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आज से शुरू हो रहा है पितृपक्ष, जानिए क्यों किया जाता है मोक्ष की नगरी गयाजी में पिंडदान?

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Published : Sep 1, 2020, 10:46 AM IST

गया को तीर्थों का प्राण कहा गया है. संपूर्ण भारत में गया ही ऐसा शहर है जिसके लिए लोग श्रद्धा से गया जी कहकर संबोधित करते हैं. इस शहर की चर्चा ऋग्वेद में भी है. पितृपक्ष के लिए गया जी विश्वभर में जाना जाता है. पढ़ें पूरी खबर...

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पिंडदान

गया: आज से पितृपक्ष शुरू हो रहा है, भारतीय धर्म शास्त्र और कर्म कांड में पितृ पक्ष को बहुत महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है. 17 दिनों का पितृपक्ष 1 सितंबर से शुरू होकर 17 सितंबर को खत्म होगा. इस अवधि में लोग अपने पूर्वजों (पितरों) को पिंडदान करेंगें. बात पितृपक्ष की हो और बिहार के गयाजी का नाम ना लिया जाए, तो यह अधूरा सा लगता है. चलिए जानते हैं, विश्व प्रसिद्ध गया जी की अलौकिक कहानी.

देखें पूरी खबर.

विश्वभर में गया एक मात्र शहर है, जिसे नाम के साथ जी लगाया जाता है. मोक्ष की नगरी गयाजी सनातन धर्मावलंबियों के लिए खास स्थान है. पितरों के मोक्ष के लिए यहां देश के कोने-कोने से ही नहीं, बल्कि विदेशों से भी श्रद्धालु पहुंचते हैं. गया जी में फल्गू नदी की रेत के बने पिंड और पानी के तर्पण करने से ही पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है. धार्मिक वेद पुराणों में गया जी की पौराणिक कहानियां बयां हैं.

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विष्णपद मंदिर, गया जी

अंतिम पुरुषार्थ का स्थान गयाजी
मनुष्य के लिये वेदों में चार पुरुषार्थों का नाम लिया गया है, ये चार धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष हैं. ऐसे में अंतिम पुरुषार्थ मोक्ष की प्राप्ति का स्थान गयाजी को माना गया है. जब तीन पुरुषार्थ सार्थक हैं, तब ही मोक्ष सुलभ हो सकता है.

पितृपक्ष में गयाजी आते हैं पितर
पितृपक्ष यानी पितरों का पक्ष, इस पक्ष में पीतर अपने लोक से पृथ्वी लोक के गयाजी में आते हैं. कहा जाता है कि गयाजी में पीतर अपने वंशजों को देखकर काफी प्रसन्न होते हैं. यहां आटा, फल, फूल, भोजन और कुछ नहीं मिले, तो बालू का पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष मिल जाता है. उन्हें बैकुंठ की प्राप्ति होती है.

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गया कूप वेदी

ब्रह्मा पुत्र ने शुरू किया पितृपक्ष में पिंडदान
पितृपक्ष में पिंडदान करने की शुरुआत ब्रह्मा जी के पुत्र ने शुरू की थी. वायु पुराण की कथा के अनुसार, 'प्राचीन काल में गयासुर ने दैत्यों के गुरु शंकराचार्य की सेवा कर वेद, वेदांत, धर्म तथा युद्ध कला में महारत हासिल की. इसके बाद उसने भगवान विष्णु की तपस्या कर उन्हें भी प्रसन्न कर लिया. भगवान विष्णु ने गयासुर को मनचाहा वरदान मांगने की बात कह दी. इसपर गयासुर ने वरदान मांगते हुए कहा कि भगवान जो भी मेरा दर्शन करे, वह सीधे बैकुंठ जाए. भगवान विष्णु तथास्तु कह कर चले गए.

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पिंडदान

स्वर्ग में मचा हाहाकार
भगवान विष्णु से वरदान प्राप्त करते ही गयासुर का दर्शन और स्पर्श करके दैत्य, असुर, दानव सभी मोक्ष की प्राप्ति करने लगे. नतीजा यह हुआ कि यमराज सहित अन्य देवताओं का अस्तित्व संकट में आने लगा. फिर, ब्रह्मा जी ने देवताओं को बुलाकर सभा की और विचार विमर्श किया. इसके बाद भगवान विष्णु ने कहा कि आप सभी गयासुर उसके शरीर पर महायज्ञ करने के लिए राजी करें.

