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झारखंड के 43% बच्चे कुपोषित, यूनिसेफ की परिचर्चा में जताई गई चिंता

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Published : Mar 5, 2021, 1:54 AM IST

झारखंड में बच्चों की एक बड़ी आबादी कुपोषण का शिकार है. यूनिसेफ के अनुसार राज्य में करीब 43 फीसदी बच्चे कुपोषण जैसी गंभीर बीमारी की चपेट में हैं. यूनिसेफ की परिचर्चा में विधानसभा अध्यक्ष रविंद्र नाथ महतो ने कहा कि बच्चों एवं गर्भवती महिलाओं का पोषण और उनका स्वास्थ्य राज्य की प्राथमिकता है.

यूनिसेफ परिचर्चा
यूनिसेफ परिचर्चा

रांचीः कुपोषण मुक्त झारखंड बनाने के उद्देश्य से विधानसभा सभागार में परिचर्चा का आयोजन किया गया. यूनिसेफ द्वारा आयोजित इस परिचर्चा में विधानसभा अध्यक्ष रविन्द्रनाथ महतो के अलावा कई विधायक शामिल हुए. परिचर्चा में झारखंड के बच्चों में पोषण की स्थिति और कुपोषण को लेकर चिंता जताई गई.

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यूनिसेफ रिपोर्ट के मुताबिक देश में 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों में लगभग आधे कुपोषण के शिकार हैं. वहीं झारखंड में 43% बच्चे कम वजन के हैं, जबकि 29% गंभीर रूप से कुपोषित हैं वे अपनी आयु की तुलना में काफी दुबले और नाटे हैं.

कुपोषण के कारण इनकी शारीरिक, मानसिक एवं प्रतिरक्षा प्रणाली के विकास के लिए जो आवश्यक पोषक तत्व उन्हें मिलने चाहिए वह उन्हें नहीं मिल पाए हैं. परिचर्चा को संबोधित करते हुए विधानसभा अध्यक्ष रविंद्र नाथ महतो ने कहा कि बच्चों एवं गर्भवती महिलाओं का पोषण और उनका स्वास्थ्य राज्य की प्राथमिकता है.

गर्भवती महिलाओं एवं छोटे बच्चों पर ध्यान जरूरी

एक बच्चे के जीवन में शुरुआती 1000 दिन स्वास्थ्य से जुड़े खतरों को कम करने के लिए काफी महत्वपूर्ण होता है यदि इन 1000 दिनों में बच्चों के स्वास्थ्य पोषण आदि की समुचित देखभाल की जाए और उसमें निवेश किया जाए तो इससे भविष्य में सार्वजनिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले आर्थिक बोझ में कमी आती है.

इस अवसर पर यूनिसेफ झारखंड के प्रमुख प्रसंता दास ने कहा कि हमें यह ध्यान रखने की जरूरत है कि बच्चे राज्य का भविष्य हैं. हमें उनके बेहतर भविष्य के निर्माण के लिए कार्य करने की जरूरत है. कोरोना महामारी की शुरुआत से ही यूनिसेफ इसे बाल अधिकार संकट के रूप में मानते हुए सावधान करता रहा है.

कोरोना महामारी ने पोषण सहित अन्य दूसरी आवश्यक सेवाओं की गति को कम करने के साथ-साथ सामाजिक एवं आर्थिक समस्याएं पैदा कर कुपोषण के खतरे को भी बढ़ाया है. इसलिए वर्तमान समय की मांग है कि स्थानीय स्तर पर इसका समाधान ढूंढने और इसके लिए गंभीरतापूर्वक कार्य किया जाए.

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प्रसंता दास ने कहा कि कुपोषण में कमी मुख्य रूप से तीन क्षेत्रों में सुधार कर लाया जा सकता है. गर्भवती महिलाओं एवं छोटे बच्चों के लिए समुचित स्वास्थ्य एवं पोषण संबंधी सरकारी सुविधाओं की उन तक पहुंच को सुनिश्चित करके दूसरी गरीबी को कम करके और खाद्य सुरक्षा में सुधार के लिए सामाजिक कार्यक्रमों में पारदर्शिता को बढ़ावा देकर इसके अलावा आर्थिक विकास को सुनिश्चित करना लड़कियों और महिलाओं का सशक्तिकरण तथा लड़कियों का स्कूल में बने रहने को सुनिश्चित करना भी महत्वपूर्ण है.

जो कि उन्हें अपने मूल अधिकारों का एहसास करने में मदद करती है. परिचर्चा में विधायक समीर कुमार मोहंती, उमाशंकर अकेला, कुमारी अंबा प्रसाद, अमित कुमार यादव, विनोद कुमार सिंह, राज सिन्हा, अमित कुमार मंडल ,लंबोदर महतो, नवीन जायसवाल, मनीष जायसवाल, बंधु तिर्की, मंगल कालिंदी तथा किशुन कुमार दास शामिल हुए.

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