नक्सलियों का असली चेहरा आया सामने, अपने फायदे के लिए बंद किया ग्रामीणों का हुक्का-पानी

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Published : Jan 18, 2023, 8:52 PM IST

Naxalites banned villagers from going to forest

नक्सलियों ने अपने फायदे के लिए ग्रामीणों की रोजी रोटी पर डाका डाल दिया है. नक्सलियों ने जंगल को चारों ओर लैंड माइंस बिछाकर ग्रामीणों के जंगल जाने पर ही पाबंदी लगा दी है, जबकि जंगल से ही उनकी आजीविका चलती है. वैसे तो नक्सली अपने आपको ग्रामीणों का मसीहा बताते हैं, लेकिन उनकी इस करतूत ने उनका असली चेहरा सामने ला दिया है.

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रांची: अपने आपको ग्रामीणों का मसीहा बताने वाले नक्सली संगठन अब उन्हीं के रोजी रोजगार पर ग्रहण लगा रहे हैं. झारखंड के वैसे नक्सल प्रभावित ग्रामीण इलाके जहां आज भी गांव के लोगों के लिए उनका जंगल ही रोजी रोजगार का सबसे बड़ा साधन है, अब वहां उन ग्रामीणों को जंगल जाने पर ही नक्सलियों ने पाबंदी लगा दी है. नक्सलियों के इस घोषित जंगल कर्फ्यू की वजह से ग्रामीणों के सामने बड़ी मुश्किल खड़ी हो गई है. नक्सलियों ने गांव-गांव में पोस्टर लगाकर कर ग्रामीणों को जंगल में प्रवेश पर पाबंदी लगा दी है.

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आईईडी का बनाया है घेरा: जानकारी के अनुसार चाईबासा के घोर नक्सल प्रभावित इलाकों के जंगलों की घेराबंदी नक्सलियों ने आईईडी बमों से कर दी है. ताकि पुलिस का अभियान प्रभावित हो और पुलिस उनके इलाके तक ना पहुंच सके. इसी वजह से नक्सलियों ने कोल्हान के बीहड़ों में जंगलों के बाहर पोस्टर भी चिपका दिया है. पोस्टर में क्षेत्रीय भाषाओं में यह लिखा गया है कि पूरे जंगल में ग्रामीणों का आना वर्जित है, क्योंकि जंगल के कोने-कोने में लैंड माइंस बिछा हुआ है. नक्सलियों के इस फरमान की वजह से ग्रामीणों के सामने कई तरह के संकट खड़े हो गए हैं.

रोजी रोजगार का साधन है जंगल: जानकारी के अनुसार अपने आप को सुरक्षित रखने के लिए नक्सलियों ने लगभग 35 किलोमीटर के एरिया में हर तरफ आईडी बमों का जाल बिछा दिया है. नतीजा ग्रामीणों के सामने बड़ी मुश्किल आन खड़ी हुई है. जल, जंगल और जमीन के जरिए अपनी जीविका चलाने वाले ग्रामीण नक्सलियों के इस फरमान की वजह से खासे परेशान हैं. दरअसल, कोल्हान के नक्सल प्रभावित इलाकों में रहने वाले ग्रामीणों का एक बड़ा तबका जंगल से मिलने वाले उत्पादों पर निर्भर है. जलावन के लिए लकड़ी, कंदमूल और दूसरे तरह के फल इकट्ठा कर उसे बाजारों में बेच कर ग्रामीण अपनी जीविका चलाते हैं. पशुओं को चारा के लिए भी जंगल ले जाना ग्रामीणों की मजबूरी है, लेकिन नक्सलियों के एक फरमान ने उनके निवाले पर डाका डाल दिया है.

पुलिस पर है ग्रामीणों को भरोसा: नक्सलियों के द्वारा ग्रामीणों के निवाले पर डाका डालने की जानकारी झारखंड पुलिस मुख्यालय को भी है. यही वजह है कि 2000 से ज्यादा की संख्या में सुरक्षा बल कोल्हान में डेरा डाले हुए हैं, ताकि नक्सलियों को वहां से खदेड़ा जा सके और ग्रामीणों को उनका जंगल वापस दिलाया जा सके. झारखंड पुलिस के आईजी अभियान अमोल वी होमकर के अनुसार नक्सलियों की इस कार्रवाई से ग्रामीणों में खासा आक्रोश है. जल, जंगल और जमीन के साथ-साथ ग्रामीणों की हक की बात करने वाले नक्सली अब ग्रामीणों के ही दुश्मन बन बैठे हैं, ऐसे में ग्रामीणों का उनसे लगातार मोहभंग हो रहा है.

क्यों की है नक्सलियों ने घेराबंदी: झारखंड में भाकपा माओवादियों के सारे सेंट्रल कमेटी मेंबर कोल्हान के इलाके में कैंप कर रहे हैं. वर्तमान में एक करोड़ के चार इनामी माओवादी हैं, जिसमें पोलित ब्यूरो मेंबर मिसिर बेसरा, असीम मंडल, पतिराम मांझी उर्फ अनल और प्रयाग मांझी शामिल हैं. पुलिस के आला अधिकारियों के मुताबिक, माओवादियों के सेकेंड इन कमान प्रशांत बोस व शीला मरांडी की गिरफ्तारी के बाद भाकपा माओवादियों के पोलित ब्यूरो के सदस्य मिसिर बेसरा और प्रयाग मांझी अपने दस्ते के साथ सारंडा इलाके में कैंप कर रहे हैं. वे इन इलाकों में संगठन को मजबूत करने की कवायद में जुटे हैं. पतिराम मांझी के बारे में सूचना है कि वह सरायकेला-खरसांवा, रांची और खूंटी के ट्राइजंक्शन पर है, वहीं असीम मंडल के दस्ते के चौका-चांडिल के इलाके में होने की जानकारी है. अपने इन बड़े नेताओं को सुरक्षित रखने के लिए ही आईडी बमों के जरिए नक्सलियों ने पूरे इलाके की घेराबंदी कर रखी है.

चौतरफा घेराबंदी शुरू: चाईबासा में नक्सलियों पर दबिश देने के लिए पूरे कोल्हान इलाके की घेराबंदी झारखंड पुलिस के द्वारा शुरू कर दी गई है. कोल्हान से सटे दूसरे राज्यों की पुलिस से भी इस मामले में मदद ली जा रही है. वहीं ट्राईजंक्शन से सटे जिलों के पुलिस कर्मियों को भी अलर्ट किया गया है. हालांकि जिस इलाके में नक्सली डेरा डाले हुए हैं, वह बड़ा ही विषमता भरा है. जंगल इतने घने हैं कि 5 फीट दूर खड़ा आदमी भी दिखाई नहीं देता है. ऐसी विषम परिस्थितियों में भी कोबरा सीआरपीएफ और झारखंड पुलिस के जवान मोर्चा संभाले हुए हैं. पुलिस मुख्यालय की तरफ से हर लेवल पर इस अभियान की मॉनिटरिंग की जा रही है. डीजीपी, एडीजी, आईजी ऑपरेशन और खुफिया विभाग के कई अफसर सीधे तौर पर इस अभियान से जुड़े हुए हैं. आईजी ऑपरेशन अमोल वी होमकर इस अभियान को सफल बनाने के लिए 18 से 20 घंटे वार रूम में गुजार रहे हैं.

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