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लालू यादव का 74वां जन्मदिन, तीन साल बाद राबड़ी आवास में जश्न

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Published : Jun 11, 2021, 7:57 PM IST

राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव आज अपना 74वां जन्मदिन मना रहे हैं. उनका जन्म 11 जून 1948 को हुआ था. पिछले तीन दशक से बिहार की राजनीति लालू यादव के आसपास घूम रही है. लालू ने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत पटना यूनिवर्सिटी से 1970 में की थी.

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74 के हुए लालू

पटना: राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव आज अपना 74वां जन्मदिन मना रहे हैं. उनका जन्म 11 जून 1948 को हुआ था. चारा घोटाला के मामले में सजा पाने के चलते लालू यादव जेल में बंद थे, जिसके चलते तीन साल से उनके परिवार के लोग और समर्थक उत्साह के साथ जन्मदिन नहीं मना रहे हैं. जमानत मिलने के बाद लालू जेल से बाहर हैं.

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लालू यादव का जन्मदिन

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लालू यादव दिल्ली में अपनी बेटी के घर रहकर स्वास्थ्य लाभ ले रहे हैं. वहीं, उनके जन्मदिन के मौके पर परिजन और समर्थक पटना से लेकर दिल्ली तक जश्न मना रहे हैं. जश्न की तैयारी गुरुवार से ही शुरू हो गई थी. पटना से लेकर दिल्ली तक राजद कार्यकर्ताओं ने पोस्टर लगाए थे.

लालू का राजनीतिक सफर
पिछले तीन दशक से बिहार की राजनीति लालू यादव के आसपास घूम रही है. लालू ने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत पटना यूनिवर्सिटी से 1970 में की थी. वह पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ (PUSU) के महासचिव के रूप में चुने गए थे. 1973 में पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष बने.

जेपी आंदोलन में हुए थे शामिल
लालू 1974 में भ्रष्टाचार और बेरोजगारी के खिलाफ जेपी के नेतृत्व वाले छात्र आंदोलन में शामिल हुए थे. 29 साल की उम्र में वह उस समय भारतीय संसद के सबसे कम उम्र के सदस्यों में से थे. 1980 के लोकसभा चुनाव में हार गए.

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1980 पहली बार पहुंचे विधानसभा
1980 में लोकसभा चुनाव हारने के बाद लालू राज्य की राजनीति में सक्रिय हो गए. उसी वर्ष विधानसभा के सदस्य के रूप में चुने गए. उन्होंने 1985 में फिर से चुनाव जीता. पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर की मृत्यु के बाद कई पसंदीदा विपक्षी नेताओं को दरकिनार करते हुए वे 1989 में विधानसभा में विपक्षी दल के नेता बने, लेकिन उसी वर्ष उन्होंने फिर से लोकसभा में अपनी किस्मत आजमाई जिसमें वे सफल रहे. 1989 के भागलपुर दंगों के बाद लालू प्रसाद यादव जाति के एकमात्र नेता बन गए, जिन्हें कांग्रेस का वोट बैंक माना जाता है. उन्हें मुसलमानों का भी व्यापक समर्थन था. फिर उन्होंने वीपी सिंह के साथ मिलकर मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करना शुरू कर दिया.

1990 में सीएम बने, आडवाणी का रोका रथ
1990 में लालू प्रसाद बिहार के मुख्यमंत्री बने. 23 सितंबर 1990 को उन्होंने राम रथ यात्रा के दौरान समस्तीपुर में लालकृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार किया और खुद को धर्मनिरपेक्ष नेता के रूप में पेश किया. उस दौरान राजनीति में पिछड़े समाज को साधने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी. उसी समय मंडल आयोग की सिफारिशें भी लागू की गईं और राज्य में अगड़े-पिछड़े की राजनीति अपने चरम पर पहुंच गई. 1995 में उन्होंने भारी बहुमत से चुनाव जीता और फिर से सीएम बने.

