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झारखंड में राष्ट्रीय पार्टियों के प्रवक्ता हाशिए पर, बड़े नेता कर रहे हकमारी, झामुमो में वन मैन शो, पढ़ें रिपोर्ट

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Published : Mar 28, 2022, 2:05 PM IST

झारखंड में राजनीतिक पार्टियों के प्रवक्ता हाशिए पर हैं. बीजेपी, कांग्रेस, जेएमएम, आजसू, आरजेडी कमोबेश सबकी स्थिति एक जैसी है. सभी पार्टियों के बड़े नेता खुद ही सभी मसलों पर पार्टी का स्टैंड क्लियर कर रहे हैं. राजनीतिक विशेषज्ञ इसके लिए पार्टी में सक्रियता दिखाने के लिए मची होड़ को जिम्मेवार बता रहे हैं.

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झारखंड में राष्ट्रीय पार्टियों के प्रवक्ता

रांची: राजनीतिक पार्टियों की गतिविधि को गति देने में प्रवक्ताओं की अहम भूमिका होती है. इसी वजह से सभी पार्टियों में प्रवक्ता रखे जाते हैं. इनका काम है, पार्टी, सरकार और जनता के बीच मीडिया के माध्यम से संवाद स्थापित करना. आम लोगों की समस्याओं को निदान तक पहुंचाने के लिए आवाज उठाना . सरकार की खामियों और खासियत से जनता को अवगत कराना. लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि झारखंड में सक्रिय पार्टियों के प्रवक्ता हाशिए पर हैं. राष्ट्रीय पार्टियों के प्रवक्ताओं की स्थिति तो और भी विचित्र बनी हुई है. किसी भी मुद्दे पर जब ब्रिफिंग की बात आती है तो बड़े नेता उसे लपक लेते हैं. अनुशासन की कसौटी पर खरा कही जाने वाली भाजपा की झारखंड ईकाई की स्थिति भी कमोबेश वैसी ही है. प्रवक्ताओं का काम हो गया है प्रेस कांफ्रेंस के वक्त अपने नेताओं का परिचय कराना.

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बीजेपी में प्रवक्ताओं की स्थिति: पहले प्रदेश बीजेपी प्रवक्ताओं की स्थिति पर नजर डाल लेते हैं. इस पार्टी में प्रतुल शाहदेव, प्रदीप सिन्हा, रंजीत कुमार चंद्रवंशी, मिसफिका हसन, अशोक बड़ाईक, अविनेश कुमार, कुणाल षाड़ंगी और अमित कुमार सिंह प्रवक्ता की भूमिका में हैं. लेकिन क्या मजाल कि झारखंड के बड़े राजनीतिक मसलों पर इनमें से कोई भी प्रेस कांफ्रेस बुला ले या फिर अपने नाम से प्रेस रिलीज जारी कर दे. यह काम खुद पार्टी के वरिष्ठ नेता करने लगे हैं. प्रदेश भाजपा अध्यक्ष दीपक प्रकाश और विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी में तो प्रेस कांफ्रेंस करने और विज्ञप्ति जारी करने की होड़ सी मची हुई है.

पिछले फरवरी माह में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष दीपक प्रकाश की तरफ से कुल 31 प्रेस रिलीज जारी किए गये हैं. इनमें कुछ प्रेस कांफ्रेंस भी शामिल हैं. जबकि विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी के नाम से कुल चार प्रेस रिलीज/प्रेस कांफ्रेस किए गये हैं. पार्टी के आठ प्रवक्ताओं में से पूरे फरवरी माह में सिर्फ अविनेश कुमार के नाम से एक विज्ञप्ति जारी हुई है. इसके अलावा केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा की तरफ से दो रिलीज और राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रघुवर दास की ओर से एक प्रेस कांफ्रेंस किया गया है. यह बताने के लिए काफी है कि प्रदेश भाजपा में प्रवक्ता किस हाल में हैं.

