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कोयला कंपनियों पर रॉयल्टी बकाया मामले में खुलासा, कोयला मंत्री प्रह्लाद जोशी के पत्र से सामने आई जानकारी

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Published : Mar 5, 2021, 12:00 AM IST

Updated : Mar 5, 2021, 12:58 AM IST

झारखंड में कोल माइनिंग करने वाली कोयला कंपनियों पर हजारों करोड़ बकाया के मामले में नए तथ्य सामने आए हैं. केंद्रीय कोयला मंत्री प्रह्लाद जोशी के पत्र से चौकाने वाली जानकारी सामने आई है.कोयला मंत्री के अनुसार यह मामला बहुत पुराना है.

कोयला
कोयला

रांचीः राज्य सरकार द्वारा झारखंड में कोल माइनिंग करने वाली कोयला कंपनियों पर भूमि लगान के हजारों करोड़ बकाया होने का दावा किया जाता रहा है. हेमंत सोरेन के नेतृत्व में बनी सरकार में तो यह मांग पिछले वर्ष काफी जोर पकड़ रही थी जिसे सुलझाने के लिए केन्द्रीय कोयला मंत्री प्रह्लाद जोशी ने कोरोना संकट के बीच 30 जुलाई 2020 को रांची में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से झारखंड मंत्रालय में बैठक कर विवाद को सुलझाने की कोशिश की थी.

केंद्रीय कोयला मंत्री प्रह्लाद जोशी का पत्र
केंद्रीय कोयला मंत्री प्रह्लाद जोशी का पत्र

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इस मामले में केंद्रीय कोयला मंत्री द्वारा राज्यसभा सांसद महेश पोद्दार को लिखे गए पत्र ने कई खुलासे किये हैं. महेश पोद्दार द्वारा पिछले वर्ष 21 अक्टूबर को राज्य सरकार द्वारा कोयला कंपनियों के ऊपर हजारों करोड़ रूपये बकाया होने के दावे की सत्यता जानने के लिए कोयला मंत्री प्रह्लाद जोशी को पत्र लिखा था.

28 जनवरी 2021 को कोयला मंत्री ने तत्काल उत्तर दिया था कि मामले की जांच करायी जा रही है. अंतिम रूप से 24 फरवरी 2021 को केंद्रीय कोयला मंत्री ने जो जानकारी पत्र के माध्यम से उपलब्ध करायी है उसके मुताबिक यह मामला बहुत पुराना है.

वर्तमान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से पूर्व अविभाजित बिहार की सरकार ने 1999 में और राज्य विभाजन के बाद 2002 तथा 2007 में झारखंड सरकार ने केंद्र के समक्ष यह मामला उठाया था. 2002 में बाबूलाल मरांडी भाजपा नीत सरकार के मुख्यमंत्री थे और 2007 में निर्दलीय मधु कोड़ा मुख्यमंत्री थे और सरकार झामुमो, कांग्रेस और राजद के समर्थन से चल रही थी.

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केंद्रीय कोयला मंत्री प्रहलाद जोशी ने अपने पत्र में एक बड़ा खुलासा भी किया है. भारत सरकार की कोयला कंपनियों पर लगान बकाये से सम्बंधित झारखंड सरकार के दावे को भारत सरकार के तत्कालीन कोयला मंत्री ने 6 जनवरी 2014 को सिरे से खारिज कर दिया था.

भारत सरकार के तत्कालीन कोयला मंत्री ने झारखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री को पत्रांक 49029/5/2013-पीआरआईडब्ल्यू – I के माध्यम से साफ कहा था कि – “ कोल बीयरिंग एक्ट यानि सीबीए अधिनियम, 1957 की धारा – 10 के अनुसार, धारा 9 के तहत घोषणा के सरकारी राजपत्र में प्रकाशन पर, यथास्थिति, भूमि या भूमि में या उस पर के अधिकार समस्त विल्लंगमों से मुक्त होकर आत्यांतिक रूप से केन्द्रीय सरकार में निहित होंगे.

उपर्युक्त प्रावधानों के आधार पर, कोयला खानों या कोकिंग कोयला खानों के सम्बन्ध में केंद्र सरकार के अधिकारों का उपयोग सीबीए अधिनियम, 1957 की धारा 11 के आधार पर सरकारी कंपनी द्वारा किया जाता है.

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चूंकि न तो केंद्र सरकार और न ही सरकारी कम्पनी, जिनमें केंद्र सरकार के अधिकार निहित हैं, राज्य सरकार के पट्टेदार हैं, इस तरह की भूमि पर किसी भी तरह के सतह किराये या भूमि के किराये के भुगतान का प्रश्न ही नहीं उठता, जहां तक सीबीए अधिनियम, 1957 में धारा 18 क का सम्बन्ध है, यह खंड राज्य सरकार द्वारा दिए गए खनन पट्टे के तहत रॉयल्टी के भुगतान की सुविधा देता है.

