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रांची: कहीं ये वजह तो नहीं जिसके कारण बाबूलाल को नहीं मिल रहा नेता प्रतिपक्ष का दर्जा!

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Published : Jun 16, 2020, 2:26 PM IST

झारखंड के दो सीटों पर होने वाले राज्यसभा चुनाव को लेकर इन दिनों राजनीतिक सरगर्मी बढ़ गई है. इसको लेकर अब झारखंड विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष के रूप में बीजेपी विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी को दर्जा नहीं दिए जाने को लेकर मामला तूल पकड़ते जा रहा है और एक-दूसरे पर बयानबाजी तेज हो गई है.

Political movement intensifies for Rajya Sabha elections in jharkhand
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रांची: झारखंड विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष के रूप में बीजेपी विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी को दर्जा नहीं दिए जाने को लेकर मामला अब तूल पकड़ते जा रहा है. 19 जून को होने वाले राज्यसभा चुनाव में आयोग की ओर से मांगी गई जानकारी में विधानसभा सचिवालय ने बाबूलाल मरांडी को बीजेपी का वोटर बताया है, लेकिन अभी तक सदन के अंदर उन्हें इस रूप में पहचान नहीं दी गई है.

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बीजेपी के अंदरखाने हो रही चर्चाओं पर यकीन करें तो सारा माजरा आदिवासी चेहरे पर टिके पॉलिटिक्स को लेकर फंस रहा है. अभी विधानसभा में नेता के रूप में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को एक तरफा मौका मिल रहा है. वहीं, बीजेपी का आरोप है कि हेमंत सोरेन इस मौके को अपने हाथ से नहीं जाने देना चाहते हैं. इसके साथ ही उनका दल भी नहीं चाहता है कि राज्य में दूसरे किसी ट्राइबल फेस को पॉलिटिकल ग्राउंड पर बैटिंग करने का मौका मिले.

क्या कहते हैं बाबूलाल के करीबी और बीजेपी नेता
पूर्ववर्ती झारखंड विकास मोर्चा में बाबूलाल मरांडी के करीबी रहे और फिलहाल बीजेपी में सक्रिय नेता योगेंद्र प्रताप सिंह साफ तौर पर कहते हैं कि मरांडी प्रदेश के सर्वमान्य चेहरा हैं. चाहे आदिवासी हो या गैर आदिवासी सभी लोगों में उनका एक्सेप्टेंस है. यही वजह है कि सरकार उनके नाम से डरी हुई है. सत्ता में बैठे लोग जानते हैं कि अगर बाबूलाल मरांडी को नेता प्रतिपक्ष का दर्जा मिला और वह सदन में मुखर होकर अपनी बात रखने लगे तो मौजूदा मुख्यमंत्री से ज्यादा उन्हें महत्त्व मिलेगा. योगेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि दरअसल मरांडी को राजनीतिक अनुभव भी काफी लंबा है. इसके साथ ही वह एक बड़ा चेहरा हो जाएंगे और उनकी एक्सेप्टेंस और ज्यादा होगी.

कांग्रेस ने किया पलटवार
वहीं, इसका काउंटर करते हुए कांग्रेस ने कहा कि निश्चित तौर पर मरांडी का पॉलिटिकल ग्राफ बड़ा है, लेकिन जिस तरीके से उन्होंने झारखंड विकास मोर्चा का गठन किया और फिर वापस बीजेपी में चले गए उन्हें लोगों के समक्ष आकर अपनी मजबूरी बतानी चाहिए. झारखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता राजेश गुप्ता ने कहा कि पहले तो मरांडी को ये क्लियर करना चाहिए कि किन हालात में उन्होंने बीजेपी का दामन दोबारा थामा. इसके साथ ही उन्हें यह भी क्लियर करना चाहिए कि चुनाव उन्होंने झारखंड विकास मोर्चा के नाम पर जीता और वापस बीजेपी में चले गए. ऐसे में उनका पॉलिटिकल एथिक्स कहां स्टैंड करता है. उन्होंने कहा कि मरांडी के नाम पर कोई भी फैसला स्पीकर करेंगे, क्योंकि सदन के अंदर हाउस का अपना कानून चलता है.

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कुछ ऐसा पॉलिटिकल करियर रहा है बाबूलाल का
बाबूलाल मरांडी झारखंड के पहले मुख्यमंत्री थे. इससे पहले साल 1998 से 2000 तक वह केंद्र में मंत्री रह चुके हैं. वहीं, राज्य के सीएम बनने के बाद रामगढ़ विधानसभा इलाके से विधायक भी रह चुके हैं. इसके अलावा कोडरमा से साल 2004 और 2006 में सांसद भी रह चुके हैं. इतना ही नहीं बीजेपी से अलग होने के बाद उन्होंने झारखंड विकास मोर्चा नामक राजनीतिक संगठन ने बनाया. 2019 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद उन्होंने अपने दल का विलय बीजेपी में कर दिया.

हेमंत सोरेन की पारिवारिक राजनीतिक विरासत
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को राजनीति विरासत में मिली. एक तरफ जहां उनके पिता लगातार सांसद रहे. वहीं, उनके बड़े भाई दुर्गा सोरेन भी विधायक रहे. हेमंत सोरेन ने अपनी राजनीति झारखंड मुक्ति मोर्चा के स्टूडेंट विंग से शुरू की. बाद में पहली बार राज्यसभा सांसद 2009 में चुने गए. उसके कुछ दिनों के बाद ही दिसंबर 2009 में विधायक बने और राज्य के उप मुख्यमंत्री भी रहे. साल 2013 में उन्हें सरकार चलाने का मौका मिला और पहली बार मुख्यमंत्री बने, जबकि 2019 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद महागठबंधन की सरकार का वही नेतृत्व कर रहे हैं.

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