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Land Scam in Ranchi: जमीन घोटाले के कोलकाता कनेक्शन की जांच शुरू, बंगला पर्चा का इस्तेमाल कर जमीन पर किया गया कब्जा

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Published : Apr 16, 2023, 7:21 AM IST

Updated : Apr 16, 2023, 12:53 PM IST

रांची में जमीन जालसाजी की ईडी जांच कर रही है. ईडी की जांच के बाद जमीन गवां चुके कई लोगों को अपनी जमीन मिलने की उम्मीद जगी है. इस जालसाजी में कोलकाता कनेक्शन की बात सामने आयी है. फॉरेंसिक जांच में इसका खुलासा हुआ है.

Land Scam in Ranchi
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रांची: राजधानी में जमीन जालसाजी के कोलकाता कनेक्शन का खुलासा हुआ है. ईडी ने इसकी जांच शुरू कर दी है. बंगला पर्चा का इस्तेमाल जमीनों की हड़पा गया है. फॉरेंसिक जांच में ये चोरी पकड़ी गई है. दरअसल, भूमाफिया और अंचल कर्मियों के साथ-साथ जमीन से संबंध रखने वाले दूसरे विभाग के कर्मचारियों की मिलीभगत से खाली पड़ी जमीनों पर कब्जा किया जाता था. इसमें बेहद कीमती जमीन भी शामिल है. भूमाफिया और सरकारी कर्मचारियों का गठजोड़ इतना मजबूत है कि उन्होंने सेना की जमीन पर भी कब्जा कर लिया. हालांकि, अब इस गठजोड़ को तोड़ने के लिए ईडी की एंट्री हो चुकी है. ईडी की जांच के बाद अपनी जमीन गवां चुके कई लोगों की आस जगी है कि शायद अब उनकी कीमती जमीन उन्हें वापस मिल जाए.

यह भी पढ़ें: Jharkhand ED Raid: ईडी की हिरासत में बड़गाईं अंचल कर्मचारी भानु प्रताप, घर से मिले कई महत्वपूर्ण दस्तावेज

बंगला पर्चा का इस्तेमाल, फॉरेंसिक जांच में पकड़ी गई चोरी: ईडी ने अपनी जांच में यह पाया है कि अधिकांश खाली पड़ी या लीज वाली जमीनों को हड़पने के लिए उसके मालिकाना हक को पश्चिम बंगाल दिखाया गया है. इस नेचर की जमीन को बंगला पर्चा वाली जमीन कहा जाता है. सेना की जमीन को हड़पने के लिए भी कोलकाता के ही जाली कागजों का इस्तेमाल किया गया. जांच के दौरान ईडी ने जमीन के मूल कागजात और गिरफ्तार प्रदीप बागची के मूल कागजात की जब फॉरेंसिक जांच कराई तो मूल दस्तावेज में हेराफेरी पकड़ी गई. इसी तरह चोसायर होम जमीन मामले में भी फर्जी कागजात तैयार कर जमीन हड़पी गई थी.

उमेश कुमार गोप की पुश्तैनी जमीन पर माफिया का कब्जा: सेना की जमीन के साथ साथ रांची के चोसायर होम स्थित 99 डिसमिल जमीन मामले की जांच भी ईडी कर रही है. यह जमीन उमेश कुमार गोप नाम के व्यक्ति की पुस्तैनी जमीन है, लेकिन करोड़ों रुपए की इस जमीन पर माफिया की नजर पड़ी, जमीन हड़पने के लिए फर्जी कागजात तैयार किए गए और जमीन पर कब्जा कर लिया गया. जमीन से असली मालिक यानी उमेश कुमार गोप को बेदखल कर दिया गया. उमेश अपनी जमीन के असली कागजात लेकर अंचल कार्यालय का चक्कर लगाते रहें, लेकिन उनकी एक ना चली. भूमाफिया और अंचल कर्मियों का सिंडिकेट इतना मजबूत था कि उमेश को जान से मारने की धमकियां तक मिलने लगी.