कोयला कम्पनियां राज्य सरकार को समय-समय पर निर्धारित ऐसी रॉयल्टी का भुगतान कर रही है.” उल्लेखनीय है कि जब कोयला खदानों के ऊपर भूमि लगान बकाये के मसले पर ठेंगा दिखाते हुए, टका सा जवाब दे दिया था, तब केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए गठबंधन सत्तासीन था और झारखंड का नेतृत्व हेमंत सोरेन ही कर रहे थे, कांग्रेस और आरजेडी तब भी सरकार में शामिल थी.

सांसद महेश पोद्दार का मानना है कि इस लिहाज से, इस मामले में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र की भाजपा सरकार को झारखण्ड के प्रति ज्यादा उदार और संवेदनशील कहा जा सकता है जिसके कारण दिनांक 30 जुलाई 2020 को झारखण्ड के मुख्यमंत्री के साथ रांची आकर केंद्रीय कोयला मंत्री ने एक बैठक की थी जिसमे झारखण्ड सरकार को भूमि लागत के भुगतान सहित विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की गयी थी.

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इस बैठक में राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान में भारत सरकार के जनजातीय मामलों के मंत्री का दायित्व संभाल रहे अर्जुन मुंडा भी शामिल थे. केन्द्रीय कोयला मंत्री ने पूर्ववर्ती यूपीए सरकार के नकारात्मक रवैये की जगह संवेदनशील और उदार रवैया दिखाया और बैठक में सैद्धांतिक रूप से यह निर्णय लिया गया कि सीबीए अधिनियम के तहत अधिग्रहित सरकारी भूमि का भुगतान कृषि भूमि के वर्तमान सर्किल दर के अनुसार किया जाय.

कोयला मंत्रालय ने 250 करोड़ का किया भुगतान

सीसीएल द्वारा अधिग्रहित भूमि के संयुक्त सत्यापन के बाद राज्य सरकार को मुआवजे का भुगतान किया जायेगा. इसके साथ-साथ यह निर्णय भी लिया गया था कि सीसीएल द्वारा अधिग्रहित सरकारी भूमि का ठीक परिमाप निर्धारित करने के लिए राज्य सरकार सीआईएल/सीसीएल के अधिकारियों के साथ एक समिति गठित करे. अंतरिम रूप से उसी बैठक के दौरान भारत सरकार के कोयला मंत्रालय द्वारा 250 करोड़ का भुगतान किया भी गया.

महेश पोद्दार ने कहा कि केन्द्रीय कोयला कंपनियों पर बकाये का मामला वाजिब है या नहीं, ये तो जानकार तय करेंगे और उपयुक्त फोरम पर तय होगा पर केन्द्रीय कोयला मंत्री के पत्र से स्पष्ट है कि केंद्र में सत्तासीन रही कांग्रेस या यूपीए की सरकारों ने कभी भी झारखण्ड की मांग को इज्जत नहीं दी.

केवल ठेंगा दिखाकर टालती रही, जबकि भाजपा सरकार ने पूर्ववर्ती यूपीए सरकार की दलीलों की आड़ न लेकर झारखंड के प्रति न केवल भावनात्मक लगाव को प्राथमिकता दी.

बल्कि 250 करोड़ देकर इसकी शुरुआत की जो इस बात का प्रमाण है कि झारखण्ड की मांग के प्रति केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार संवेदनशील है. इसके बावजूद राज्य सरकार के कांग्रेसी मंत्री आये दिन केंद्र पर उपेक्षा का आरोप लगाते हैं और अपनी करतूतों पर पर्दा डालने की कोशिश करते हैं.

महेश पोद्दार ने कहा कि कष्ट का विषय यह भी है कि केंद्र के इस उदार रवैये और बैठक में कृषि भूमि के वर्तमान सर्किल दर पर भुगतान की सहमति बनने के बाद भी झारखण्ड सरकार अभी भी सीबीए (एएंडडी) अधिनियम, 1957 के तहत अधिग्रहित सरकारी भूमि और साथ ही सरकारी जंगल-झाड़ी भूमि के लिए वाणिज्यिक दर के आधार पर भुगतान जमा करने हेतु राज्य में स्थित सीसीएल और अन्य कोयला कंपनियों दबाव बनाया जा रहा है.

Last Updated : Mar 5, 2021, 12:58 AM IST
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