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अफसरों की उपेक्षा का दंश झेल रही हैं झारखंड की भाषाएं, पीजी तक हो इनकी पढ़ाई: बंधु तिर्की

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Published : Feb 21, 2021, 10:12 PM IST

bandhu tirkey statement on jharkhandi language
मांडर विधायक बंधु तिर्की

अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के अवसर पर विधायक बंधु तिर्की ने झारखंड की भाषाओं की उपेक्षा के लिए अफसरों को जिम्मेदार ठहराया है. तिर्की ने मांग की कि पीजी तक जनजातियों की भाषाओं की पढ़ाई हो.

रांचीः अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के अवसर पर रविवार को मांडर विधायक बंधु तिर्की ने कहा कि रविवार को मातृभाषा दिवस है, लेकिन जो झारखंड में यहां के स्थानीय लोगों की ओर से बोली जाने वाली भाषा है, वह आज सरकारी अफसरों के कारण उपेक्षा का दंश झेल रही है. उन्होंने मांग की कि प्राइमरी से पीजी तक मातृभाषा की पढ़ाई होनी चाहिए.

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झारखंड प्रदेश में 32 प्रकार की जनजाति
बंधु तिर्की ने कहा कि झारखंड प्रदेश में 32 प्रकार की जनजातियों का निवास है. इनकी भाषाओं को विकसित करने की जरूरत है, इसकी पढ़ाई के लिए शिक्षकों की बहाली की जरूरत है, लेकिन राज्य गठन के बाद झारखंड की मातृभाषा पर किसी सरकार ने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई. उन्होंने कहा कि प्राइमरी स्तर से लेकर पीजी स्तर पर मातृभाषा की पढ़ाई होनी चाहिए.



जनजातीय और क्षेत्रीय भाषाओं के लिए एकेडमी स्थापित हो
विधायक बंधु तिर्की ने कहा कि सभी जनजातीय और क्षेत्रीय भाषाओं के लिए राज्य सरकार एकेडमी स्थापित करे, तभी हम अपनी झारखंडी सभ्यता, संस्कृति, भाषा को बचा सकेंगे. उन्होंने नई शिक्षा नीति का भी जिक्र करते हुए कहा कि स्थानीय भाषा की शिक्षा पर जोर दिया गया है, ताकि हम अपने बच्चे को अपनी सभ्यता संस्कृति के साथ जोड़ कर रख सकेंगे.

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राज्य की भाषा को प्राथमिकता देना हम सब का कर्तव्य
विधायक बंधु तिर्की ने कहा कि 26 फरवरी से चलने वाले विधानसभा सत्र के दौरान भी झारखंडी मातृभाषा को लेकर आवाज उठाएंगे. उन्होंने कहा कि झारखंड में एकेडमी का गठन करने की मांग करेंगे. उन्होंने कहा कि प्राइमरी से लेकर पीजी तक मातृभाषा के लिए शिक्षकों की बहाली कराई जाए, जहां कुछ कमियां हैं उसे पूर्ण की जाए. इतना ही नहीं उन्होंने इस मातृभाषा दिवस के अवसर पर नागपुरी में संबोधन भी किया. उन्होंने कहा कि कुडुख, मुंडारी, संथाली, हो, हर कोई बोलने में सक्षम नहीं हैं, लेकिन सादरी और नागपुरी बोलने की पहल होनी चाहिए, जिनकी जो भाषाएं हैं उसे भी बोली जानी चाहिए, अपने राज्य की भाषा को प्राथमिकता देना हम सब का कर्तव्य बनता है.

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