सरकारी जमीन भी निशाने पर: सबसे हैरत की बात तो यह है कि राजधानी में सिर्फ आर्मी की जमीन की ही हड़पने की साजिश नहीं रची गई थी. हर उस जमीन पर भू माफियाओं की नजर थी, जो बेची नहीं जा सकती थी. सरकारी जमीन पर कब्जे के लिए भी ईडी के द्वारा गिरफ्तार अफसर अली, इम्तियाज अहमद, सद्दाम समेत अन्य के गिरोह ने फर्जी कागजात तैयार करवाए थे. इस जालसाजी में बड़गाईं अंचल कर्मी भानु प्रताप प्रसाद के द्वारा भू माफियाओं की मदद की जाती थी. ईडी ने 9 फरवरी को बड़गाईं अंचल और 15 फरवरी को रजिस्ट्रार ऑफ एस्योरेंस कोलकाता के कार्यालय का सर्वे किया था. इस सर्वे के दौरान दोनों ही जगहों पर कागजातों में छेड़छाड़ और रिकॉर्ड बदलने की बात की पुष्टि हुई थी. सर्वे के दौरान ईडी के अफसर चौंक गए थे, क्योंकि इतने बड़े पैमाने पर अंचल में अनियमितता थी जिसके बल पर किसी भी जमीन पर कब्जा किया जा सकता था.

यह भी पढ़ें: सेना जमीन घोटाला, बाबूलाल मरांडी का आरोप, छवि रंजन ने कटवा दी सीएम की नाक, बर्खास्तगी का केंद्र को भेजें प्रस्ताव

माफियाओं ने कर दी जालसाजी की पराकाष्ठा: ईडी के द्वारा गिरफ्तार किए गए जालसाज प्रदीप बागची ने खुद को जमीन का असली रैयत दिखाने के लिए एक दस्तावेज तैयार किया था. जिसमें बताया गया है कि 1932 में उसके पिता ने उस जमीन को रैयतों से खरीदी थी और उसका पंजीयन कोलकाता रजिस्ट्री कार्यालय में कराया था. हैरानी की बात तो यह है कि उसने 1932 का जो कागजात पेश किया है, उसमें कोलकाता को पश्चिम बंगाल में दिखाया गया है, जबकि उस वक्त केवल बंगाल था. पश्चिम बंगाल 1947 में अस्तित्व में आया था. इसी तरह 1932 के उस दस्तावेज में क्रेता, विक्रेता और गवाहों के एड्रेस के साथ पिन कोड का उल्लेख है. जबकि पोस्टल इंडेक्स नंबर 15 अगस्त 1972 को भारत में लागू हुआ था. जालसाजी की पराकाष्ठा तो तब दिखी जब, फर्जी दस्तावेज में एक गवाह को जिला भोजपुर बिहार का बताया गया था, जबकि बिहार का भोजपुर जिला 1972 में अस्तित्व में आया था. उससे पहले यह शाहाबाद जिला का हिस्सा था. हालांकि अब प्रदीप बागची की पूरी जालसाजी ईडी के द्वारा पकड़ी गई है.

जमीन के नेचर में छेड़छाड़: ईडी की जांच रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि रांची के बड़गाईं अंचल में भारी पैमानें पर कागजातों के साथ छेड़छाड़ की गयी ताकि जमीन के काल्पनिक या फर्जी मालिक को खड़ा किया जा सके. मौजा गाड़ी के प्लाट नंबर 28 के रजिस्टर दो के सेल डीड, एमएस प्लाट 557 पीएस केस नंबर 192 मोरहाबादी की जमीन में भी सेल डीड में ऐसी ही गड़बड़ी ईडी ने पकड़ी है. एक जमीन चेशायर होम रोड की थी, जबकि दूसरी सेना के कब्जे वाली जमीन थी. इसी तरह ईडी ने 15 फरवरी को रजिस्ट्रार ऑफ एस्योरेंस कोलकाता के दफ्तर में सर्वे किया. इस सर्वे में सेना के जमीन से जुड़ी रजिस्टर के सेल डीड 4369/1932, सेल डीड 184/1984 प्लाट नंबर 28 और सेल डीड 1813/1943 के कागजात में छेड़छाड़ पाया गया. ईडी ने पाया है कि दोनों ही जगहों पर जमीन का रिकॉर्ड रखने वाले कर्मियों से मिलीभगत कर छेड़छाड़ की गई, ताकि जमीन के फर्जी मालिक खड़े किए जा सकें.

