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हाथियों से निबटने के लिए जुगाड़ के भरोसे वन विभाग, हर साल करीब 12 लोगों की जाती है जान

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Published : Dec 17, 2022, 8:13 PM IST

झारखंड में एक बड़ा कॉरिडॉर हाथियों के आने जाने का है. जब हाथी यहां से गुजरते हैं तो वे ना सिर्फ फसल और घरों को नुकसान पहुंचाते हैं बल्कि कई बार उनकी जद में ग्रामीण भी आ जाते हैं जिससे उनकी मौत हो जाती है. इसके बाद भी अभी तक हाथियों से निबटने के लिए वन विभाग के पास कोई खास साधन नहीं है ( Forest department does not have resources).

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पलामू: झारखंड वन्य जीव और वन संपदा के लिए विश्व भर में चर्चित है. पलामू, लातेहार और गढ़वा के जंगल एक दूसरे से जुड़े हुए हैं. इनका एक बड़ा भाग हाथी के कॉरिडोर के रूप में जाना जाता है. हाथियों के इस कॉरिडोर का जुड़ाव बिहार में गया और औरंगाबाद से भी है. हाथियों के इस कॉरिडोर में प्रति वर्ष करीब 12 लोगों की जान जाती है, लेकिन सबसे बड़ी बात हाथियों से निबटने के लिए वन विभाग अभी भी जुगाड़ के भरोसे है ( Forest department does not have resources). हाथियों के झुंड को भगाने के लिए विभाग स्थानीय ग्रामीणों की भी सहायता लेता है जिसमे ग्रामीणों की जान जाती है.

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पलामू के हुसैनाबाद के इलाके में गुरुवार को बिहार के औरंगाबाद के इलाके से हाथियों का एक झुंड घुसा, झुंड के चपेट में आने से दो ग्रामीणों की मौत हो गई. वन विभाग ने जुगाड़ के माध्यम से हाथियों को जंगली खदेड़ दिया है. पलामू डीएफओ सौमित्रा शुक्ला बताते हैं कि पलामू, गढ़वा लातेहार के इलाके में मिलाकर एक रेस्क्यू टीम है. उन्होंने बताया कि स्थानीय ग्रामीणों की मदद से हाथियों के खिलाफ रेस्क्यू अभियान चलाया जाता है. उन्होंने बताया कि वन विभाग ग्रामीणों से लगातार अपील करता है कि लोग हाथियों के झुंड के नजदीक नहीं जाएं.

पलामू गढ़वा और लातेहार के इलाके में हाथियों के छोटे-बड़े आधा दर्जन से अधिक झुंड हैं, अकेले पलामू टाइगर रिजर्व के इलाके में 120 से 140 हाथी हैं. पलामू टाइगर रिजर्व को छोड़ दिया जाए तो तीनों जिले के पास हाथियों से निपटने के लिए कोई भी रेस्क्यू टीम नहीं है. वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट प्रोफेसर डीएस श्रीवास्तव बताते हैं कि हाथी भोजन की तलाश में एक जगह से दूसरी जगह जाते हैं. इस दौरान हाथी अपने रास्ते को नहीं भूलते. उन्होंने बताया कि एक हाथी को प्रतिदिन 100 किलो के करीब भोजन की जरूरत होती है. यही वजह है कि हाथियों का झुंड लगातार अपनी जगह को बदलता रहता है. एक लंबे सफर के बाद हाथ वापस उस जगह पर पंहुचते हैं, जिस जगह से उन्होंने सफर की शुरुआत की थी. इस सफर के दौरान रास्ते में आने वाले कोई भी चीज को वह नष्ट करते हुए आगे बढ़ते हैं. यही वजह है कि हाथियों के झुंड से लोगों को भी नुकसान होता है.

हाथियों के लिए नहीं बना है कोई एक्शन प्लान: जानकार बताते हैं कि झारखंड में हाथियों के लिए कोई एक्शन प्लान नहीं बना है. झारखंड के इलाके में मयूरभंज प्रजाति के हाथी मिलते हैं जिसका कॉरिडोर ओडिशा के मयूरभंज से लेकर पूरे झारखंड में फैला हुआ है. प्रोफेसर डीएस श्रीवास्तव यह भी बताते हैं कि हाथियों के खिलाफ कार्रवाई के दौरान लोग पटाखे आदि का इस्तेमाल करते हैं, कभी कभी वे हाथी के नजदीक चले जाते हैं, जो खतरे का कारण बनता है. प्रोफेसर बताते हैं कि मयूरभंज के हाथी सिंहभूम, सरायकेला, बंगाल के पुरुलिया समेत कई इलाको में फैले हुए हैं.


हाथियों की चपेट में आने से प्रति वर्ष करीब 12 लोगों की जाती है जान: पलामू गढ़वा और लातेहार में प्रतिवर्ष हाथियों के चपेट में करीब 12 लोगों की जान जाती है. गुरुवार को भी पलामू में दो लोगों की जान गई थी. कुछ महीनों पहले लातेहार के इलाके में मवेशी चरा रहे दो ग्रामीण को हाथियों ने मार डाला था. फरवरी महीने में भी लातेहार के इलाके में एक महिला को हाथी ने पटक-पटक कर मार डाला था. पलामू टाइगर रिजर्व पलामू गढ़वा लातेहार के इलाके में हाथियों से हुए नुकसान से मुआवजे के लिए 100 से अधिक आवेदन मिलते हैं.

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