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आर्मी जमीन पर कब्जा कर मल्टीप्लेक्स बना करोड़ों की कमाई का था सपना, कारोबारी विष्णु अग्रवाल से ईडी करेगी पूछताछ

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Published : Jun 15, 2023, 6:52 PM IST

रांची में सेना की जमीन घोटाला मामले में एक के बाद एक नए खुलासे हो रहे हैं. इस मामले में अब ये बात सामने आई है कि फर्जी तरीके से सेना की जमीन लेकर उसपर मल्टीप्लेक्स बनाने की तैयारी की जा रही थी.

Ranchi land scam
Ranchi land scam

रांची: भारतीय सेना को जो जमीन लीज पर मिली थी, उसे हासिल कर उस पर मल्टीप्लेक्स और आलीशान अपार्टमेंट बना कर करोड़ों के वारे न्यारे करने के लिए एक बड़ा षड्यंत्र रचा गया था. ईडी ने जब मामले की जांच शुरू की तो षड्यंत्र के अलग-अलग पात्र एक-एक कर सामने आते गए, षड्यंत्र में शामिल पात्र एक-एक कर सलाखों के पीछे पहुंच रहे हैं. इसी षड्यंत्र के सबसे बड़े पात्र हैं विष्णु अग्रवाल. रांची में कई बड़े शॉपिंग कॉम्पलेक्स के मालिक विष्णु अग्रवाल भी षड्यंत्र के बड़े पात्र हैं. विष्णु अग्रवाल से ईडी पूछताछ करेगी क्योंकि इस पूरे घोटाले की कड़ी की आखिरी कील विष्णु अग्रवाल ही साबित हो सकते हैं.

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21 जून को होगी विष्णु से पूछताछ: ईडी ने विष्णु अग्रवाल को समन कर 21 जून को रांची के जोनल ऑफिस में हाजिर होने को कहा है. इससे पहले मई महीने में भी ईडी ने विष्णु अग्रवाल को समन किया था, लेकिन तब स्वास्थ्य कारणों से उनसे पूछताछ नहीं हो पाई थी. ईडी ने चार्जशीट में यह जिक्र किया है कि जमीन के फर्जीवाड़े में जो गिरोह शामिल था, गिरोह के सदस्य अफसर अली ने विष्णु अग्रवाल के द्वारा खरीदी गई जमीन में फर्जीवाड़े की जानकारी ईडी को दी है.
ईडी को अफसर अली ने बयान दिया है कि चेशायर होम रोड की एक एकड़ जमीन के फर्जी कागजात बनाए जाने के बाद उसके सहयोगी इम्तियाज अहमद ने इस जमीन की रजिस्ट्री प्रेम प्रकाश के करीब पुनीत भार्गव को की, इम्तियाज ने यह रजिस्ट्री 1.78 करोड़ में करने की बात डीड में दिखायी. यही नहीं इस जमीन को पुनित भार्गव ने 1.80 करोड़ में विष्णु अग्रवाल और उनकी पत्नी को बेच दी और रजिस्ट्री भी करवा दी. दरअसल विष्णु अग्रवाल हर उस जमीन के पीछे सफेदपोश की तरह थे जिस पर आलीशान मल्टीप्लेक्स बनाए जाने की संभावनाएं थी.

जांच में आ रहे चौंकाने वाले तथ्य: रांची में जमीन घोटाले में जिस तरह के तथ्य अनुसंधान में सामने आ रहे हैं, वह काफी चौकानें वाले हैं. करमटोली में सेना की 4.55 एकड़ जमीन हथियाने के लिए कई तरह के हथकंडे अपनाए गए. सेना की जमीन को लेकर जब बड़गाईं अंचल में ईडी ने सर्वे किया तो जमीन से जुड़ा म्यूटेशन पेपर मिला. मिले कागजात के अनुसार शहर अंचल से 1960-61 में ही जमीन म्यूटेशन (जमाबंदी) हुई, लेकिन ईडी ने जांच की तब पाया कि तब रांची में सदर अंचल ही नहीं बना था. रांची में सदर अंचल का निर्माण 1970 में हुआ, 1971 से शहर अंचल ऑपरेशन में आया. लेकिन माफियाओं ने कागजात में हेरफेर की तो म्यूटेशन के दस्तावेजों में अंचल के निर्माण के पूर्व की तारीख डाल दी.