पत्नी राबड़ी को बनाया सीएम
5 जुलाई 1997 में शरद यादव के साथ मतभेदों के कारण उन्होंने जनता दल से अलग राष्ट्रीय जनता दल का गठन किया. लालू प्रसाद यादव के सत्ता में लौटते ही चारा घोटाला सामने आया. अदालत के आदेश पर मामला सीबीआई के पास गया और सीबीआई ने 1997 में उनके खिलाफ चार्जशीट दायर की. इसके बाद लालू को सीएम पद से हटना पड़ा. उन्होंने पत्नी राबड़ी देवी को सत्ता सौंप दी और चारा घोटाले में जेल चले गए.

2005 में चली गई सत्ता
1998 में केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में सरकार बनी. दो साल बाद जब 2000 में बिहार विधानसभा का चुनाव हुआ तो राजद अल्पमत में आ गया. नीतीश कुमार ने तब बिहार के सीएम के रूप में शपथ ली, लेकिन बहुमत न होने से नीतीश कुमार ने सात दिनों के भीतर इस्तीफा दे दिया. उसके बाद राबड़ी देवी फिर से मुख्यमंत्री बनीं. कांग्रेस के सभी 22 विधायक, जिन्होंने उनका समर्थन किया, उनकी सरकार में मंत्री बने, लेकिन राजद सरकार 2005 में बिहार विधानसभा चुनाव हार गई और नीतीश कुमार ने बिहार की बागडोर संभाली.

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रेलवे मंत्री के तौर पर किया काम
2004 के लोकसभा चुनाव में लालू प्रसाद एक बार फिर 'किंग मेकर' की भूमिका में आए. वह यूपीए-1 की केंद्र सरकार में रेल मंत्री बने. यह उनके कार्यकाल के दौरान था कि रेल सेवा, जो दशकों से घाटे में थी, फिर से लाभ में आ गई. इसके साथ भारतीय रेलवे का कायाकल्प भारत के सभी प्रमुख प्रबंधन संस्थानों के साथ-साथ दुनिया भर के बिजनेस स्कूलों में लालू के कुशल प्रबंधन के कारण शोध का विषय बन गया. बड़े संस्थानों ने उन्हें संबोधित करने के लिए आमंत्रित किया.

केंद्र की राजनीति में पकड़ हुई ढीली
2009 से लालू के बुरे दिन शुरू हो गए. इस साल के लोकसभा चुनाव में लालू प्रसाद की पार्टी के केवल चार सांसद ही जीत सके. नतीजा यह हुआ कि लालू को केंद्र सरकार में जगह नहीं मिली. यहां तक कि कांग्रेस जो समय-समय पर लालू को बचाती रही, उसे इस बार भी नहीं बचा पाई. दागी जनप्रतिनिधियों की रक्षा करने वाला अध्यादेश खटाई में पड़ गया और लालू का राजनीतिक भविष्य अधर में लटक गया.

चारा घोटाला मामला में सजा
3 अक्टूबर 2013 को सीबीआई स्पेशल कोर्ट ने लालू प्रसाद को लगभग 17 साल तक चले चारा घोटाले मामले में पांच साल की कैद और 25 लाख रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई. चारा घोटाले के दूसरे केस में देवघर कोषागार से 89.27 लाख का घोटाला मामला में सीबीआई की विशेष अदालत में 2017 में सजा मिली. चारा घोटाले के तीसरे केस में चाईबासा कोषागार से 37.62 करोड़ के घोटाला मामले में 2018 में सजा हुई. चारा घोटाले के चौथे केस में दुमका कोषागार से 3.97 करोड़ के घोटाला मामले में 2018 में सजा मिली. चारा घोटाले के पांचवें केस में डोरंडा राजकोष से 184 करोड़ के घोटाला मामला में सीबीआई कोर्ट में सुनवाई चल रही है.

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