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जानिए, रांची के बाजार में क्यों महंगा बिक रहा है गन्ना

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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Oct 23, 2023, 5:26 PM IST

रांची में दुर्गा पूजा को लेकर गन्ना की बिक्री जोरों पर हो रही है. नवरात्रि पूजा में गन्ना का उपयोग किया जाता है. महानवमी और विजयादशमी को गन्ना को प्रसाद के रूप में देवी मां को समर्पित किया जाता है. Sugarcane sales increased in Ranchi.

Sugarcane sales increased in Ranchi due to Navratri 2023
रांची में दुर्गा पूजा को लेकर गन्ना की बिक्री बढ़ी

रांची में दुर्गा पूजा को लेकर गन्ना की बिक्री जोरों पर

रांची: शारदीय नवरात्रि में आज मां दुर्गा के नवें स्वरूप मां सिद्धिदात्री की आराधना की गयी. कुंवारी कन्या का पूजन भी किया गया. वहीं अब विजयादशमी और दशहरा की तैयारी भी शुरू हो गयी है. उत्साह भरे इस माहौल में और अधिक मिठास भरने के लिए राजधानी रांची के चौक चौराहों पर नए फसल के रूप में बड़ी संख्या में गन्ने के दुकान सजी हैं. रांची के ग्रामीण इलाके में गन्ना उपजाने वाले किसान मानसून बाद अपनी पहली फसल के रुप में गन्ना की बिक्री कर रहे हैं, जिसकी अच्छी कीमत भी मिल रही है.

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गन्ना की धार्मिक मान्यता और किवदंतियांः जानकर बताते हैं कि महानवमी और विजयादशमी को गन्ना को प्रसाद के रूप में देवी मां को समर्पित करने की परंपरा रही है. अरगोड़ा की शांति देवी महंगा होने के बावजूद गन्ना खरीदने के बाद ईटीवी भारत से कहा कि इसका प्रसाद के रूप में उपयोग होता है. उन्होंने कहा कि ताजा फल के रूप में कटा हुआ गन्ना देवी देवताओं को बेहद पसंद है. इसलिए श्रद्धालु इसे प्रसाद के रूप में मां को अर्पित कर फिर प्रसाद के रूप में इसका उपयोग करते हैं. रांची के बाजार में अभी गन्ना 30 से 40 रुपया प्रति पीस बिक रहा है.

रांची शहर से 40-45 किलोमीटर दूर चान्हो इलाके से गन्ना लाकर बेच रहे युवा किसान कहते हैं कि धार्मिक मान्यता की अधिक जानकारी उन्हें नहीं है. लेकिन यह सही है कि दुर्गा पूजा और रावण दहन में लगने वाले मेले में उन्हें अच्छा बाजार मिल जाता है. इसलिए किसान और कुछ व्यवसायी शहर लाकर गन्ना बेचते हैं.

एक वजह यह भीः एक मान्यता यह भी है कि गन्ना एक नई फसल के रूप में किसानों के साथ साथ मां के भक्तों के जीवन में खुशहाली लाये इसकी कामना की जाती है. मां के भक्तों के जीवन में कभी कष्ट न आये और मिठास ही मिठास हो इसी कामना के साथ गन्ने का उपयोग प्रसाद के रूप में किया जाता है. इस दौरान इसकी भी कोशिश रहती है कि स्थानीय लोगों द्वारा उपजाए गन्ने का ही ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल हो.

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