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ये केंद्र से पहाड़िया जनजाति की महिलाएं बना रहा है स्वावलंबी, चेहरे पर दिख रहा आत्मविश्वास

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Published : Oct 24, 2019, 10:53 PM IST

पाकुड़ जिले के लिट्टीपाड़ा अमरापारा प्रखंड में बिरसा विशिष्ट जनजातीय विकास योजना के तहत गुतू गालांग नामक सिलाई केंद्र खोला गया है. जहां पहाड़िया महिलाएं प्रशिक्षण प्राप्त कर बोरा सिलाई का काम कर रही हैं. इस काम के लिए उन्हें हर महीने 3 हजार रुपए दिए जा रहे हैं.

सिलाई करती पहाड़िया महिला

पाकुड़: हाथ में हुनर हो और कुछ करने का जज्बा हो तो असंभव कार्य भी संभव हो सकता है. ऐसा ही कुछ आदिम जनजाति पहाड़िया समाज की महिलाओं ने कर दिखाया है. घर का चुल्हा चौका करने वाली पहाड़िया समाज की महिलाएं आज सिलाई सीख अपने परिवार का बेहतर तरीके से पालन पोषण कर रही हैं.

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गुतू गालांग सिलाई केंद्र
झारखंड सरकार ने बिरसा विशिष्ट जनजातीय विकास योजना शुरू की है , जिसमें सरकार आर्थिक रूप से कमजोर आदिम जनजाति पहाड़िया महिलाओं को स्वावलंबी बनाने के लिए लिट्टीपाड़ा में गुतू गालांग नामक सिलाई केंद्र खोला है. इस सिलाई केंद्र से महिलाओं को सिलाई का प्रशिक्षण देने के बाद बोरा सिलाई कराई जा रही हैं. जिसके लिए उन्हें प्रतिमाह 3 हजार रुपए दिए जा रहे हैं.

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आदिम जनजाति पहाड़िया समाज की स्थिति में होगा सुधार
राज्य के 3 हजार गांव में रहने वाले 72 हजार आदिम जनजाति पहाड़िया परिवार को बिरसा विशिष्ट जनजातीय योजना से जोड़ने का लक्ष्य रखा गया है. इस योजना से आदिम जनजाति पहाड़िया परिवारों की वार्षिक आय 50 हजार करने का लक्ष्य रखा गया है. पाकुड़ जिले के 12 हजार 300 जनजाति पहाड़िया परिवारों को इस योजना से लाभान्वित किया जा रहा है. झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी के जरिए सरकार ने पहाड़िया महिलाओं को सबसे पहले सिलाई का प्रशिक्षण दिया, जिसके बाद महिलाएं बोरा सिलाई कर रोजगार प्राप्त कर रही हैं. महिलओं के लिए 1 महीने में 80 बोरों की सिलाई का लक्ष्य रखा गया है. जिसके बाद तैयार किए गए बोरों को डाकिया योजना के लिए प्रखंड भेज दिया जाएगा.

Intro:बाइट 1 : रूबी मालतो, पहाड़िया महिला
बाइट 2 : जॉनी मालतो, पहाड़िया महिला
बाइट 3 : कुणाल कर्मकार, वाई पी, जेएसएलपीएस

पाकुड़ : हाथ में हुनर हो और कुछ करने का जज्बा तो असंभव कार्य भी संभव हो सकता है। ऐसा ही कुछ कर के दिखा रही है विलुप्त के कगार पर पहुंच रही आदिम जनजाति है पहाड़िया समाज की दुर्गम पहाड़ पर रहने वाली महिलाएं। घर का चौका बर्तन और जंगलों की लकड़ी कटाई कर उसे बाजारों में बेच कर अपना व परिवार का किसी तरह भरण पोषण करने वाली पहाड़िया महिलाएं आज समाज में बदलाव लाने के लिए बोरा सिलाई को रोजगार का बेहतर जरिया बनाया है।


Body:झारखंड सरकार की हाल में ही शुरू की गई बिरसा विशिष्ट जनजातीय विकास योजना आर्थिक रूप से कमजोर आदिम जनजाति पहाड़िया महिलाओं को स्वावलंबी बनाने के लिए लाखों रुपए की राशि से गुतू गालांग (सुई धागा) केंद्र खोला गया है। इसी केंद्र पर रोज दर्जनों की संख्या में पहाड़िया महिलाएं पहुंच रही है और बोरा का सिलाई कर रही है। बोरा की सिलाई कर रही महिलाओं के मुताबिक उन्हें प्रतिमाह औसतन 3 हजार रुपये की कमाई होगी। जिससे वह अपने बच्चों को शिक्षा दिलाने के साथ-साथ परिवार का भरण पोषण अच्छे तरीके से करेगी।

राज्य सरकार ने बिरसा विशिष्ट जनजातीय योजना को धरातल पर मुख्य रूप से आदिम जनजाति पहाड़िया समूह के समग्र विकास का ध्यान में रखकर उतारा है। राज्य के 3 हजार गांव में रहने वाले 72 हजार आदिम जनजाति पहाड़िया परिवार को इस योजना से जोड़ने का लक्ष्य रखा गया है। लक्षित आदिम जनजाति पहाड़िया परिवारों को वार्षिक आय इस योजना से 50 हजार करने का लक्ष्य रखा गया है। पाकुड़ जिले के 12 हजार 3 सौ जनजाति पहाड़िया परिवारों को बिरसा विशिष्ट जनजातीय विकास योजना से लाभान्वित किया जाता है। पहले चरण में बोरा सिलाई का काम लिट्टीपाड़ा में शुरू किया गया है। एक महीने 80 हजार बोरा की सिलाई की जानी है। सिलाई के बाद झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी तैयार बोरो को डाकिया योजना के लिए प्रखंड को मुहैया कराएगा।

जिले के आदिम जनजाति पहाड़िया परिवारों को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने एवं उन्हें समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी के जरिए सरकार ने पहाड़िया महिलाओं को सिलाई कटाई का पहले प्रशिक्षण दिया। प्रशिक्षण प्राप्त करने वाली महिलाएं ही आज बोरा सिलाई का काम कर रही है।


Conclusion:यहां उल्लेखनीय है कि पाकुर जिले के लिट्टीपाड़ा अमरापारा प्रखंड में सबसे ज्यादा आदिम जनजाति पहाड़िया परिवार निवास करते हैं। इन पहाड़िया परिवारों द्वारा वैसे तो बरबट्टी, मकई की खेती की जाती है परंतु समय पर वर्षा ना होने एवं सरकार द्वारा वित्तीय सहायता सही तरीके से नहीं मिलने के कारण यह अच्छी तरह से उपज नहीं कर पाते। इतना ही नहीं इन्हें खेती के वक्त महाजनों के पास कर्ज लेने को मजबूर होना पड़ता था। सरकार द्वारा इन पहाड़िया परिवारों की महिलाओं को बिरसा विशिष्ट जनजातीय विकास योजना से सीधा जोड़ने से न केवल इनकी आर्थिक स्थिति मजबूत होगी बल्कि इस जनजातीय के लोग समाज की मुख्य धारा से जुड़ेंगे और अपनी सामाजिक स्थिति में बदलाव ला पाएंगे।
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