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रांची: राजधानी में जमीन जालसाजी के कोलकाता कनेक्शन का खुलासा हुआ है. ईडी ने इसकी जांच शुरू कर दी है. बंगला पर्चा का इस्तेमाल जमीनों की हड़पा गया है. फॉरेंसिक जांच में ये चोरी पकड़ी गई है. दरअसल, भूमाफिया और अंचल कर्मियों के साथ-साथ जमीन से संबंध रखने वाले दूसरे विभाग के कर्मचारियों की मिलीभगत से खाली पड़ी जमीनों पर कब्जा किया जाता था. इसमें बेहद कीमती जमीन भी शामिल है. भूमाफिया और सरकारी कर्मचारियों का गठजोड़ इतना मजबूत है कि उन्होंने सेना की जमीन पर भी कब्जा कर लिया. हालांकि, अब इस गठजोड़ को तोड़ने के लिए ईडी की एंट्री हो चुकी है. ईडी की जांच के बाद अपनी जमीन गवां चुके कई लोगों की आस जगी है कि शायद अब उनकी कीमती जमीन उन्हें वापस मिल जाए.

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बंगला पर्चा का इस्तेमाल, फॉरेंसिक जांच में पकड़ी गई चोरी: ईडी ने अपनी जांच में यह पाया है कि अधिकांश खाली पड़ी या लीज वाली जमीनों को हड़पने के लिए उसके मालिकाना हक को पश्चिम बंगाल दिखाया गया है. इस नेचर की जमीन को बंगला पर्चा वाली जमीन कहा जाता है. सेना की जमीन को हड़पने के लिए भी कोलकाता के ही जाली कागजों का इस्तेमाल किया गया. जांच के दौरान ईडी ने जमीन के मूल कागजात और गिरफ्तार प्रदीप बागची के मूल कागजात की जब फॉरेंसिक जांच कराई तो मूल दस्तावेज में हेराफेरी पकड़ी गई. इसी तरह चोसायर होम जमीन मामले में भी फर्जी कागजात तैयार कर जमीन हड़पी गई थी.

उमेश कुमार गोप की पुश्तैनी जमीन पर माफिया का कब्जा: सेना की जमीन के साथ साथ रांची के चोसायर होम स्थित 99 डिसमिल जमीन मामले की जांच भी ईडी कर रही है. यह जमीन उमेश कुमार गोप नाम के व्यक्ति की पुस्तैनी जमीन है, लेकिन करोड़ों रुपए की इस जमीन पर माफिया की नजर पड़ी, जमीन हड़पने के लिए फर्जी कागजात तैयार किए गए और जमीन पर कब्जा कर लिया गया. जमीन से असली मालिक यानी उमेश कुमार गोप को बेदखल कर दिया गया. उमेश अपनी जमीन के असली कागजात लेकर अंचल कार्यालय का चक्कर लगाते रहें, लेकिन उनकी एक ना चली. भूमाफिया और अंचल कर्मियों का सिंडिकेट इतना मजबूत था कि उमेश को जान से मारने की धमकियां तक मिलने लगी.

