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झारखंड के 20 साल: शिक्षा के क्षेत्र में कई कदम उठाए पर लंबा सफर बाकी, शिक्षकों की कमी सबसे बड़ी चुनौती

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Published : Nov 15, 2020, 5:04 AM IST

15 नवंबर को झारखंड राज्य का गठन हुए 20 साल हो रहे हैं पर अभी भी प्रदेश देश के पिछड़े राज्यों में शुमार है. राज्य में गठन के बाद स्कूलों की संख्या 47749 से बढ़कर 49530 हो गई है पर 42.5 प्रतिशत विद्यालय में ही बिजली का कनेक्शन है और 54 प्रतिशत स्कूलों में शौचालय की व्यवस्था है. इसी के साथ स्कूलों से लेकर विश्वविद्यालयों तक में शिक्षकों की भारी कमी है.

Shortage of teachers in schools and universities of Jharkhand
झारखंड के 20 साल

रांची: 15 नवंबर को झारखंड राज्य का गठन हुए 20 साल हो रहे हैं पर अभी भी प्रदेश देश के पिछड़े राज्यों में शुमार है. कई क्षेत्रों में बदलाव की शुरुआत हुई है पर अभी भी लंबा सफर बाकी है. फिलहाल किसी राज्य में बदलाव की अहम कड़ी माने जाने वाली शिक्षा व्यवस्था में अभी खासा काम करने की जरूरत पर शिक्षा व्यवस्था सुदृढ़ होने की जगह दिन पर दिन बदलाल होती जा रही है. प्राथमिक स्कूल हों, माध्यमिक स्कूल हों या महाविद्यालय या विश्वविद्यालय सभी शिक्षकों की कमी से जूझ रहे हैं और इनमें बुनियादी सुविधाओं की भी कमी है. इससे प्रदेश में विकास की राह में कई चुनौतियां हैं, जिनका समाधान करने की जरूरत पड़ेगी.

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सरकारी स्कूलों की संख्या बढ़ीस्कूली शिक्षा की बात करें तो देश में कुल स्कूलों की तुलना में राज्य में विद्यालयों की संख्या मात्र 3.3 फीसदी है. राज्य में सरकारी स्कूलों की कुल संख्या एक आंकड़े के मुताबिक 47749 से बढ़कर 49530 हो गई है. राज्य में 17 जवाहर नवोदय विद्यालय हैं, 54 केंद्रीय विद्यालय, 140 अनरिकग्नाइज्ड मदरसे, 194 एनसीएलपी विद्यालय और 169 जनजातीय कल्याण विभाग के संचालित विद्यालय भी हैं. 203 कस्तूरबा और 55 आवासीय विद्यालय संचालित हो रहे हैं. कुल 60 लाख बच्चों को सरकार शिक्षा देने का दावा करती है, जिसमें से 40 लाख माध्यमिक स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे हैं.


यह चिंता बरकरार

सबसे चिंताजनक बात है कि 20 साल बाद भी राज्य भर के 14 से 18 आयु वर्ष के 58.7 प्रतिशत युवाओं को लिखना पढ़ना नहीं सिखाया जा सका है, जो राष्ट्रीय औसत से काफी अधिक है. इस आयु वर्ग के 21 फीसदी युवा आज भी स्कूल नहीं जाते हैं.साक्षरता की दर में भी झारखंड देश के औसत से काफी पीछे है. छात्र शिक्षक अनुपात भी चिंताजनक है. छात्रों के मुकाबले शिक्षकों की संख्या लगातार कम हो रही है. शिक्षक छात्र अनुपात 2013- 14 की तुलना में 2017-18 में 5 फीसदी बदतर हुआ है. 2018-19 में भी शिक्षकों की कमी का आकलन किया गया है. यह लगभग सभी स्तर की स्कूली शिक्षा की औसत गिरावट है और इस दिशा में अब तक कोई कदम नहीं उठाया गया है .माध्यमिक स्तर में शिक्षक पहले ही जरूरत के 34.1 प्रतिशत थे, ये और घटकर 29.1 प्रतिशत तक पहुंच गए हैं. अपर प्राइमरी में यह दर 47.8 फीसदी से घटकर 41.5 फीसदी तक गिर गया है. माध्यमिक शिक्षा में सबसे अधिक शिक्षकों की कमी हुई है. माध्यमिक शिक्षा में पहले शिक्षक कुल पदों के 74 .3 फीसदी थे जो और कम होकर 66.4 फीसदी तक पहंच गया है.

