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वायरस के नाम पर बड़ा स्कैम! साइबर अपराधियों ने बिछा रखा है फर्जी कॉल सेंटर का जाल, विदेशों में भी शिकार हो रहे लोग

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Published : Aug 4, 2021, 10:55 PM IST

अगर आप भी कंप्यूटर या लैपटॉप पर काम करते हैं तो ये आपके लिए बहुत काम की खबर है. ऐसा इसलिए क्योंकि कई बार नेट चलाने के दौरान कंप्यूटर पर लगातार पॉपअप्स आते रहते हैं. अगर कोई अनचाहे पॉपअप पर क्लिक कर देता है तो वह साइबर अपराधियों के चक्कर में फंस सकता है.

Cyber fraud in the name of computer virus
कंप्यूटर वायरस के नाम पर साइबर ठगी

रांची: साइबर अपराधी समस्या पैदा करते हैं और फिर उसके समाधान के लिए खुद ही पहुंच जाते हैं. ठगी के लिए साइबर अपराधी नए-नए तरह के हथकंडे अपना रहे हैं. आलम यह है कि रांची, धनबाद जैसे शहरों से बैठे-बैठे विदेशी लोगों के साथ भी ठगी की जा रही है और यह सब संभव हो रहा है फर्जी कॉल सेंटर के माध्यम से.

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क्या है मामला ?

आप अपने कंप्यूटर पर काम कर रहे हैं और अचानक आपके कंप्यूटर पर एक समस्या आ खड़ी होती है. इसकी वजह से आपका कंप्यूटर सही तरीके से काम नहीं करता है. अचानक स्क्रीन पर एक पॉपअप विंडो चमकने लगता है. उसी दौरान स्क्रीन पर एक टोल फ्री नंबर शो करता है और उसमें लिखा रहता है कि 'कॉल फॉर समाधान'. आप अपनी समस्या का समाधान ऑनलाइन तरीके से ही करने की चाहत में ऑनलाइन नंबर निकाल कर उस टेक्निकल एक्सपर्ट से अपने सिस्टम को ठीक करने की गुहार लगाते हैं.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

यहां फोन के एक तरफ जो शख्स होता है वह अपने कंप्यूटर पर आई एक समस्या का समाधान चाह रहा होता है. वहीं, दूसरी तरफ बैठा 'टेक्निकल एक्सपर्ट' समाधान बताता है. इसकी एवज में यूजर फीस के रूप में एक तय रकम चुकाता है और बात खत्म हो जाती है. यहां आप सोच रहे होंगे कि मामला बिल्कुल साफ सुथरा है लेकिन यह बात इतनी सीधी नही है. यहां बड़े ही चालाकी से एक व्यक्ति के साथ ठगी की वारदात को अंजाम दे दिया गया.

टेक सपोर्ट स्कैम से फंसा रहे लोगो को

दरअसल, साइबर अपराधियों ने इन दिनों आम लोगों से ठगी के लिए नए तरीके खोज लिए हैं. इस ठगी का नाम है टेक सपोर्ट स्कैम. झारखंड सीआईडी के साइबर डीएसपी सुमित कुमार के अनुसार वर्तमान समय में साइबर अपराधी लोगों से ठगी के लिए छोटे-छोटे फर्जी कॉल सेंटर चला रहे हैं. साइबर अपराधी कंप्यूटर के सिक्योरिटी सिस्टम को चकमा देकर उसकी स्क्रीन पर एक पॉप अप विंडो चमकाते हैं. इस पर यह चेतावनी लिखी होती है कि उनके कंप्यूटर में एक वायरस घुस गया है जो उनके क्रेडिट कार्ड, फेसबुक और ई-मेल जैसी जानकारियां चुरा रहा है. इस दौरान यूजर को यह बताया जाता है कि अगर उन्होंने सिस्टम को बंद किया तो आगे होने वाले नुकसान को रोकने के लिए विंडोज का सिक्योरिटी सिस्टम उसे ब्लॉक कर देगा.

मैसेज के आखिरी में एक नंबर आता है. साथ ही निर्देश भी रहता है कि आप अपने कंप्यूटर को लॉक होने से बचाने के लिए अगले 5 मिनट के अंदर इस पर फोन करें. फोन करने पर दूसरी तरफ मौजूद साइबर अपराधी रिमोट एक्सेस सॉफ्टवेयर डाउनलोड करने को कहता है. जिसके बाद उस सॉफ्टवेयर की मदद से साइबर अपराधी कंप्यूटर का कंट्रोल अपने हाथ में ले लेता है और स्क्रीन पर कुछ दिखाकर यूजर को झांसे में ले लेता है. इसके समाधान के तौर पर साइबर अपराधी पांच से दस हजार रुपए क्लीनअप पैकेज का ऑफर देते हैं. फिर एक फर्जी क्लीन अप सॉफ्टवेयर को बेचने के नाम पर यूजर से पैसे का भुगतान करा लेता है. साइबर अपराधियों के झांसे में फंस कर यहां एक व्यक्ति जिसके सिस्टम में न कोई वायरस था, न ही कोई सफाई हुई और न कोई सॉफ्टवेयर खरीदा गया, लेकिन यूजर की जेब साफ हो गई.

