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मां छिन्नमस्तिका मंदिर में नवरात्रि का अलग महत्व, जानिए क्या है मान्यता

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Published : Oct 1, 2022, 1:38 PM IST

विश्व प्रसिद्ध सिद्धपीठ रामगढ़ जिला के रजरप्पा स्थित मां छिन्नमस्तिका मंदिर में नवरात्रि का अलग महत्व (significance Navratri in Maa Chinnamastika temple) है. नवरात्रि के समय देश के कोने-कोने से भक्त यहां आते हैं. पूरा 9 दिन माता के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है.

different significance Navratri in Maa Chinnamastika temple of Ramgarh
रामगढ़

रामगढ़ः उत्तर भारत का प्रसिद्ध सिद्धपीठ मां छिन्नमस्तिका का मंदिर (Maa Chinnamastika temple of Ramgarh) रामगढ़ जिला के रजरप्पा में दामोदर और भैरवी नदी के तट पर अवस्थित है. झारखंड की राजधानी रांची से करीब 80 किलोमीटर दूर इस सिद्धपीठ पर सालों भर देश के कोने-कोने से श्रद्धालु पहुंचकर अपनी मनोकामना लिए मां के दरबार में आते हैं. अपने भक्तों के बीच मां छिन्नमस्तिका राजरपा मंदिर मनोकामना देवी के नाम से भी जाना जाने लगा है. दुर्गा पूजा और नवरात्रि के मौके पर इस मंदिर में भक्तों की काफी भीड़ उमड़ती है.

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छिन्न मस्तिका देवी शक्ति और मनोकामना देवी के रुप में जानी जाती है. माता के दरबार में नवरात्रि के समय भक्त काफी संख्या में आते हैं. नवरात्रि के 9 दिन में इस मंदिर में भी मां के नौ रूपों की अलग-अलग दिन पूजा होती (worship of Maa Chinnamastika in Navratri) है और मां को विशेष भोग भी लगाया जाता है. ऐसा कहा जाता है कि नवरात्रि में मां के दर्शन और आराधना करने से सभी कष्ट दूर होते हैं. यही वजह है कि इन दिनों भक्तों की भीड़ ज्यादा होती (significance Navratri in Maa Chinnamastika temple) है. रजरप्पा स्थित मां छिन्नमस्तिका मंदिर सिद्धपीठ के रूप में भारत के विख्यात कामाख्या के बाद दूसरा स्थान पर आता है.

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मंदिर में मां की जो प्रतिमा स्थापित है, इनमें उनके दाएं हाथ में तलवार और बाएं हाथ में अपना कटा हुआ सिर है. इनके गले से रखी तीन धाराएं बह रही हैं. शिलाखंड में मां की तीन आंखें हैं. इसके साथ ही वह बायां पैर आगे की ओर बढ़ाएं हुए कमल पुष्प पर खड़ी हैं. इनके अगल-बगल डाकनी और शाकिनी खड़ी हैं. जिन्हें वो अपने गले से निकलती रक्तधारा का पान करा रही हैं और खुद भी रख पान कर रही हैं.


छिन्न मस्तिका माता का रहस्यः एक पौराणिक कथा के अनुसार कहा जाता है कि मां भवानी अपनी दो सहेलियों के साथ मंदाकिनी नदी में स्नान करने गई थीं. स्नान करने के बाद उनकी सहेलियों को तेज भूख लगी और वो भूख से बेहाल होने लगीं और भूख की वजह से उनका रंग काला पड़ने लगा था. जिसके बाद उन दोनों ने माता से भोजन की मांग की और उन्हें भूख इतनी ज्यादा लगी थी कि वो दोनों तड़पने लगीं. जिसके बाद मां भवानी ने खड़क से अपना सिर काट दिया और सिर काटने के बाद कटा हुआ सिर उनके बाएं हाथ में आ गिरा और गले से तीन धाराएं बहने लगी जिसके बाद माता ने गर्दन से निकली उन दो धाराओं को अपनी दोनों सहेलियों की ओर बहा दिया और बाकी को खुद पीने लगी. इसी से मां के इस रूप को छिन्न मस्तिका कहा जाने लगा और यह मां भवानी का छठा रूप माना जाता है.

9 दिन तक कठिन तप करते हैं भक्तः नवरात्रि के मौके पर देश के प्रसिद्ध शक्तिपीठ रजरप्पा स्थित मां छिन्नमस्तिका मंदिर में बड़ी संख्या में साधक पहुंचते हैं. इन 9 दिनों तक कठिन तपस्या भी करते हैं. यहां 9 दिनों तक झारखंड ही नहीं बल्कि अन्य राज्यों के साधक पहुंचकर मां भगवती की आराधना करते हैं. इस साल नवरात्रि के अवसर पर मां छिन्नमस्तिका मंदिर को फूलों से सजाया गया है. पूरे मंदिर प्रक्षेत्र की भव्यता देखते बन रही है. आस्ट्रेलिया व थाईलैंड सहित कोलकाता से विशेष रूप से फूलों से मंदिर को भव्य रूप दिया गया है जो आकर्षण का केंद्र बना हुआ है.

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