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जामताड़ाः विस्थापित लादना गांव में रोजगार का घोर अभाव, मछली पकड़ करते हैं गुजारा

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Published : Aug 20, 2019, 1:10 PM IST

जामताड़ा का लादना एक विस्थापित गांव के पास है. रोजगार के लिए गांव के लोग डैम में मछली पकड़ने को मजबूर हैं. जिससे अच्छी आमदनी नहीं हो पाती है. रोजगार के लिए कई बार इन लोगों ने जिला प्रशासन को लिखा भी है, लेकिन प्रशासन का ध्यान इस पर नहीं है.

मछली पकड़ते गांव के लोग

जामताड़ा: जिले के डीवीसी डैम के किनारे स्थित है लादना डैम है. लादना डैम एक विस्थापित गांव के पास है. डीवीसी डैम में जामताड़ा जिले के कई गांव के लोगों की जमीन चली गई है. जिसमें से एक लादना गांव भी है. लादना गांव विस्थापित गांव होने के बावजूद, यहां के लोगों को रोजी-रोजगार के लिए भटकना पड़ता है. रोजगार के लिए गांव के लोग डैम में मछली पकड़ने को मजबूर हैं, जिससे अच्छी आमदनी नहीं हो पाती है.

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जिला मुख्यालय से लगभग 8 से10 किलोमीटर दूर स्थित है लादना डैम, इस डैम के किनारे बसा है लादना गांव. इस गांव के लोगों को रोजगार के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती है. रोजी-रोटी की खातिर यहां के बेरोजगार दिन भर मछली पकड़ने में लगे रहते हैं. इनका कहना है कि मनरेगा के तहत काम कभी कभार मिलता है, लेकिन साल भर काम नहीं मिल पाता है. मजबूरी की वजह से मछली पकड़ने का काम करते हैं.

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इनका कहना है कि जो मछली पकड़ते हैं उसे बेचने के बाद अपनी जीविका चलाते हैं. इनके अनुसार कभी-कभी ठीक-ठाक आमदनी हो जाती है. कभी-कभार मन भी उदास हो जाता है. ये लोग दिनभर में लगभग1 0 से 12 किलो मछली पकड़ते हैं और आपस में बांटकर भाग करते हैं. इनका कहना है कि इनलोगों ने रोजगार के लिए कई बार जिला प्रशासन को लिखा है, लेकिन प्रशासन का ध्यान इस पर नहीं है.

Intro:जामताङा: लादना डैम के किनारे बसा विस्थापित गांव में रोजी रोजी रोजगार का है घोर अभाव ।रोजी रोजगार के लिए डैम में मछली पकड़ने को हैं मजबूर हैं गांव के बेरोजगार।


Body:जामताड़ा जिला मुख्यालय से करीब आठ 10 किलोमीटर दूर स्थित है लादना डैम । किनारे बसा है लादना गांव। जहां रोजी रोजगार का घोर अभाव है ।रोजी रोजगार अभाव के कारण यहां के लोगों को काफी मशक्कत परिश्रम और भटकना पड़ता है ।डैम में रोजी रोटी के खातिर यहां के बेरोजगार दिन भर मछली पकड़ने में लगे रहते हैं ।काफी कड़ी मेहनत के बाद थोड़ा बहुत मछली पकड़ने के बाद बेच कर अपना रोजी रोजगार करते हैं और परिवार चलाते हैं। कभी मछली पकड़ आता है तो अच्छा रोजगार हो जाता है कभी नहीं पकड़ आता है उस दिन खाली हाथ ही नहीं रहना पड़ता है यह उम्मीद के साथ के दूसरे दिन उन्हें अच्छी आमदनी होगी । इस काम में लगे रोजगार लोगों का कहना है कि रोजी रोजी-रोटी के खातिर वे दिनभर मछली पकड़ने में लगे रहते हैं। प्रतिदिन 10 से 12 किलो मछली पकड़ते हैं और आपस में बांटकर भाग करते हैं ।जिससे सो डेढ़ सौ हो जाता है । जिस दिन नहीं हो पाता है वह दिन दूसरे दिन यह आस में रहते हैं कि दूसरे दिन उनकी अच्छा मछली पकड़ आएगा और आमदनी अच्छी होगी। इनका कहना है कि मनरेगा के तहत काम कभी कभार मिलता है। लेकिन साल भर काम नहीं मिल पाता है। मजबूरी बस मछली पकड़ने का काम करते हैं।
स्थानीय लोग बताते हैं की लादना गाँव एक विस्थापित गांव है। रोजी रोजगार का अभाव है। यहां के रोजी रोजगार के लिए कई बार जिला प्रशासन को लिखा है ।लेकिन अभी तक कुछ कार्रवाई नहीं हो पाया ।
बाईट स्थानीय बेरोजगार एवं ग्रामीण


Conclusion:आपको बता दें कि डीवीसी डैम के किनारे सटा हुआ है लादना डैम । लादना डैम एक विस्थापित गांव है ।डीवीसी डैम में जामताड़ा जिले के कई गांव के लोगों की जमीन चली गई है। जिसमें एक लादना गांव है ।लादना गांव विस्थापित गांव होने के बावजूद यहां के लोगों को रोज रोजी रोजगार के लिए भटकना पड़ता है ।
संजय तिवारी ईटीवी भारत जामताड़ा
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