सिर्फ खिचड़ी खाने स्कूल जाते हैं बच्चे, नशे की लत का हो रहे शिकार

author img

By

Published : Sep 8, 2021, 5:46 PM IST

Updated : Sep 8, 2021, 7:58 PM IST

go to school only to eat midday meal

खूंटी में संवर्धन कार्यक्रम के तहत एक सर्वे किया गया है. इस सर्वे में ऐसे कई खुलासे हुए हैं जो जिले के बच्चों की हकीकत को दिखाते हैं. बच्चों के स्कूल जाने से लेकर उनके खाने पीने और उनके नशा करने तक की जानकारी इस सर्वे में है.

खूंटी: झारखंड में मानव तस्करी रोकना एक बड़ी चुनौती है. यहां हर साल करीब 12 से 14 हजार बच्चे बिचौलियों के हाथ लग जाते हैं. इसे रोकने के लिए संवर्धन कार्यक्रम की शुरुआत की गई. इसका मकसद था कोरोना संकट के दौरान बड़ी संख्या में झारखंड लौटे नाबालिग एक बार फिर बिचौलियों के हाथ न फंस जाएं. खूंटी में भी संवर्धन कार्यक्रम के तहत सभी प्रखंडों में एक सर्वे कराया गया. इसमें जो खुलासा हुआ वह चौंकाने वाला है.

ये भी पढ़ें: अच्छी पहल : जमीन को शराबियों-जुआरियों से मुक्त कराकर खोला स्कूल

सिर्फ खिचड़ी खाने स्कूल जाते हैं बच्चे

संवर्धन कार्यक्रम के तहत जो सर्वे के नतीजे आएं हैं उसमें कहा गया है कि अधिकतर बच्चे स्कूल पढ़ने के लिए नहीं बल्कि सिर्फ खिचड़ी खाने जाते हैं. जिले के कई गरीब बच्चे स्कूल सिर्फ इसलिए जाते हैं क्योंकि उन्हें फ्री खाना मिलता है और इसके लिए कहीं मेहनत मजदूरी नहीं करनी पड़ती है. हालांकि अभी इस सर्वे की फाइनल रिपोर्ट नहीं आई है, लेकिन फिर अनुमान लगाया जा रहा है कि करीब 45 फीसदी ऐसे बच्चे हैं जो सिर्फ खिचड़ी खाने की लालच में ही स्कूल जाते हैं. यही नहीं इस सर्वे में ये बात भी सामने आई है कि जिले के अधिकतर बच्चे नशे की गिरफ्त में हैं. अनुमान लगाया जा रहा है कि ऐसे बच्चों की संख्या करीब 20 फीसदी है.

देखें वीडियो

कुपोषित बच्चों की भी बड़ी संख्या

संवर्धन कार्यक्रम के लिए जो सर्वे हुआ है कि उसमें कहा गया है कि जिले में तीसरे नंबर पर कुपोषण के शिकार बच्चे हैं, चौथे स्थान पर कोविड से प्रभावित बच्चे, पांचवे स्थान पर एकल माता के बच्चे हैं. इसके अलावा अनाथ बच्चों की संख्या भी काफी ज्यादा है. जिला कल्याण समिति को सौंपे गए सर्वे रिपोर्ट में दावा किया है कि 3955 बच्चों को चिन्हित किया गया जिसमें लगभग 1500 बच्चों को बाल कल्याण समिति के सामने पेश किया गया.

कोरोना के साइड इफेक्ट्स

खूंटी जिले के सुदूरवर्ती ग्रामीण इलाकों में कोरोना काल के साइड इफेक्ट भी दिखने लगे हैं. कई बच्चों के माता पिता अब बाहरी राज्यों में रोजगार के लिए नहीं जा रहे हैं. स्थानीय स्तर पर रोजगार नहीं मिलने से इसका सीधा असर परिवार की आर्थिक स्थिति पर पड़ने लगी है. जीविकोपार्जन के साधनों में गिरावट आई है और जिससे खाने पीने की समस्या बढ़ी है जिससे कुपोषण बढ़ा है. कोरोना संक्रमण के बाद कई बच्चे अनाथ हो गए हैं. कई बच्चे एकल परिवार में किसी तरह गुजर बसर करने को मजबूर हैं.

ये भी पढ़ें: जब टीचर बन स्कूल पहुंचे साहिबगंज DC, छात्राओं की ली जमकर क्लास

बच्चों को चिन्हित कर सरकार की योजना से जोड़ना लक्ष्य

राष्ट्रीय बाल राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के निर्देश के आलोक में जिले में संवर्धन कार्यक्रम चलाया जा रहा है. जिले में कठिन परिस्थिति में रहने वाले वैसे बच्चे जो अनाथ हैं, एकल परिवार के बच्चे हैं, बाल श्रम और ट्रैफिकिंग के शिकार हैं, इस तरह के 30 कैटेगरी के बच्चों को सर्वे कर चिन्हित किया गया है. जिले में लगभग 3955 बच्चों को चिन्हित किया गया है. बाल कल्याण समिति के सामने 1015 बच्चों को पेश किया गया है. अब इन सभी बच्चों को सरकारी नियमानुसार केंद्र सरकार और राज्य सरकार द्वारा संचालित संचालित योजनाओं से लिंक किया जाना है. बाल संरक्षण के तहत एक स्पॉन्सरशिप योजना है जिसमें शिक्षा पोषण और चिकित्सा के लिए बच्चों को ₹2000 प्रति माह आर्थिक सहायता दी जाती है. इसके अलावा भी कई योजनाएं हैं जिसमें सुकन्या योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना, आयुष्मान योजना जो बच्चों के विकास के लिए सहायक हैं. कई बच्चों का कहना है कि वे स्कूल सिर्फ खिचड़ी खाने जाते हैं. बच्चों के लिए सरकार द्वारा चलाई जा रही स्कूली शिक्षा पूरी तरह से कारगर नहीं है. समुचित शिक्षा नहीं मिलने से बच्चे बच्चे नशे की ओर भी बढ़ने लगे हैं.

Last Updated :Sep 8, 2021, 7:58 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.