ETV Bharat / state

झारखंड में नेस्तनाबूद हुआ भाकपा माओवादियों का शीर्ष नेतृत्व, जानिए क्या है इसके मायन

author img

By

Published : Apr 4, 2023, 5:22 PM IST

Updated : Apr 4, 2023, 7:08 PM IST

झारखंड में भाकपा माओवादी अब अंतिम सांसें गिन रहा है. इसके शीर्ष नेतृत्व के जेल चले जाने के बाद अब संगठन में नेतृत्व का संकट पैदा हो गया है.

CPI Maoists top leadership destroyed
डिजाइन इमेज

रांची: झारखंड में भाकपा माओवादियों के नेतृत्व को लगातार बड़े झटके लग रहे हैं. भाकपा माओवादियों के सेकेंड इन कमांड प्रशांत बोस उर्फ किशन दा और माओवादियों
थिंक टैंक माने जाने वाले कंचन दा उर्फ कबीर समेत दर्जनभर बड़े माओवादी नेताओं की गिरफ्तारी और दर्जन भर बड़े नक्सलियों ने आत्मसमर्पण कर दिया है. इसके बाद भाकपा माओवादियों के सामने नेतृत्व का संकट खड़ा हो गया है. आलम यह है कि जब भी संगठन अपने आप को मजबूत करने की कोशिश करता है, तभी उन पर पुलिस का कड़ा प्रहार हो जा रहा है. चतरा में एक साथ पांच इनामी नक्सलियों के एनकाउंटर में मारे जाने के बाद तो संगठन की कमर ही टूट गई है.

ये भी पढ़ें: Latehar News: नए और सुरक्षित ठिकानों की तलाश में नक्सली, पुराने गढ़ में तलाश रहे हैं जमीन

प्रशांत बोस के गिरफ्तारी के बाद चतरा कांड बड़ा झटका: बीते सोमवार को झारखंड में भाकपा माओवादियों के नेतृत्व को बड़ा झटका लगा, जब एक साथ पांच इनामी एनकाउंटर में मारे गए. दरअसल झारखंड पुलिस माओवादियों के शीर्ष नेतृत्व को टारगेट में रखकर अभियान चला रही है. मात्र ढाई सालों में झारखंड पुलिस के द्वारा बेहतर रणनीति के बल पर चलाए गए अभियान की वजह से भाकपा माओवादियों के शीर्ष नेतृत्व को लगातार झटके लगते रहे हैं. पुलिस के आंकड़े भी इस बात की गवाही दे रहे हैं कि झारखंड में पिछले ढाई सालों में जब कभी भी बड़े नक्सल कमांडर ने सक्रियता दिखाई उसे उसका गंभीर परिणाम भुगतना पड़ गया.

कब कब पकड़े गए बड़े उग्रवादी: झारखंड पुलिस मुख्यालय से मिले आंकड़ों के अनुसार साल 2020 से लेकर 2023 के जनवरी महीने तक कुल 1290 नक्सली गिरफ्तार हुए. इनमें कई बड़े नाम भी शामिल हैं, जिनकी गिरफ्तारी से संगठन को बड़ा झटका लगा. बड़े नक्सलियों को टारगेट कर अभियान चलाने की शुरुआत 2020 से शुरू हुई थी. इस दौरान कई बड़े और इनामी गिरफ्तार किए गए. वहीं, दूसरी तरफ माओवादियों से बूढ़ापहाड़, बुलबुल के जंगल छिनने के बाद, पुलिस और केंद्रीयबलों ने चाईबासा, सरायकेला और खूंटी के ट्राइजंक्शन पर एक करोड़ के माओवादी पतिराम मांझी के दस्ते को खदेड़ने में कामयाबी पाई थी, अब सोमवार को सीमांत इलाके में भी दो सैक कमांडरों और तीन सब जोनल कमांडरों के मारे जाने से माओवादियों की कमर इलाके में टूट गई है.