कोर्ट को भी किया गया गुमराह: ईडी ने जब जांच की दिशा को आगे बढ़ाने के लिए रांची के बड़गाईं अंचल का सर्वे किया, तब जांच में पाया कि प्लाट संख्या 557, मौजा मोहरबादी का जिक्र रजिस्टर 2 के पेज संख्या 249में हैं. इस पेपर में रैरूत के तौर पर बीएम मुकुंद राव का जिक्र है. इसी दस्तावेज में बीएम मुकुंदराव का म्यूटेशन केस नंबर 1298 आर 27/60-61 फाइल व स्वीकृत दिखाया गया है. इस दस्तावेज में अंचल की जगह शहर अंचल का जिक्र है जांच में ईडी ने यह पाया है कि बिहार सरकार के नोटिफिकेशन संख्या 6649 से 25 अक्तूबर 1970 को शहर अंचल का गठन किया गया था. शहर अंचल में कागजात 14 अप्रैल 1971 से शुरू हुआ था. ऐसे में जाहिर है कि म्यूटेशन नंबर 1298 आर 27/60-61 शहर अंचल में स्वीकृत नहीं हुआ है. ईडी ने जांच में पाया कि रजिस्टर 2 में छेड़छाड़ कर बीएम मुकुंदराव और बीएम लक्ष्मण राव का नाम डाला गया. बाद में इन्ही दस्तावेजों के आधार पर जयंत कर्नाड ने झारखंड हाईकोर्ट में याचिका दायर की और जमीन के रेंट की मांग की. जिसे हाईकोर्ट ने स्वीकार किया. ईडी ने पाया है कि फर्जी दस्तावेजों के सहारे हाईकोर्ट से अपने पक्ष में आदेश लिया गया.

फोरेंसिक जांच में भी दस्तावेज के फर्जी होने की पुष्टि: ईडी ने बड़गाईं अंचल से रजिस्टर 2 के मूल कॉपी की पड़ताल कराई. गांधीनगर एफएसएल ने जांच में पाया कि रजिस्टर 2 के पेज संख्या 249 में बीएम मुकंदराव, पिता- बीएम लक्ष्मण राव, रैयत- प्लाट नंबर 556 की इंट्री बाद में की गई है. पेज संख्या 249 के पेज के रंग और इंक के रंग बाकी अन्य पन्नों से अलग पाए गए, इससे फर्जीवाड़े की पुष्टि हुई.

महंगी जमीनों के पेपर फड़वाकर जमीन लूट का खेल: रांची के रजिस्ट्री कार्यालयों व अंचल के रिकॉर्ड गायब कर फर्जीवाड़े की शुरुआत की गई. इसके बाद उन जमीन के रिकॉर्ड कोलकाता के रजिस्ट्रार आफ एश्योरेंस के यहां से भी या तो गायब करा दिए गए या वहां छेड़छाड़ कर दी गई. इसके बाद चंद रुपयों में करोड़ों, अरबों की जमीन का सौदा रांची के माफियाओं ने कर लिया. ईडी ने अपनी जांच में जो तथ्य आए हैं, इससे स्पष्ट है कि अब तक अनुसंधानरत सेना की बरियातू, बजरा की 7.16 एकड़ व चेशायर होम रोड की महंगी जमीनों के असल रैयत को खोज पाना मुमकिन नहीं है. यही वजह है कि ईडी ने जमीन घोटाले में पहले चरण की जांच के बाद 74.39 करोड़ की जमीन को जब्त कर लिया है. एडुकेटिंग अथॉरिटी की मुहर के बाद यह संपत्ति भारत सरकार की संपत्ति हो जाएगी.