सरकारी जमीन भी निशाने पर: सबसे हैरत की बात तो यह है कि राजधानी में सिर्फ आर्मी की जमीन की ही हड़पने की साजिश नहीं रची गई थी. हर उस जमीन पर भू माफियाओं की नजर थी, जो बेची नहीं जा सकती थी. सरकारी जमीन पर कब्जे के लिए भी ईडी के द्वारा गिरफ्तार अफसर अली, इम्तियाज अहमद, सद्दाम समेत अन्य के गिरोह ने फर्जी कागजात तैयार करवाए थे. इस जालसाजी में बड़गाईं अंचल कर्मी भानु प्रताप प्रसाद के द्वारा भू माफियाओं की मदद की जाती थी. ईडी ने 9 फरवरी को बड़गाईं अंचल और 15 फरवरी को रजिस्ट्रार ऑफ एस्योरेंस कोलकाता के कार्यालय का सर्वे किया था. इस सर्वे के दौरान दोनों ही जगहों पर कागजातों में छेड़छाड़ और रिकॉर्ड बदलने की बात की पुष्टि हुई थी. सर्वे के दौरान ईडी के अफसर चौंक गए थे, क्योंकि इतने बड़े पैमाने पर अंचल में अनियमितता थी जिसके बल पर किसी भी जमीन पर कब्जा किया जा सकता था.

यह भी पढ़ें: सेना जमीन घोटाला, बाबूलाल मरांडी का आरोप, छवि रंजन ने कटवा दी सीएम की नाक, बर्खास्तगी का केंद्र को भेजें प्रस्ताव

माफियाओं ने कर दी जालसाजी की पराकाष्ठा: ईडी के द्वारा गिरफ्तार किए गए जालसाज प्रदीप बागची ने खुद को जमीन का असली रैयत दिखाने के लिए एक दस्तावेज तैयार किया था. जिसमें बताया गया है कि 1932 में उसके पिता ने उस जमीन को रैयतों से खरीदी थी और उसका पंजीयन कोलकाता रजिस्ट्री कार्यालय में कराया था. हैरानी की बात तो यह है कि उसने 1932 का जो कागजात पेश किया है, उसमें कोलकाता को पश्चिम बंगाल में दिखाया गया है, जबकि उस वक्त केवल बंगाल था. पश्चिम बंगाल 1947 में अस्तित्व में आया था. इसी तरह 1932 के उस दस्तावेज में क्रेता, विक्रेता और गवाहों के एड्रेस के साथ पिन कोड का उल्लेख है. जबकि पोस्टल इंडेक्स नंबर 15 अगस्त 1972 को भारत में लागू हुआ था. जालसाजी की पराकाष्ठा तो तब दिखी जब, फर्जी दस्तावेज में एक गवाह को जिला भोजपुर बिहार का बताया गया था, जबकि बिहार का भोजपुर जिला 1972 में अस्तित्व में आया था. उससे पहले यह शाहाबाद जिला का हिस्सा था. हालांकि अब प्रदीप बागची की पूरी जालसाजी ईडी के द्वारा पकड़ी गई है.

जमीन के नेचर में छेड़छाड़: ईडी की जांच रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि रांची के बड़गाईं अंचल में भारी पैमानें पर कागजातों के साथ छेड़छाड़ की गयी ताकि जमीन के काल्पनिक या फर्जी मालिक को खड़ा किया जा सके. मौजा गाड़ी के प्लाट नंबर 28 के रजिस्टर दो के सेल डीड, एमएस प्लाट 557 पीएस केस नंबर 192 मोरहाबादी की जमीन में भी सेल डीड में ऐसी ही गड़बड़ी ईडी ने पकड़ी है. एक जमीन चेशायर होम रोड की थी, जबकि दूसरी सेना के कब्जे वाली जमीन थी. इसी तरह ईडी ने 15 फरवरी को रजिस्ट्रार ऑफ एस्योरेंस कोलकाता के दफ्तर में सर्वे किया. इस सर्वे में सेना के जमीन से जुड़ी रजिस्टर के सेल डीड 4369/1932, सेल डीड 184/1984 प्लाट नंबर 28 और सेल डीड 1813/1943 के कागजात में छेड़छाड़ पाया गया. ईडी ने पाया है कि दोनों ही जगहों पर जमीन का रिकॉर्ड रखने वाले कर्मियों से मिलीभगत कर छेड़छाड़ की गई, ताकि जमीन के फर्जी मालिक खड़े किए जा सकें.

Last Updated : Apr 16, 2023, 12:53 PM IST
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