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नक्सल विरोधी अभियान में अहम भूमिका निभाने वाले मुखबिरों को नहीं मिल रहा वेतन, फंड की कमी बनी वजह

झारखंड में नक्सल अभियान में मुखबिरों की खास भूमिका होती है. इन्ही की सूचना के आधार पर कई नक्सलियों को पकड़ा जाता है. लेकिन अब इन मुखबिरों के वेतन पर संकट छा गया है. वेतन नहीं मिलने से इन मुखबिरों का मनोबल टूट रहा है. Anti Naxal Informers are not getting salary

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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Oct 11, 2023, 5:37 PM IST

Updated : Oct 11, 2023, 10:56 PM IST

Anti Naxal Informers are not getting salary
Anti Naxal Informers are not getting salary
एसएसपी रांची का बयान

रांची: झारखंड में नक्सल अभियान को सफल बनाने में पुलिस के मुखबिरों यानी एसपीओ की अहम भूमिका होती है, लेकिन अर्थ संकट की वजह से झारखंड में पुलिस का मुखबिर नेटवर्क तबाह होने की कगार पर है. पिछले 11 महीने से नक्सलियों के खिलाफ सूचना संकलन करने वाले एसपीओ का वेतन बंद है. पैसे के अभाव में पुलिस के मुखबिर नक्सल इलाके छोड़ शहर में काम धंधा खोज रहे हैं.

ये भी पढ़ें: Chaibasa Naxali News: नक्सलियों ने पुलिस मुखबिर बताकर वृद्ध का गला रेता, हत्या के बाद लोगों को दी चेतावनी

चाईबासा जैसे जिले में भी मुखबिर परेशान: पुलिस के लिए सूचना संकलन का काम करने वाले मुखबिर परेशान हैं वे घोर आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं,क्योंकि उन्हें पिछले 11 महीनों से वेतन नहीं मिला है. राजधानी पहुंचे कुछ मुखबिरों ने ईटीवी भारत को यह सूचना दी कि के शहर में काम ढूंढ रहे हैं. क्योंकि उन्हें 11 महीने से वेतन ही नहीं मिला है. मुखबिरों ने बताया कि ऐसा केवल राजधानी में ही नहीं है, बल्कि चाईबासा और खूंटी जैसे नक्सल प्रभावित जिलों में भी वेतन बंद है. ऐसे में गांव में रह कर काम करना बेहद मुश्किल हो रहा है. कई एसपीओ तो शहर आकर दूसरे काम कर रहे है. हालांकि अधिकांश अभी भी पुलिस के लिए ही काम कर रहे हैं उन्हें भरोसा है कि सरकार जल्द उनके बकाया वेतन का भुगतान करेगी.

सूचना संकलन में मददगार है एसपीओ: झारखंड में नक्सलियों के खिलाफ सूचनाएं एकत्र करने के लिए 6000 रुपये के मासिक पर स्पेशल पुलिस ऑफिसर यानी एसपीओ के पद पर नक्सल इलाकों में रहने वाले युवाओं को बहाल किया जाता रहा है. वैसे युवा जिनका नक्सल इलाकों में बेहतर पकड़ होती है उनको ही पूरी जांच पड़ताल कर एसपीओ बनाया जाता है. गांव में रोजगार मिल जाने से एसपीओ के लिए चयनित युवा नक्सलियों के लिए बेहतरीन काम करते हैं. मुखबिर नेटवर्क के जरिए ही राज्य के कई बड़े नक्सल प्रभावित जिलों में पुलिस को बेहतरीन सफलता भी हाथ लगी है. लेकिन वेतन बंद हो जाने की वजह से उनका मनोबल टूट रहा है. कुछ मुखबिरों ने तो यह भी बताया कि नक्सल फंड की कमी की वजह से कई जिलों में तो वाहनों को डीजल पेट्रोल भी नहीं मिल रहे हैं.

आत्मसमर्पण कर चुके नक्सलियों की प्रोत्साहन राशि भी हुई बंद: ऐसा नहीं है कि सिर्फ एसपीओ ही वेतन नहीं मिल पा रहा है. आत्मसमर्पण करने वाले अधिकांश नक्सलियों के परिजनों को मिलने वाली प्रोत्साहन राशि भी बंद कर दी गई है. रांची के वैसे नक्सली जिन्होंने मुख्यधारा में जुड़ने के लिए आत्मसमर्पण किया था वह रांची एसएसपी कार्यालय दौड़ रहे हैं ताकि उनकी प्रोत्साहन राशि मिल सके. आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों ने बताया कि 12 महीने से उन्हें भी सरकार की तरफ से मिलने वाली प्रोत्साहन राशि नहीं मिली है.