समझिए सेना जमीन फर्जीवाड़े से जुड़ा पूरा मामला

  1. रांची में 4.55 एकड़ जमीन एक अप्रैल 1946 से सेना के कब्जे में है.सेना ने जमीन के मूल रैयत बीएम लक्ष्मण राव को 30 मार्च 1960 को उक्त जमीन के बदले 446 रुपए प्रति वर्ष क्षतिपूर्ति के रूप में दिए.
  2. 1 अप्रैल 1963 से प्रतिवर्ष 3600 रुपए किराया तय हुआ. रैयत बीएम लक्ष्मण राव के बेटे बीएम मुकुंद राव ने 3 सितंबर 1970 तक यह राशि किराए में ली.इसके बाद राव ने 12 हजार रुपए प्रतिवर्ष किराए के भुगतान की मांग की. 1998 में उनकी मृत्यु के बाद उनके उत्तराधिकारी जयंत कर्नाड हुए. जयंत कर्नाड मुकुंद राव की बहन मालती कर्नाड के बेटे हैं.
  3. वर्ष 2007 में जमीन के उत्तराधिकारी जयंत कर्नाड ने सेना से जमीन खाली कराने व बकाया किराए के भुगतान के लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर की.22 अक्टूबर 2008 को हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि सेना 20 नवंबर 2008 तक के किराए का भुगतान जयंत कर्नाड के पक्ष में करे.
  4. 11 मार्च 2009 को हाईकोर्ट ने अपने आदेश में जयंत कर्नाड के पक्ष में उक्त भूमि को रिलीज करने का आदेश दिया.
  5. 2019 में जयंत कर्नाड ने जमीन 13 रैयतों को बेच दी. रजिस्ट्री रांची के तत्कालीन सब रजिस्ट्रार राहुल चौबे ने की,तब भी जमीन पर सेना का कब्जा था. इसलिए रजिस्ट्री के बाद भी बड़गाईं सीओ ने दखल खारिज के आवेदन को रिजेक्ट कर दिया.
  6. 8 अप्रैल 2021 को प्रदीप बागची ने सेना के कब्जे वाली जमीन पर दावा करते हुए तत्कालीन डीसी छवि रंजन एक आवेदन दिया बागची ने कहा कि कुछ भू-माफिया जाली दस्तावेज तैयार कर उनकी रैयती जमीन चुके हैं. जमीन की दाखिल-खारिज कराने का प्रयास कर रहे हैं. बागची का दावा था कि उसके पिता स्व. प्रफुल्ल बागची ने उक्त 4.55 एकड़ भूमि 1932 में निबंधित दस्तावेज के साथ खतियानी रैयत से सीधे खरीदी थी. इसकी रजिस्ट्री कोलकाता में हुई थी. वह जमीन मौखिक रूप से सेना को उपयोग के लिए दिया गया था.
  7. बागची ने वर्ष 2021 में ही ऑनलाइन प्रक्रिया से उक्त जमीन का पजेशन सर्टिफिकेट लिया. फर्जी आधार कार्ड, बिजली बिल देकर नगर निगम से होल्डिंग नंबर भी लिया.
  8. एक अक्टूबर 2021 को बागची ने करीब सात करोड़ रुपए सरकारी में जमीन की रजिस्ट्री कोलकाता की कंपनी जगत बंधु टी एस्टेट प्रा.लि. के निदेशक दिलीप कुमार घोष के नाम कर दी. तत्कालीन सब रजिस्ट्रार घासीराम पिंगुवा ने ईडी को बताया था कि छवि रंजन के आदेश पर यह रजिस्ट्री उन्होंने की थी. हालांकि बाद में पिंगुवा अपने बयान से पलट गए.
  9. बागची ने जमीन के मूल रैयत जयंत कर्नाड को फर्जी बताते हुए उनके द्वारा 13 लोगों को किए गए रजिस्ट्री को अवैध बताते हुए रद्द करने की मांग की, जिसे सब रजिस्ट्रार वैभव मणि त्रिपाठी ने सही बताते हुए रजिस्ट्री निबंधन रद्द करने का प्रस्ताव तैयार कर भेजा. वैभव मणि से भी ईडी इस मामले में पूछताछ कर चुकी है.
  10. सत्ता के करीबी कारोबारी अमित अग्रवाल पर पर्दे के पीछे से जमीन की खरीदारी दिलीप घोष के नाम पर की.
  11. नगर निगम के टैक्स कलेक्टर दिलीप शर्मा ने प्रदीप बागची के खिलाफ 4 जून 2022 को फर्जी कागजात के आधार पर नगर निगम से होल्डिंग लेने का मामला बरियातू थाने में दर्ज कराया था. इस केस में ईडी ने ईसीआईआर किया था.
  12. 2023 जमीन घोटाले में ईडी की एंट्री हुई, जिसके बाद जमीन घोटाले की परत दर परत हर दिन खुल रही है अब तक इस मामले में आईएएस अधिकारी छवि रंजन, सत्ता के पावर ब्रोकर अमित अग्रवाल सहित एक दर्जन लोग गिरफ्तार किए जा चुके हैं.
  13. ईडी सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार विष्णु अग्रवाल ने इस जमीन के लिए सबसे ज्यादा पैसे खर्च किए हैं. ऐसे में वह इस खेल के पीछे बड़े किंगपिन जैसे दिखाई दे रहे है. 21 जून को होने वाली पूछताछ में विष्णु अग्रवाल की मुश्किलें और बढ़ेंगी.
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