कांग्रेस में भी हाशिए पर प्रवक्ता: झारखंड की सत्ता में शामिल कांग्रेस की स्थिति तो और भी अजीबो गरीब हो गई है. पिछले साल अगस्त माह में रामेश्वर उरांव की जगह राजेश ठाकुर को प्रदेश की कमान सौंपी गई थी. उनका हाथ मजबूत करने के लिए गीता कोड़ा, बंधु तिर्की, जलेश्वर महतो और शहजादा अनवर को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया. फिर राजेश ठाकुर ने राकेश कुमार सिन्हा, राजीव रंजन प्रसाद, सतीश मुंजनी, राकेश किरण महतो, आभा सिन्हा, डॉ मंजू कुमारी, ईश्वर आनंद और मो.तौसीफ को कांग्रेस का प्रवक्ता बनाया. लेकिन क्या मजाल की इनमें से कोई प्रवक्ता प्रेस कांफ्रेस बुला ले. पूरे फरवरी माह के दौरान कांग्रेस के किसी भी प्रवक्ता की ओर से प्रेस कांफ्रेस नहीं बुलाया गया. कार्यकारी अध्यक्ष बंधु तिर्की ने एक पीसी की भी तो अपने आवास पर. हालाकि कांग्रेस प्रभारी आरपीएन के भाजपा में जाने और अविनाश पांडेय को प्रदेश प्रभारी की कमान मिलने के बाद पूरे फरवरी माह में पार्टी अलग ही मोड में रही. वैसे पूर्व में भी इस पार्टी के प्रवक्ता शायद ही कभी प्रेस कांफ्रेस किए हों.

जेएमएम में वन मैन शो: इस मामले में मुख्य सत्ताधारी दल झामुमो का स्टैंड सबसे अलग है. इस पार्टी में सिर्फ एक शख्स हैं जो समूचे विपक्ष के सवालों का जवाब देते हैं यानी वन मैन शो. उनका नाम है सुप्रीयो भट्टाचार्य. 18 दिसंबर 2021 के बाद से पार्टी के केंद्रीय कार्यकारिणी की घोषणा नहीं होने के बावजूद पूर्व केंद्रीय महासचिव सह प्रवक्ता की हैसियत से पार्टी की बात रखते हैं. भाजपा और आजसू के हर हमले का जवाब प्रेस कांफ्रेंस के जरिए देते हैं. सत्ताधारी दलों में आने वाले हर गतिरोध पर पार्टी का स्टैंड क्लियर करते हैं.

आजसू में सब सुदेश के भरोसे: आजसू में भी वन मैन शो वाला हिसाब किताब है. देवशरण भगत को आजसू के प्रवक्ता की जिम्मेदारी तो जरूर मिली है. लेकिन ज्यादातर प्रेस कांफ्रेस और प्रेस रिलीज पार्टी सुप्रीमों सुदेश महतो के हवाले से ही होता है. इस मामले में सत्ता में शामिल राजद की बात तो बिल्कुल निराली है. यहां तो पता ही नहीं चलता कि किस पदाधिकारी के पद के आगे कब पूर्व शब्द लग जाए. वैसे यहां भी प्रवक्ताओं को तरजीह नहीं मिलती है.

इस मसले पर पार्टियों के प्रवक्ताओं की ऑफ द रिकॉर्ड भावना ऐसी है कि जिक्र करने भर से पार्टी में भूचाल आ जाएगा. राष्ट्रीय पार्टियों के प्रवक्ताओं का तो कहना है कि अगर राष्ट्रीय अध्यक्ष ही सारे प्रेस कांफ्रेस करने लगें या रिलीज जारी करवाने लगें तो कैसा लगेगा. जानकार कहते हैं कि हर पार्टी में अब सक्रियता दिखाने की होड़ सी मची हुई है. इसी वजह से प्रवक्ताओं को दरकिनार किया जा रहा है. जबकि प्रवक्ताओं का काम है हर मुद्दों का बारीकी से अध्ययन कर आरोप या प्रत्यारोप की दिशा तय करना.

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