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मुंबई की विशेष अदालत ने फादर स्टेन स्वामी की जमानत याचिका की खारिज, भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में जेल में हैं बंद

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Published : Mar 22, 2021, 10:29 PM IST

मुंबई की एक विशेष अदालत ने एल्गार परिषद मामले में गिरफ्तार ट्राइबल राइट एक्टिविस्ट स्टेन स्वामी की जमानत याचिका खारिज कर दी है. वह पिछले पांच महीनों से तलोजा सेंट्रल जेल में बंद हैं. एनआईए के मुताबिक भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में फादर स्‍टेन स्‍वामी की भूमिका काफी अहम थी.

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स्टेन स्वामी

रांची: मुंबई की एक विशेष अदालत ने सोमवार को एल्गार परिषद मामले में गिरफ्तार ट्राइबल राइट एक्टिविस्ट स्टेन स्वामी की जमानत याचिका खारिज कर दी. रांची निवासी 83 वर्षीय फादर स्टेन स्वामी पिछले पांच महीनों से तलोजा सेंट्रल जेल में बंद हैं. एनआईए ने स्वामी को 7 अक्टूबर को रांची से गिरफ्तार किया था. अगले दिन उन्हें मुंबई ले जाया गया और उनके सात अन्य लोगों के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया गया. वो तब से न्यायिक हिरासत में हैं. एनआईए के मुताबिक भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में फादर स्‍टेन स्‍वामी की भूमिका काफी अहम थी.

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स्टेन स्वामी पर आरोप है कि वह प्रतिबंधित संगठन CPI (माओवादी) के सदस्य हैं और फ्रंटल संगठन (PPSC ) के संयोजक हैं. स्वामी सक्रिय रूप से इसकी गतिविधियों में शामिल रहते हैं. संगठन का काम बढ़ाने के लिए उन्होंने एक सहयोगी के माध्यम से पैसे हासिल किए. CPI (माओवादी) का प्रोपेगेंडा फैलाने, इसकी प्रचार सामग्री और साहित्य उनके कब्जे से मिला था.


क्या है पूरा मामला
कोरेगांव-भीमा गांव में 1 जनवरी 2018 को दलित समुदाय के लोगों का एक कार्यक्रम आयोजित हुआ था. कुछ दक्षिणपंथी संगठनों ने इस कार्यक्रम का विरोध किया था. एल्गार परिषद के सम्मेलन के दौरान इस इलाके में हिंसा भड़की थी. भीड़ ने वाहनों में आग लगा दी और कई दुकानों, मकानों में तोड़फोड़ की थी. हिंसा में एक शख्स की जान चली गई और कई लोग जख्मी हो गए थे. इस हिंसा में माओवादी कनेक्शन भी सामने आया था. महाराष्ट्र पुलिस ने इस मामले में कई लोगों को गिरफ्तार किया था. इसमें स्टेन स्वामी और कई अन्य कार्यकर्ता शामिल हैं.

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कौन है स्टेन स्वामी
स्टेन स्वामी को सामाजिक और मानवाधिकार कार्यकर्ता के रूप में जाने जाते हैं. झारखंड में चल रहे जल, जंगल, जमीन, विस्थापन जैसे आंदोलन को उन्होंने बौद्धिक समर्थन दिया. फादर स्टेन स्वामी 60 के दशक में तमिलनाडु के त्रिचि से झारखंड पादरी बनने आए थे. थियोलॉजी (धार्मिक शिक्षा) पूरी करने के बाद वह पुरोहित बने, लेकिन ईश्वर की सेवा करने के बजाय उन्होंने आदिवासियों और वंचितों के साथ रहना चुना.

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