रांची में बैठ कर विदेशों में ठगी

फर्जी कॉल सेंटर चलाने वाले साइबर अपराधी झारखंड में बैठकर विदेश में लोगों से ठगी को अंजाम देते हैं. राजधानी रांची में जब फर्जी कॉल सेंटर पर पुलिस ने दबिश दी थी तब यह खुलासा हुआ था कि यहां से बैठकर विदेश में रह रहे लोगों के सिस्टम में मालवेयर भेजकर उसे ठीक करने के बहाने उनसे ठगी की जा रही है. पुलिस के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि ठगी तो रांची से हो रही है, लेकिन उसके विक्टिम विदेशों के हैं. इस वजह से साइबर अपराधियों के खिलाफ मामला दर्ज नहीं हो पाता है और इसी का फायदा साइबर अपराधी उठा रहे हैं.

वीपीएन का फायदा उठा रहे अपराधी

पुलिस की जांच में यह बात सामने आई है कि वीपीएन का फायदा उठाते हुए साइबर अपराधियों द्वारा नकली वीपीएन एप और साफ्टवेयर को विकसित कर लोगों को ठगा जा रहा है. साइबर अपराधी वीपीएन वितरित करने वाली वेबसाइट जैसी दिखने वाली नकली वेबसाइट बनाते हैं. वीपीएन के माध्यम से साइबर अपराधी सर्वर को बदलकर ऐसा दिखाते हैं जैसे वह सर्वर विदेश से काम कर रहा है. जांच में यह बात सामने आई है कि दिल्ली-नोएडा जैसे शहरों में बैठकर ही साइबर अपराधी ठगी को अंजाम दे रहे हैं.

साइबर डीएसपी सुमित कुमार के अनुसार यह एक बहुत बड़ा संगठित गिरोह है. साइबर पुलिस लगातार इस पर काम कर रही है. अभी तक रांची और धनबाद में ऐसे कॉल सेंटर पर छापेमारी कर उसे बंद किया गया है. पुलिस के सामने सबसे बड़ी कठिनाई यह है कि ऐसे मामलों के विक्टिम सामने नहीं आ रहे हैं. इसलिए पुलिस अब ऐसे मामलों को सॉल्व करने के लिए एमएचए(गृह मंत्रालय) के संपर्क में है ताकि वहां से मिले गाइडलाइंस के आधार पर आगे काम किया जा सके. जिन बड़े शहरों में इस तरह की ठगी की गई है वहां के केस स्टडीज का झारखंड पुलिस अध्ययन कर रही.

टेक्निकल बेरोजगार युवक निशाने पर

पुलिस की जांच में यह बात सामने आई है कि फर्जी कॉल सेंटर झारखंड के कई शहरों में चल रहे हैं. इन कॉल सेंटर में बीटेक, बीसीए कर चुके युवाओं को नौकरी देकर उनका इस्तेमाल साइबर अपराधी देश-विदेश में लोगों से ठगी करने के लिए कर रहे हैं. बेरोजगार टेक्निकल युवकों को फंसाने के लिए साइबर अपराधी अखबारों से लेकर जॉब पोर्टलों तक में विज्ञापन देते हैं. इसमें लिखा होता है कि दुनिया की बड़ी कंपनियों को सेवा देने वाले एक कॉल सेंटर के लिए ठीक-ठाक अंग्रेजी बोलने वाले ग्रेजुएट चाहिए. जिसके बाद साइबर अपराधियों के चुंगल में फंस कर बेरोजगार फर्जी कॉल सेंटर में नौकरी करने लगते हैं जहां उनसे कई तरह के फर्जी काम कराया जाता है. इसकी जानकारी उनको नहीं हो पाती है. राजधानी रांची और धनबाद से ऐसे मामले सामने आ चुके हैं जिसमें कॉल सेंटर के माध्यम से अमेरिका के लोगों को मालवेयर भेजकर उनसे ठगी की जा रही थी.

रांची के सिटी एसपी सौरभ के अनुसार बेरोजगार युवकों को किसी भी कॉल सेंटर में नौकरी ज्वाइन करने से पहले उस कॉल सेंटर की पूरी पड़ताल करनी चाहिए. अगर ऐसा नहीं करते हैं तो साइबर अपराधियों के चुंगल में फंस कर बेरोजगार युवक अपना करियर बर्बाद कर लेंगे.

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