PM मोदी के 'मन' में हैं झारखंड के ये दो गांव, पहाड़ों में कर रहे जल संरक्षण

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Published : Jul 28, 2019, 2:28 PM IST

Updated : Jul 29, 2019, 9:26 AM IST

पीएम मोदी जल संरक्षण को स्वच्छ भारत अभियान की तरह ही जन-आंदोलन बनाने की तरफ जोर दे रहे हैं. इसी के तहत अपने मन की बात कार्यक्रम में उन्होंने झारखंड के दो गांव आरा और केरम का जिक्र किया है. आइए जानते हैं इन गांवों के बारे में, आखिर किन खासियतों ने बनाया इसे मन की बात का हिस्सा.

रांचीः पीएम मोदी अपने मन की बात कार्यक्रम में जल संरक्षण को विशेष महत्व दे रहे हैं. पिछली बार प्रधानमंत्री मोदी ने झारखंड के एक किसान से बात कर जल संरक्षण के कई तरीके जाने थे. इस बार भी मन की बात में पीएम नरेंद्र मोदी ने झारखंड के ही दो ऐसे गांवों आरा और केरम का उदाहरण दिया है, जहां महिलाओं ने योजनाओं का लाभ उठाते हुए जल संरक्षण किया. जिससे इन गांवों में समृद्धि आई है.

झारखंड की राजधानी रांची से लगभग 32 किलोमीटर दूर ये गांव ओरमांझी प्रखंड के अंतर्गत आते हैं. दोनों गांवों की बीच सिर्फ 2 किलोमीटर की दूरी है. पहाड़ों के बीच बसे इन गांवों की स्वच्छता और सौंदर्यता देखते ही बनती है. इसकी खूबसूरती और समृद्धि शहरों में बसे रईसों के बड़े- बड़े इमारतों को भी मुंह चिढ़ रही है और ये सब संभव होने की वजह है जल संरक्षण.

पहले नशेड़ियों का था गांव, अब खुशहाली की तस्वीर बनकर उभरा

आरा और केरम गांव के लोग पहले बेहद गरीब थे. कुली मजदूरी कर किसी तरह अपना जीवन- यापन करते थे. यहां नशे की गिरफ्त में विकास से कोसों दूर थे. लेकिन अब इन दोनों गांवों की तस्वीर बदल चुकी है. अब ये पूरे भारत के लिए प्रेरणा बन चुका हैं. जल विकास की धारा ने ग्रामीणों की गरीबी को धो डाला हैं.

कैसे हुआ ये संभव

स्थानीय प्रशासन के प्रयास से गांवों की महिलाओं को सरकारी योजनाओं से जोड़ा गया. जिससे ग्रामीण और खासकर महिलाएं जागरूक हुए. इसके बाद तो मानों विकास को गति मिल गई. आरा और केरम के ग्रामीणों ने जल संरक्षण कर पहाड़ में ही जल संरक्षण करने की व्यवस्था की. जिससे सालों भर खेती तो होती ही है, संरक्षित जल में मत्स्य पालन किया जाता हैं. मंत्रायल के तरफ से मछली का जीरा( मत्स्य बीज) दिया जाता है. लोगों ने इसके साथ-साथ पशुपालन, सहकारिता जैसे कई कामों को करना शुरू किया. जिससे अब इस गांव में गरीबी नाममात्र की रह गई है.

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डोभा बना कर रहे बरसात के पानी को संरक्षित, जंगल को भी बचाया जा रहा

गांव में 45 डोभा का निर्माण किया गया है. जिसमें बरसात के पानी को इक्कठ्ठा किया जाता है. जिसमें से 12 डोभा पहाड़ों पर ही बनाए गए हैं. जिससे मत्स्य पालन और कृषि का काम किया जाता है. इससे ग्रामीण साल में कम से कम 10 से 15 हजार रूपए कमा लेते हैं. वहीं, जंगल बचाओ समिति का गठन कर लोग जंगल को भी संरक्षित कर रहे हैं.

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रांचीः पीएम मोदी अपने मन की बात कार्यक्रम में जल संरक्षण को विशेष महत्व दे रहे हैं. पिछली बार प्रधानमंत्री मोदी ने झारखंड के एक किसान से बात कर जल संरक्षण के कई तरीके जानें थे. इस बार भी मन की बात में पीएम नरेंद्र मोदी ने झारखंड के ही दो ऐसे गांवों आरा और केरम का उदाहरण दिया है, जहां महिलाओं ने योजनाओं का लाभ उठाते हुए जल संरक्षण किया. जिससे इन गांवों में समृद्धि आई है. 

     

झारखंड की राजधानी रांची से लगभग 32 किलोमीटर दूर से गांव ओरमांझी प्रखंड के अंतर्गत आते हैं.  दोनों गांवों की बीज सिर्फ 2 किलोमीटर की दूरी है. पहाड़ों के बीच बसे इन गांवों की स्वच्छता और सौंदर्यता देखते ही बनती है. इसकी खूबसूरती और समृद्धि  शहरों में बसे रईसों के बड़े- बड़े इमारतों को भी मुंह चिढ़ रही है. और ये सब संभव होने की वजह है जल संरक्षण.





पहले नशेड़ियों का था गांव, अब खुशहाली की तस्वीर बनकर उभरा 

आरा और केरम गांव के लोग पहले बेहद गरीब थे.  कुली मजदूरी कर किसी तरह अपना जीवन- यापन करते थे. यहां नशे की गिरफ्त में विकास से कोसों दूर थे. लेकिन अब इन दोनों गांवों की तस्वीर बदल चुकी है. अब ये पूरे भारत के लिए प्रेरणा बन चुका हैं. जल विकास की धारा ने ग्रामीणों की गरीबी को धो डाला हैं.  



कैसे हुआ ये संभव

स्थानीय प्रशासन के प्रयास से गांवों की महिलाओं को सरकारी योजनाओं से जोड़ा गया. जिससे ग्रामीण और खासकर महिलाएं जागरूक हुए.  इसके बाद तो मानों विकास को गति मिल गई. आरा और केरम के ग्रामीणों ने जल संरक्षण कर पहाड़ में ही जल संरक्षण करने की व्यवस्था की. जिससे सालों भर खेती तो होती ही है, संरक्षित जल में मत्स्य पालन किया जाता हैं. मंत्रायल के तरफ से मछली का जीरा( मत्स्य बीज) दिया जाता है. लोगों ने इसके साथ-साथ पशुपालन, सहकारिता जैसे कई कामों को करना शुरू किया. जिससे अब इस गांव में गरीबी नाममात्र की रह गई है. 

 

डोभा बन कर रहे बरसात के पानी को संरक्षित, जंगल को भी बचाया जा रहा

गांव में 45 डोभा का निर्माण किया गया है. जिसमें बरसात के पानी को इक्कठ्ठा किया जाता है. जिसमें से 12 डोभा पहाड़ों पर ही बनाए गए हैं. जिससे मत्स्य पालन और कृषि का काम किया जाता है. इससे ग्रामीण साल में कम से कम 10 से 15 हजार रूपए कमा लेते हैं. वहीं, जंगल बचाओ समिति का गठन कर लोग जंगल को भी संरक्षित कर रहे हैं. 


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Last Updated :Jul 29, 2019, 9:26 AM IST
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