल्द ही एक शिष्टमंडल राज्यपाल से मिलकर इस संबंध में मांग करेगा.

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Last Updated :Sep 1, 2023, 9:05 AM IST
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