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स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं का अभाव
सरकारी आंकड़ों को देखें तो राज्य के 80 फीसदी सरकारी स्कूलों में आधारभूत संरचना की कमी है, पेयजल की व्यवस्था नहीं है, शौचालय की व्यवस्था भी ठीक नहीं है. अधिकतर माध्यमिक विद्यालयों की मरम्मत की जरूरत है, जबकि उच्चतर स्कूल के भवनों की भी मरम्मत आवश्यक है. सरकारी स्कूलों में 95 प्रतिशत शौचालय होने का दावा सरकार की ओर से किया जाता है. हालांकि तमाम दूसरे स्रोत बताते हैं कि झारखंड में 42.5 प्रतिशत विद्यालय में ही बिजली का कनेक्शन है और 54 प्रतिशत स्कूलों में शौचालय की व्यवस्था है.

झारखंड के विश्वविद्यालयों में 19 सालों में सिर्फ एक बार नियुक्ति

राज्य में उच्च शिक्षा का हाल और भी बुरा है. उच्च शिक्षा के लिए राज्य में कुल 9 विश्वविद्यालय हैं. इसमें रांची विश्वविद्यालय,विनोबा भावे विश्वविद्यालय ,सिद्धू कान्हू विश्वविद्यालय ,नीलाम्बर -पीतांबर विश्वविद्यालय ,विनोद बिहारी महतो विश्वविद्यालय, डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय, कोल्हान विश्वविद्यालय जैसे विश्वविद्यालय, रक्षा शक्ति विश्वविद्यालय और टेक्निकल यूनिवर्सिटी शामिल हैं. इनमें से दो विश्वविद्यालय नए गठित हुए है. राज्य गठन के बाद एक नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी और एक केंद्रीय विश्वविद्यालय भी झारखंड में संचालित होना शुरू हुआ है.

रक्षा शक्ति विश्वविद्यालय में एक भी स्थाया शिक्षक नहीं है . इस विश्वविद्यालय में कॉन्ट्रैक्ट शिक्षकों के भरोसे ही पठन-पाठन कराया जा रहा है. शिक्षा का यह हाल है कि झारखंड के विश्वविद्यालयों में 19 सालों में मात्र एक बार ही शिक्षकों की नियुक्ति हुई है. राज्य के इन यूनिवर्सिटी में हर साल औसतन 40 से अधिक शिक्षक रिटायर हो रहे हैं. लेकिन 2008 के बाद अब तक शिक्षकों की नियुक्ति पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है. राज्य के विश्वविद्यालयों में छात्र शिक्षक अनुपात के आंकड़े चौंकाने वाले हैं .वर्ष 2018- 19 के एक आंकड़े के मुताबिक 73 विद्यार्थियों पर यहां एक शिक्षक है.

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नए पुराने अब तक 7 मेडिकल कॉलेज सब में सुविधाओं की कमी

झारखंड में मेडिकल कॉलेजों की बात करें तो पहले से ही इस राज्य में 3 मेडिकल कॉलेज संचालित हो रहे हैं. राजधानी रांची में राजेंद्र मेडिकल कॉलेज जिसे रिम्स के नाम से जाना जाता है. जमशेदपुर में स्थित एमजीएम मेडिकल कॉलेज और धनबाद पीएमसीएच मेडिकल कॉलेज संचालित हो रहे हैं. 2019 में पलामू, हजारीबाग और दुमका स्थित नए मेडिकल कॉलेज बन गए थे. इस सत्र से यहां पठन-पाठन के लिए राज्य सरकार की ओर से प्रयास तेज किया गया है. इसके अलावा देवघर में भी एक एम्स मेडिकल कॉलेज को लेकर अनुमति मिली है. इस राज्य के लिए यह विडंबना ही है कि इस क्षेत्र में भी काफी सुस्त गति से सरकारी तंत्र काम कर रहा है. इस सत्र से 50 सीटों पर इसमें दाखिले की अनुमति भी मिली है. कुल मिलाकर इस राज्य में अब तक 7 मेडिकल कॉलेज इस 20 वर्षों में बनकर तैयार हुए हैं लेकिन नए 4 मेडिकल कॉलेजों के सुचारू होने में काफी समय लगने की आशंका है. फिलहाल झारखंड में 3 नए मेडिकल कॉलेज पलामू, हजारीबाग और दुमका में इसी सत्र से पढ़ाई शुरू हो जाता है तो 300 सीटों की बढ़ोतरी होगी. इसी के साथ झारखंड में एमबीबीएस सीट की कुल संख्या 580 हो जाएगी. हालांकि इनमें से भी कई में सुविधाओं की काफी कमी है.

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