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नक्सलियों के मंसूबे को पुलिस करेगी नाकाम, अफीम के जाल में ग्रामीणों को फंसने से रोकने की कोशिश की शुरू

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Published : Oct 31, 2019, 3:10 AM IST

झारखंड में नक्सली बड़े पैमाने पर ग्रामीणों से अफीम की खेती करवाकर पैसे कमाने की जुगत में रहते हैं. लेकिन इस बार झारखंड पुलिस ने नक्सलियों के मंसूबे को नाकाम करने के लिए कमर कस ली है.

अफीम की खेती

रांची: झारखंड में बड़े पैमाने पर अफीम की खेती की जाती है. झारखंड के 17 जिलों के लगभग 37 थाना क्षेत्रों में अफीम की खेती होती है. लेकिन इस अफीम की खेती करना ग्रामीणों के लिए आसान नहीं है. अफीम की खेती करना कई बार उन्हें महंगा सौदा भी पड़ जाता है. दरअसल, अफीम की खेती ग्रामीण अपनी मर्जी से करे न करे लेकिन नक्सलियों और तस्करों के दबाव में उन्हें ये करना ही पड़ता है. ऐसे में जहां ये ग्रामीण पुलिस की निगाहों में आ जाते हैं तो वहीं नक्सलियों के आगे बेबस-लाचार भी हो जाते हैं.

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किन स्थानों पर की जाती है अफीम की खेती
अफीम की खेती के लिए ऐसे स्थानों का चयन किया जाता है जो आमजन और पुलिस की नजरों से काफी दूर और पहाड़ों-जंगलों से घिरा होता है. ऐसे में इन स्थानों तक सुरक्षा बलों की पहुंच आसान नहीं होती.

झारखंड में कहां-कहां होती है अफीम की खेती

जिला थाना
रांची नामकुम
खूंटी खूंटी, मुरहू
सरायकेला खरसांवा चौका
गुमला कामडारा
लातेहार बालूमाथ, हेरहंज और चंदवा
चतरा लावालौंग, सदर, प्रतापपुर, राजपुर, कुंदा और विशिष्ठनगर
पलामू पांकी, तरहसी और मनातू
गढ़वा खरौंदी
हजारीबाग तातुहरिया, चौपारण
गिरिडीह पीरटांड, गनवा, डुमरी, लोकनयानपुर, तिसरी
देवघर पालाजोरी
दुमका रामगढ़, शिकारीपाड़ा, रनेश्वर, मसलिया
गोड्डा माहेरवान
पाकुड़ हिरणपुर
जामताड़ा नाला, कुंडीहाट
साहिबगंज बरहेट, तालीहारी

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अफीम से कमाने की जुगत में होते हैं नक्सली
नोटबंदी के बाद बैकफुट पर आए नक्सलियों के लिए अब अफीम की खेती आय का आसान जरिया बन रहा है. दरअसल, अंतरराष्ट्रीय बाजारों में अफीम की जबरदस्त मांग है. इसकी वजह से इन बाजारों में अफीम ऊंची कीमतों पर बिकता है. ऐसे में ग्रामीणों को डरा-धमकाकर या फिर ज्यादा पैसे का प्रलोभन देकर नक्सली आसानी से बड़ी कमाई करने की जुगत में होते हैं.

ग्रामीणों तक पहुंचाए जा चुके हैं अफीम के बीज
जाड़े का मौसम अफीम की खेती के लिए काफी मुफीद माना जाता है. इस दौरान एक से दो महीने के भीतर अफीम में फल और फूल आने लगते हैं. इसे देखते हुए ही बरसात के खत्म होते ही अफीम के कारोबारी नक्सल प्रभावित जिलों में अफीम के बीज को फैलाने का काम करना शुरू कर देते हैं. इस बार भी उन्होंने यही किया है. स्पेशल ब्रांच की तरफ से जो सूचना मिली है उसके अनुसार अफीम के बीज बड़े पैमाने पर नक्सल प्रभावित जिलों में पहुंचाए जा चुके हैं.

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पुलिस करेगी तस्करों के मंसूबे को नाकाम
तस्कर जहां भोले-भाले ग्रामीणों को बहला-फुसला और डरा धमका कर अपने लिए अफीम की खेती करवाने की जुगत में लग गए हैं. वहीं इस बार इन तस्करों के मंसूबो को नाकाम करने के लिए राज्य की नारकोटिक्स ब्यूरो और पुलिस ने भी कमर कस ली है.


