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दांतों की लौट सकती है प्राकृतिक रंगत, नई पद्धति से न घिसने की जरूरत, न सर्जरी की

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Published : Sep 14, 2021, 12:15 PM IST

रिम्स डेंटल कॉलेज में राज्य दंत परिषद एवं इंडियन डेंटल एसोसिएशन के सहयोग से सेमिनार का आयोजन किया गया. इसमें चिकित्सकों और छात्रों को दंत चिकित्सा की नई पद्धति की जानकारी दी गई.

RIMS Dental College Seminar
रिम्स डेंटल कॉलेज में सेमिनार

रांची: गुटखा, खैनी, जर्दा के इस्तेमाल से यदि दांतों की रंगत चली गई है तो भी घबराने की जरूरत नहीं. अब नई पद्धति से इनकी प्राकृतिक रंगत लौटाई जा सकती है. वो भी दांतों को बगैर घिसे और सर्जरी के. यानी की पीले और काले दांतों से आपको छुटकारा मिल सकता है. यह कहना है दंत चिकित्सकों का.

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ब्लीचिंग से सफाई

रिम्स डेंटल कॉलेज में राज्य दंत परिषद एवं इंडियन डेंटल एसोसिएशन के सहयोग से दंत चिकित्सकों के लिए बीते दिन एक सेमिनार का आयोजन किया गया. इसमें राज्य के दंत चिकित्सकों को इलाज की नई पद्धति के बारे में जानकारी दी गई. सेमिनार में मौजूद दंत चिकित्सक डॉक्टर हर्ष मयंक ने बताया कि नई चिकित्सा पद्धति में ब्लीचिंग से ही दांतों की सफाई की जा सकती है. इसमें किसी भी प्रकार से मरीज के दांतों को नुकसान नहीं होता है.

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सहमति पत्र भी जरूरी

सेमिनार में चिकित्सकों को जानकारी दे रहे डॉ. रोहित अग्रवाल ने डेंटल कॉलेज के छात्रों और चिकित्सकों को बताया कि आज की तारीख में मरीज और डॉक्टर के बीच सामंजस्य बनाने के लिए सहमति पत्र बहुत जरूरी है. सहमति पत्र से डॉक्टर्स को इलाज करने में आसानी होती है. साथ ही मरीज और डॉक्टर के बीच इलाज की जानकारी का भी आदान-प्रदान हो जाता है.

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राज्य दंत मंत्रिपरिषद के रजिस्ट्रार डॉ. सुशील कुमार ने कहा कि इस तरह के आयोजन से चिकित्सकों में नई ऊर्जा का संचार होता है. साथ ही राज्य के चिकित्सकों को नई पद्धतियों की जानकारी प्राप्त होती है. वहीं उन्होंने कहा कि इस तरह के आयोजन को आगे भी किया जाएगा ताकि डेंटल कॉलेज के छात्रों एवं चिकित्सकों को समय-समय पर नई पद्धति के बारे में जानकारी मिलती रहे.

कैविटी को लेकर संवेदनशील हुए लोग

सेमिनार की आयोजक जेएल मोरिसोन इंडिया लिमिटेड के रीजनल हेड मनीष दत्त बताते हैं कि कोरोना काल के दौरान लोग ओरल कैविटी को लेकर काफी संवेदनशील हो गए हैं. क्योंकि कोरोना वायरस संक्रमण ज्यादातर मुंह के माध्यम से ही फैलता है इसीलिए ओरल हाइजीन बहुत जरूरी है.

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