प्रमुख नाम जो गिरफ्तार हुए: प्रशांत बोस- इनाम एक करोड़, रूपेश कुमार सिंह, (सैक मेम्बर) प्रभा दी- इनाम 10 लाख, सुधीर किस्कू- इनाम 10 लाख, प्रशांत मांझी- इनाम 10 लाख, नंद लाल मांझी- इनाम 25 लाख, बलराम उराव- इनाम 10 लाख

बड़े माओवादी के आत्मसमर्पण से भी संगठन हुआ कमजोर: झारखंड में भाकपा माओवादियों को ताकतवर बनाने वाले कई बड़े नाम संगठन छोड़ कर पुलिस के शरण में आ चुके हैं. महाराज प्रमाणिक, विमल यादव, सुरेश सिंह मुंडा, भवानी सिंह, विमल लोहरा, संजय प्रजापति, अभय जी, रिमी दी, राजेंद्र राय जैसे बड़े माओवादी पुलिस के सामने हथियार डाल चुके हैं.

अरविंद जी के मौत के बाद स्थिति हुई खराब: पुलिस के द्वारा की गई तबाड़तोड़ करवाई की वजह से झारखंड के सबसे बड़े उग्रवादी संगठन भाकपा माओवादियों को अब उनके प्रभाव वाले इलाकों में ही बिखरने पर मजबूर कर दिया है. झारखंड में भाकपा माओवादियों के प्रभाव का बड़ा इलाका नेतृत्वविहीन हो गया है. झारखंड, छतीसगढ़ और बिहार तक बिस्तार वाला बूढ़ापहाड़ का इलाका माओवादियों के सुरक्षित गढ़ के तौर पर जाना जाता था, लेकिन अब बूढ़ापहाड़ के इलाके में पड़ने वाले पलामू, गढ़वा, लातेहार से लेकर लोहरदगा तक के इलाके में माओवादियों के लिए नेतृत्व का संकट हो गया है.

गौरतलब है कि साल 2018 के पूर्व सीसी मेंबर देवकुमार सिंह उर्फ अरविंद जी बूढ़ापहाड़ इलाके का प्रमुख था, देवकुमार सिंह की बीमारी से मौत के बाद तेलगांना के सुधाकरण को यहां का प्रमुख बनाया गया था, लेकिन साल 2019 में तेलंगाना पुलिस के समक्ष सुधाकरण ने सरेंडर कर दिया. इसके बाद बूढ़ा इलाके की कमान विमल यादव को दी गई थी. विमल यादव ने फरवरी 2020 तक बूढ़ापहाड़ के इलाके को संभाला, इसके बाद बिहार के जेल से छूटने के बाद मिथलेश महतो को बूढ़ापहाड़ भेजा गया. तब से वह ही यहां का प्रमुख था, लेकिन मिथिलेश को भी बिहार में गिरफ्तार कर लिया गया. नतीजा अब सिर्फ और सिर्फ कोल्हान इलाके में ही नक्सलियों का शीर्ष नेतृत्व बचा हुआ है.

क्या है इस सफलता के मायने: जानकार बताते हैं कि मारे गए माओवादियों के प्रभाव वाले इलाके चतरा-पलामू सीमा, चतरा-गया और औरंगाबाद में माओवादी कमजोर होंगे. गौतम और चार्लीस की पहचान माओवादियों के बड़े कमांडर के तौर पर रही थी. वहीं बूढ़ापहाड़ से निकले माओवादियों के भी इसी इलाके में शरण लेने की सूचना थी, लेकिन माओवादियों के नेतृत्व का अचानक सफाया हो जाने से नए सिरे से लीडरशिप तैयार करने की चुनौती इलाके में होगी.

स्थानीय नेतृत्व में नाराजगी रही है, अब और होगा कलह: भाकपा माओवादियों में बाहर के नेताओं को तवज्जो मिलने से स्थानीय माओवादी नेतृत्व में शुरू से ही नाराजगी रही है. यही वजह है कि हाल के दिनों में झारखंड के स्थानीय माओवादियों ने सरेंडर किया है, साथ ही कई नेता सरेंडर के लिए एजेंसियों के संपर्क में हैं. सुधाकरण को बाहरी होने की वजह से ही झारखंड छोड़ना पड़ा था. अभी भी झारखंड में सक्रिय मात्र दो शीर्ष माओवादी बंगाल के ही हैं जिनके नेतृत्व में काम करने के लिए कई नक्सल कैडर तैयार नहीं हैं, आने वाले दिनों में आपसी कलह भी भाकपा माओवादियों को भारी पड़ेगा.

Last Updated : Apr 4, 2023, 7:08 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.