उसके बाद ब्रह्मा जी गयासुर के पास गए. उन्होंने गयासुर से कहा कि मुझे यज्ञ करने के लिए तुम्हारा शरीर चाहिए. तुम्हारे शरीर से अधिक पवित्र स्थल कहीं दिखाई नहीं पड़ रहा है. ब्रह्मा जी के आग्रह में गयासुर यज्ञ के लिए अपना शरीर दे दिया.

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यज्ञ के लिए शरीर किया समर्पित
गयासुर के शरीर पर देवता यज्ञ करने लगे. इस दौरान उसका शरीर पांच कोस में फैला हुआ था, उसका शरीर उत्तर और पैर दक्षिण दिशा में था. यज्ञ के दौरान गयासुर का शरीर कंपन करने लगा, तो ब्रह्मा जी ने एक शिला उसकी छाती पर रखी दी. इसके बाद भी गयासुर का शरीर कंपन करता रहा. यह देख भगवान विष्णु खुद यज्ञ स्थल पर पहुंचे. उन्होंने, गयासुर के सीने पर रखे धर्मशिला पर अपना चरण रखकर दबाते हुए गयासुर से कहा, 'अंतिम क्षण में मुझसे चाहे जो वर मांग लो.

पिंडदान से मिटते जाते हैं पाप'
इस पर गयासुर ने कहा कि भगवान मैं जिस स्थान पर प्राण त्याग रहा हूं वो शिला में परिवर्तित हो जाए. उसमें मैं मौजूद रहूं. इस शिला पर आपके पवित्र चरण की स्थापना हो. साथ ही, जो इस शिला पर पिंडदान और मुंडन दान करे उसके पूर्वजों के तमाम पाप मिट जाएं और मुक्त होकर स्वर्ग में वास करे.

भगवान विष्णु के पदचिह्न अब भी मौजूद
साथ ही गयासुर ने मांगा कि जिस दिन पिंडदान होना बंद हो जाए उसी दिन इस क्षेत्र का नाश हो जाए. वर देने के बाद भगवान विष्णु ने शिला को इतने जोर से दबाया कि उनके चरण चिह्न स्थापित हो गए. वह निशान आज भी विष्णुपद मंदिर में मौजूद है. भगवान विष्णु द्वारा गयासुर को दिए गए वरदान के बाद से ही पितरों के मोक्ष के लिए गयाधाम में पिंड दान की परंपरा का आज तक चली आ रही है.

  • चीनी यात्री फाह्यान ने भी इसका जिक्र किया है. 441 ईसवीं तक भारत के विभिन्न स्थलों का भ्रमण कर उसने अपनी किताब में इसकी चर्चा की है.

17 दिनों तक 48 वेदियों पर होगा पिंडदान
इस वर्ष पिंडदान की अवधि 17 दिनों की है. यहां कुल 48 वेदियां हैं जिनपर पिंडदान करने में 15 से 17 दिनों का समय लगता है. प्रत्येक पिंडवेदी का अलग महत्व है. यहां कई सरोवर पिंडवेदी में है. बताया जाता है दशकों पहले यहां 365 वेदियां थीं. सभी पिंडवेदी पर दान करने में एक वर्ष लगता था. अब ये सभी विलुप्त हो गई हैं. विष्णुपद, फल्गू नदी, सीताकुंड, अक्षयवट और प्रेतशिला प्रमुख पिंडवेदी हैं.

  • पिंडवेदियों में प्रेतशिला, रामशिला, अक्षयवट, देवघाट, सीताकुंड, देवघाट, ब्राह्मणी घाट, पितामहेश्वर घाट काफी महत्वपूर्ण माने जाते हैं.

हालांकि, इस बार कोरोना के चलते पितृपक्ष मेला रद्द कर दिया गया है. ये मेला विश्वभर में ख्याति प्राप्त है, जिसमें विदेशी सैलानी अपने पितरों के मोक्ष के लिए गया जी आते थे.

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