अफीम के तैयार होने का इंतजार नही करेगी पुलिस
अफीम तस्करों से निपटने के लिए आमतौर पर झारखंड पुलिस फसल के तैयार होने का इंतजार करती थी और उसके बाद उसे नष्ट करती थी. लेकिन इस बार पुलिस ने अपनी रणनीति में बदलाव करते हुए अफीम के फसल के लगते ही उसे नष्ट करने का निर्णय लिया है. इसके लिए बकायदा नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो, सीआईडी और झारखंड पुलिस मिलकर काम शुरू कर चुके हैं.


सैटेलाइट मैपिंग कारगर नहीं
झारखंड पुलिस के प्रवक्ता एडीजी अभियान मुरारी लाल मीणा ने बताया कि सेटेलाइट मैपिंग के आधार पर अफीम की खेती का पता किया जाता है लेकिन यह कई बार पूरी तरह से सटीक नहीं आता. इसकी वजह से सही तौर पर अफीम की खेती का पता नहीं चल पाता है. ऐसे में मैनुअल तरीके से ही अफीम की खेती के बारे में पता लगाया जा रहा है. इसमें कई एजेंसी झारखंड पुलिस के साथ मिलकर काम कर रही है.


झारखंड पुलिस का बेहतरीन है रिकॉर्ड
साल 2011 से अबतक अफीम की खेती बर्बाद करने में झारखंड पुलिस की कार्रवाई काबिले तारीफ है.


झारखंड पुलिस से मिले आंकड़ों के मुताबिक कब कितने एकड़ में फसल किए गए नष्ट-

वर्ष जमीन(एकड़ में)
2018 2160.5
2017 2676.5
2016 259.19
2015 516.69
2014 81.26
2013 247.53
2012 66.6
2011 26.85

नारकोटिक्स एक्ट में कब-कितने केस हुए दर्ज

वर्ष केस दर्ज गिरफ्तारी
अगस्त 2019 तक 101 76
2018 46 65
2017 186 165

स्पीडी ट्रायल के जरिए प्रतापपुर, लावालौंग व इटखोरी थाने में दर्ज कांड में आरोपियों को सात से 12 साल तक की सजा भी हुई है. ऐसे में पुलिस के अब तक के परफॉर्मेंस को देखकर यही लगता है कि जल्द ही पुलिस पूरी तरह से नक्सलियों के मंसूबे को तोड़ देगी और ग्रामीणों को भी अफीम की मायावी जाल में फंसने से बचाने का काम करेगी.

Intro:डे प्लान...

रांची।
झारखंड के 17 जिलों के 37 थाना क्षेत्रों में अफीम की खेती होती है। बरसात खत्म होते ही अफीम के तस्कर एक बार फिर से भोले-भाले ग्रामीणों को बहला-फुसलाकर और डरा धमका कर अफीम की खेती करवाने की जुगत में जुटे हुए हैं तो वहीं दूसरी तरफ राज्य में नारकोटिक्स ब्यूरो और पुलिस अफीम की खेती रोकने के ये कमर कस चुकी है।

अफीम के बीज के पहुचाये जाने की खबर

गौरतलब है कि जाड़े का मौसम अफीम की खेती के लिए काफी मुफीद माना जाता है। इस दौरान एक से दो महीने के भीतर अफीम में फल और फूल आने लगते हैं। बरसात के खत्म होते ही अफीम के कारोबारी नक्सल प्रभावित जिलों में अफीम के बीज को फैलाने का काम करते है। स्पेशल ब्रांच की तरफ से जो सूचना मिली है उसके अनुसार अफीम के बीज बड़े पैमाने पर नक्सल प्रभावित जिलों में पहुंचाया जा चुके हैं।

अफीम के तैयार होने का इंतजार नही करेगी पुलिस

आमतौर पर झारखंड पुलिस अफीम की फसल के तैयार होने का इंतजार करती थी और उसके बाद उसे नष्ट करती थी। लेकिन इस बार पुलिस ने अपनी रणनीति में बदलाव करते हुए अफीम के फसल के लगते हैं उसे नष्ट करने की तैयारी में है इसके लिए बकायदा नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो सीआईडी और झारखंड पुलिस मिलकर काम शुरू कर चुके हैं।

