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चाक पर जिंदगी! दूसरों के घर रौशन करने वाले खुद अंधेरे में, माटी कला बोर्ड भी बना मृतप्राय

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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Nov 6, 2023, 8:01 PM IST

झारखंड में दिवाली पर दीये बनाने वाले कुम्हारों की स्थिति ठीक नहीं है. कुम्हार समाज आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़ा हुआ है. कुम्हारों की मदद के लिए बने माटी कला बोर्ड की हालत भी खराब है, इसमें पूरा कामकाज ठप पड़ा हुआ है. जिससे कुम्हारों की कोई मदद नहीं हो पा रही है. Potter conditions in Jharkhand

Potter conditions in Jharkhand
Potter conditions in Jharkhand

दूसरों के घर रौशन करने वाले खुद अंधेरे में

रांची: दूसरों के घर को रौशन कर खुशियां बिखेरने वाला कुम्हार समाज खुद आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े हुआ है. दीपावली का मौका है, एक बार फिर अपने सभी गमों को भुलाकर चाक पर मिट्टी के दीये बनाने बैठे लल्लू प्रजापति को उम्मीद है कि उनके घर भी एक ना एक दिन मां लक्ष्मी आयेंगी और उन्हें थोड़ी सी मिट्टी के लिए पैसे के लिए तरसना नहीं होगा.

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इस उम्मीद के साथ अपने पुस्तैनी कारोबार को वे जिंदा रखना चाहते हैं. जिससे उनके बेटे और परिवार के लोग दूर हो रहे हैं. लल्लू प्रजापति जैसे झारखंड में लाखों लोग हैं, जिनकी जिंदगी चाक के भरोसे गुजरती है और कमोवेश सभी की यही स्थिति है.

माटी कला बोर्ड खुद मृतप्राय: झारखंड सरकार ने राज्य में कुम्हारों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए माटी कला बोर्ड का गठन किया था. समय के साथ यह माटी कला बोर्ड मृतप्राय होता चला गया. फिलहाल यह एक अनुसेवक और महिला सफाईकर्मी के सहारे चल रहा है. बोर्ड में न तो कोई अध्यक्ष है और न ही कोई एमडी.

ऐसे में पिछले पांच माह से आउटसोर्सिंग पर काम करने वाले अनुसेवक और महिला सफाईकर्मियों को वेतन नहीं मिलने से उनकी दिवाली भी फीकी हो गयी है. इतना ही नहीं, बोर्ड के खातों को संभालने की जिम्मेदारी जिला उद्योग कार्यालय में कार्यरत एक कर्मचारी को दी गयी है. जिस पर तीन विभागों की जिम्मेदारी है.

माटी कला बोर्ड में कामकाज ठप: माटी कला बोर्ड में कार्यरत शुभम बताते हैं कि चेयरमैन और एमडी के नहीं होने की वजह से कामकाज पूरी तरह ठप है. मैं करीब दो साल से कार्यरत हूं, मगर आज तक ऐसी स्थिति नहीं देखी थी. बोर्ड कार्यालय में कुम्हारों के लिए 90 फीसदी सब्सिडी पर दिए जाने वाले चाक यूं ही पड़े हुए हैं. शुरू में कुछ को चाक दिया गया और प्रशिक्षण भी हुआ. मगर चेयरमैन और एमडी के नहीं होने की वजह से ट्रेनिंग पूरी तरह से ठप है.

जाहिर तौर पर माटी कला बोर्ड के माध्यम से लल्लू प्रजापति जैसे कुम्हार को आर्थिक सहायता के साथ प्रशिक्षण और उनके प्रोडक्ट को मार्केट देने का जो सपना देखा गया था वो जमीन पर उतरने से पहले ही बिखर गया है.

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