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अखरा मंच ने किया कार्यशाला का आयोजन, उठी आदिवासियों की सभ्यता-संस्कृति की रक्षा की मांग

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Published : Sep 3, 2019, 10:44 AM IST

आदिवासियों की सभ्यता-संस्कृति, भाषा की रक्षा के लिए अखरा मंच ने रांची में एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया. कार्यशाला में आदिवासियों के अधिकारों पर विशेष रूप से चर्चा की गई.

अखड़ा मंच ने किया कार्यशाला का आयोजन

रांची: आदिवासियों की सभ्यता-संस्कृति, साहित्य और भाषा की रक्षा को लेकर अखरा मंच ने रांची में एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया. इस अवसर पर झारखंड के आदिवासी साहित्यकारों ने जनजातियों के विभिन्न भाषा और गीत संगीत के माध्यम से आदिवासियों की समस्या को सबके सामने रखा. कार्यशाला में मुख्य रूप से जनजाति अधिकार संशोधन कानून में बदलाव को लेकर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले पर चर्चा की गई.

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मंच की मांग
इस अवसर पर मंच ने सम्मिलित रुप से मांग रखी कि जंगलों में निवास करने वाले लाखों आदिवासियों को जंगल से बेदखल करने के फैसले को वापस लिया जाए. साथ ही आदिवासियों की भाषा, साहित्यकार रचित पुस्तक को पाठ्यक्रम में शामिल कर आदिवासी लिपि के माध्यम से स्कूल-कॉलेजों में इसे पढ़ाने की भी उन्होंने मांग की. इतना ही नहीं उन्होंने विधानसभा में झारखंड की जनजातीय भाषा का प्रयोग करने की मांग भी की ताकि जनजातीय भाषा को झारखंड में और अधिक बढ़ावा मिल सके. उनका कहना है कि आदिवासी हितों की रक्षा के लिए यह कोशिश की जानी चाहिए क्योंकि आदिवासियों की भाषा-सभ्यता धीरे-धीरे विलुप्त होते जा रही है.

Intro:रांची

बाइट---वंदना टेटे //सचिव//अखाड़ा मंच

आदिवासियों की मित्र है सभ्यता संस्कृति साहित्य और भाषा को लेकर आंकड़ा मंच के द्वारा रांची में एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया जिसमें झारखंड के आदिवासी साहित्यकारों ने जनजातियों के विभिन्न भाषा और गीत संगीत के माध्यम से आदिवासियों की समस्या को बखान किया गया कार्यशाला में मुख्य रूप से 1 अधिकार संशोधन कानून में बदलाव को लेकर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले पर भी चर्चा किया गया


Body:मंच ने मांग किया है कि जंगलों में निवास करने वाले 20000 लोगों को जंगल से बेदखल करने के फैसले को वापस लिया जाए साथ ही आदिवासियों की भाषा साहित्यकार रचित पुस्तक को पाठ्यक्रम में शामिल कर लिपि के माध्यम से स्कूल कॉलेजों में पढ़ाने की मांग किया साथ ही उन्होंने विधानसभा में झारखंड की जनजातीय भाषा का प्रयोग करने की मांग किया ताकि जनजातीय भाषा को झारखंड में और अधिक बढ़ावा मिल सके। क्योंकि आदिवासियों की भाषा और सभ्यता धीरे-धीरे विलुप्त होते जा रही है


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