क्या है पुलिस का कहना: एसपीओ और पूर्व नक्सलियों के बकाए भुगतान मामले को लेकर रांची के सीनियर एसपी चंदन सिन्हा ने बताया कि फंड की कमी की वजह से एसपीओ का वेतन रुका पड़ा है. जैसे ही फंड आएगा एसपीओ के वेतन का भुगतान होगा, हालांकि फंड कब आएगा यह तय नहीं है. वहीं दूसरी तरफ आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों को हर महीने मिलने बकाए राशि के बारे में एसएसपी ने जानकारी लेने की बात कही और भुगतान जल्द करवाने का भरोसा दिया है.

एसएसपी रांची का बयान

रांची: झारखंड में नक्सल अभियान को सफल बनाने में पुलिस के मुखबिरों यानी एसपीओ की अहम भूमिका होती है, लेकिन अर्थ संकट की वजह से झारखंड में पुलिस का मुखबिर नेटवर्क तबाह होने की कगार पर है. पिछले 11 महीने से नक्सलियों के खिलाफ सूचना संकलन करने वाले एसपीओ का वेतन बंद है. पैसे के अभाव में पुलिस के मुखबिर नक्सल इलाके छोड़ शहर में काम धंधा खोज रहे हैं.

ये भी पढ़ें: Chaibasa Naxali News: नक्सलियों ने पुलिस मुखबिर बताकर वृद्ध का गला रेता, हत्या के बाद लोगों को दी चेतावनी

चाईबासा जैसे जिले में भी मुखबिर परेशान: पुलिस के लिए सूचना संकलन का काम करने वाले मुखबिर परेशान हैं वे घोर आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं,क्योंकि उन्हें पिछले 11 महीनों से वेतन नहीं मिला है. राजधानी पहुंचे कुछ मुखबिरों ने ईटीवी भारत को यह सूचना दी कि के शहर में काम ढूंढ रहे हैं. क्योंकि उन्हें 11 महीने से वेतन ही नहीं मिला है. मुखबिरों ने बताया कि ऐसा केवल राजधानी में ही नहीं है, बल्कि चाईबासा और खूंटी जैसे नक्सल प्रभावित जिलों में भी वेतन बंद है. ऐसे में गांव में रह कर काम करना बेहद मुश्किल हो रहा है. कई एसपीओ तो शहर आकर दूसरे काम कर रहे है. हालांकि अधिकांश अभी भी पुलिस के लिए ही काम कर रहे हैं उन्हें भरोसा है कि सरकार जल्द उनके बकाया वेतन का भुगतान करेगी.

सूचना संकलन में मददगार है एसपीओ: झारखंड में नक्सलियों के खिलाफ सूचनाएं एकत्र करने के लिए 6000 रुपये के मासिक पर स्पेशल पुलिस ऑफिसर यानी एसपीओ के पद पर नक्सल इलाकों में रहने वाले युवाओं को बहाल किया जाता रहा है. वैसे युवा जिनका नक्सल इलाकों में बेहतर पकड़ होती है उनको ही पूरी जांच पड़ताल कर एसपीओ बनाया जाता है. गांव में रोजगार मिल जाने से एसपीओ के लिए चयनित युवा नक्सलियों के लिए बेहतरीन काम करते हैं. मुखबिर नेटवर्क के जरिए ही राज्य के कई बड़े नक्सल प्रभावित जिलों में पुलिस को बेहतरीन सफलता भी हाथ लगी है. लेकिन वेतन बंद हो जाने की वजह से उनका मनोबल टूट रहा है. कुछ मुखबिरों ने तो यह भी बताया कि नक्सल फंड की कमी की वजह से कई जिलों में तो वाहनों को डीजल पेट्रोल भी नहीं मिल रहे हैं.

आत्मसमर्पण कर चुके नक्सलियों की प्रोत्साहन राशि भी हुई बंद: ऐसा नहीं है कि सिर्फ एसपीओ ही वेतन नहीं मिल पा रहा है. आत्मसमर्पण करने वाले अधिकांश नक्सलियों के परिजनों को मिलने वाली प्रोत्साहन राशि भी बंद कर दी गई है. रांची के वैसे नक्सली जिन्होंने मुख्यधारा में जुड़ने के लिए आत्मसमर्पण किया था वह रांची एसएसपी कार्यालय दौड़ रहे हैं ताकि उनकी प्रोत्साहन राशि मिल सके. आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों ने बताया कि 12 महीने से उन्हें भी सरकार की तरफ से मिलने वाली प्रोत्साहन राशि नहीं मिली है.

क्या है पुलिस का कहना: एसपीओ और पूर्व नक्सलियों के बकाए भुगतान मामले को लेकर रांची के सीनियर एसपी चंदन सिन्हा ने बताया कि फंड की कमी की वजह से एसपीओ का वेतन रुका पड़ा है. जैसे ही फंड आएगा एसपीओ के वेतन का भुगतान होगा, हालांकि फंड कब आएगा यह तय नहीं है. वहीं दूसरी तरफ आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों को हर महीने मिलने बकाए राशि के बारे में एसएसपी ने जानकारी लेने की बात कही और भुगतान जल्द करवाने का भरोसा दिया है.

Last Updated : Oct 11, 2023, 10:56 PM IST
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