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झारखंड में आंदोलनकारी का दर्जा पाने की होड़, 74 हजार आवेदन में ज्यादातर आधारहीन, चिन्हितीकरण में आयोग के छूट रहे पसीने

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Published : Jan 4, 2023, 7:57 PM IST

झारखंड आंदोलनकारी चिन्हितीकरण आयोग के पास इसके लिए तकरीबन 74 हजार आवेदन आए हैं, जिसमें से ज्यादातर आधारहीन है. झारखंड आंदोलनकारी का दर्जा (Jharkhand agitator status) किसे दिया जाए इसे लेकर आयोग के पसीने छूट रहे हैं.

Jharkhand agitator status
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रांची: झारखंड आंदोलनकारी का दर्जा (Jharkhand agitator status) हासिल करने की होड़ मची हुई है. साल 2012 में झारखंड आंदोलनकारी चिन्हितीकरण आयोग के गठन के बाद से लेकर अबतक कुल 73,974 आवेदन आ चुके हैं. लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि इनमें से 80 प्रतिशत से ज्यादा आवेदन ऐसे हैं, जिनमें आंदोलन से जुड़े किसी तरह के साक्ष्य पेश नहीं किए गये हैं. वैसे आवेदनों की फाइलें आयोग के कई कमरों में भरी पड़ी हैं. यही नहीं ऐसे भी आवेदन आते हैं जिसका अध्ययन करने पर पता चलता है कि आंदोलन के दिन संबंधित शख्स की आयु दो साल रही होगी.

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दावेदारी के लिए लोग अखबारों के ऐसे कतरन पेश करते हैं, जिसमें नाम का जिक्र ही नहीं रहता है. दरअसल, अखबारों में खबर छपने का एक तरीका होता है. अगर कहीं सड़क जाम किया गया है तो उसका नेतृत्व करने वाले प्रमुख लोगों के नाम का जिक्र करते हुए भीड़ का अनुमान लगाकर एक अनुमानित संख्या का जिक्र कर दिया जाता है. उसी अनुमानित संख्या में खुद को शामिल होने का हवाला देकर आंदोलनकारी का दावा करने वालों की तादाद सबसे ज्यादा है.

आयोग के मुताबिक जेल सर्टिफिकेट, गिरफ्तारी और एफआईआर की कॉपी सबसे पुख्ता आधार माना जाता है. फिर भी चिन्हितीकरण को लचीला बनाया गया है. फिर भी ज्यादातर दावेदार इसको प्रमाणित करने के लिए भी कोई साक्ष्य पेश नहीं कर पा रहे हैं. अव्वल तो ये कि जांच के दौरान कई ऐसे आवेदन मिले हैं जिनमें किसी अन्य के जेल सर्टिफिकेट की फोटो कॉपी में अपना नाम जोड़कर दावा पेश किया गया है. जब आयोग इन कॉपियों को क्रॉस वेरिफिकेशन के लिए संबंधित जेल या थाने में भेजता है तो बात झूठी साबित हो जाती है. यही वजह है कि आंदोलनकारियों का चिन्हितीकरण तेजी से नहीं हो पा रहा है.

फाइलों के निपटारे की रफ्तार: राज्य बनने के करीब साढ़े ग्यारह साल बाद रिटार्यड जस्टिस विक्रमादित्य प्रसाद की अध्यक्षता में पहली बार 7 मई 2012 को झारखंड आंदोलनकारी चिन्हितीकरण आयोग का गठन हुआ था. उनके कार्यकाल को 9 फरवरी 2020 तक एक्सटेंशन मिलता रहा. इस दौरान संबंधित आयोग को 63,289 आवेदन मिले. इनमें से 4,328 आंदोलनकारी चिन्हित किए गये.

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रिटायर्ड डीआईजी दुर्गा उरांव की अध्यक्षता में 15 जुलाई 2021 को आयोग का पुनर्गठन हुआ. उनके 17 माह के कार्यकाल में 10,685 आवेदन प्राप्त हुए. इनमें से 1,254 को चिन्हित किया गया. जबकि दुर्गा उरांव की अध्यक्षता वाले आयोग के लिए दो सदस्यों का चयन सितंबर में भुवनेश्वर महतो और नरसिंह मुर्मू के रूप में हुआ. लिहाजा, दोनों आयोग के कामकाज की रफ्तार की तुलना संबंधित अवधि और आवेदन की संख्या से निकाली जा सकती है.

आंदोलन में शामिल टॉप पांच जिले: झारखंड को अलग राज्य बनाने के लिए लंबे समय तक आंदोलन चला. कभी जिला बंद तो कभी नाकाबंदी. नब्बे के दशक में झारखंड बंद का आह्ववान होने लगा. कई बार उग्र प्रदर्शन हुए. लेकिन क्या आप जानते हैं कि आंदोलनकारी होने का दावा करने वाले 73,974 लोगों में 50 प्रतिशत के करीब सिर्फ पांच जिलों के लोग हैं. जी हां, सबसे पहले नंबर पर है गोड्डा जिला. यहां से करीब साढ़े नौ हजार लोगों ने दावा ठोका है. दूसरे नंबर पर रांची है. यहां से करीब साढ़े सात हजार आवेदन आये हैं. तीसरे नंबर पर देवघर से करीब 6 हजार, चौथे नंबर पर पूर्वी सिंहभूम से करीब 5 हजार और पांचवें नंबर पर पश्चिमी सिंहभूम से करीब 4 हजार आवेदन आये हैं.

खास बात है कि वेरिफिकेशन में प्रमाणित नहीं होने के बावजूद आवेदनों को रद्द नहीं माना जा रहा है. सभी वैसे आवेदनों को पेंडिंग में रखा जा रहा है. राजनीतिक नुकसान के कारण कोई भी सरकार यह जोखिम नहीं उठा पा रही है. नतीजा है कि हर दावेदार आस लगाए बैठा है. वैसे ही लोगों की आड़ में चंद लोग ने सिर्फ राजनीतिक रोटी सेक रहे हैं बल्कि आयोग को भी बदनाम कर रहे हैं.

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