नक्सली - अफीम तस्करों का गठजोड़

नोटबंदी के बाद बैकफुट पर आए नक्सलियों के लिए अब अफीम की खेती आय का आसान जरिया बन रहा है।दरअसल, अंतरराष्ट्रीय बाजारों में अफीम की जबरदस्त मांग है।इसकी वजह से इन बाजारों में अफीम ऊंची कीमतों पर बेची जाती है।ऐसे में ग्रामीणों को डरा-धमकाकर या फिर ज्यादा पैसे का प्रलोभन देकर नक्सली आसानी से बड़ी कमाई करने की जुगत में लगे हैं। अफीम की खेती के लिए ऐसे स्थानों का चयन किया गया है जो आमजन और पुलिस की नजरों से काफी दूर और पहाड़ों और जंगलों से घिरे जगहों में होते हैं। ऐसे में इन स्थानों तक सुरक्षा बलों की पहुंच आसान नहीं होती।

सैटेलाइट मैपिंग कारगर नही

झारखंड पुलिस के प्रवक्ता एडीजी अभियान मुरारी लाल मीणा ने बताया कि सेटेलाइट मैपिंग के आधार पर अफीम की खेती का पता किया जाता है। लेकिन यह कई बार पूरी तरह से सटीक नहीं आता  ।जिसकी वजह से अफीम की खेती का पता नहीं चल पाता है ।ऐसे में मैनुअल तरीके से ही अफीम की खेती के बारे में पता लगाया जा रहा है। इसमें कई एजेंसी झारखंड पुलिस के साथ मिलकर काम कर रही हैं।

बाइट - एम एल मीणा , एडीजी अभियान ,झारखंड पुलिस

अफीम की खेती नष्ट करने में झारखंड आगे

 साल 2011 से अबतक अफीम की खेती बर्बाद करने में झारखंड पुलिस की कारवाई काबिले तारीफ है।झारखंड पुलिस के द्वारा मिले आंकड़ों के मुताबिक, साल 2018 में 2160.5 एकड़, 2017 में 2676.5 एकड़, 2016 में 259.19 एकड़, 2015 में 516.69 एकड़, 2014 में 81.26 एकड़, 2013 में 247.53 एकड़, 2012 में 66.6 एकड़ व 2011 में 26.85 एकड़ जमीन से अफीम नष्ट करने की कार्रवाई की गई है। नारकोटिक्स एक्ट में अगस्त 2019 तक 101 केस दर्ज किए गए हैं, 76 आरोपियों की गिरफ्तारी हुई है। साल 2018 में 46 केस दर्ज किए गए थे जबकि 65 आरोपियों की गिरफ्तारी हुई थी।वही साल 2017 में झारखंड पुलिस ने रिकॉर्ड 186 केस दर्ज किए थे, जिसमें 165 आरोपियों को गिरफ्तार किया गया था। स्पीडी ट्रायल के जरिए प्रतापपुर, लावालौंग व इटखोरी थाने में दर्ज कांड में आरोपियों को सात से 12 साल तक की सजा भी हुई है।


कहां कहां होती है अफीम की खेती
रांची- नामकुम थाना
खूंटी- खूंटी व मुरहू थाना
सरायकेला खरसांवा- चौका थाना
गुमला- कामडारा थाना
लातेहार- बालूमाथ, हेरहंज व चंदवा थाना
चतरा - लावालौंग, सदर, प्रतापपुर, राजपुर, कुंदा, विशिष्ठनगर
पलामू- पांकी, तरहसी, मनातू
गढ़वा- खरौंदी
हजारीबाग- तातुहरिया, चौपारण
गिरिडीह- पीरटांड, गनवा, डुमरी, लोकनयानपुर, तिसरी
देवघर- पालाजोरी
दुमका-रामगढ़, शिकारीपाड़ा, रनेश्वर, मसलिया
गोड्डा- माहेरवान
पाकुड़- हिरणपुर
जामताड़ा- नाला, कुंडीहाट
साहेबगंज- बरहेट, तालीहारीBody:1Conclusion:2
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