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हजारीबाग: 40 वर्षों से फुटपाथ पर बना रहे हैं मूर्ति, पोप फ्रांसिस को दिया जाएगा गिफ्ट

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Published : Aug 26, 2019, 8:14 PM IST

हजारीबाग के शिल्पकार पास्कल प्रभु दास की बनाई मूर्ति को फादर जोजो बिशप उपहार के रूप में पोप फ्रांसिस को देंगे. पास्कल पिछले 40 वर्षों से मूर्ति बनाने का काम कर रहे हैं. उनकी मूर्तियों की मांग देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी है. पास्कल को सरकारी उपेक्षा की वजह से काफी परेशानियों का सामना भी करना पड़ रहा है. इसके बावजूद भी वे हिम्मत नहीं हारे.

लकड़ी की मूर्ति बनाते पास्कल प्रभु दास

हजारीबाग: कहते हैं कि प्रतिभा किसी की मोहताज नहीं होती है. जिले में एक ऐसे ही प्रतिभावान मूर्तिकार पास्कल प्रभु दास हैं जो पिछले 40 वर्षों से जुलू पार्क स्थित चर्च के सामने लकड़ी की मूर्ति बना रहे हैं. उनकी मूर्ति की मांग विदेशों में भी है. लेकिन, सरकारी उपेक्षा के कारण उन्हें काफी परेशानियों का सामना भी करना पड़ा. इसके बावजूद भी वे हिम्मत नहीं हारे.

पोप फ्रांसिस को तोहफे में दी जाएगी पास्कल प्रभु दास की बनाई मूर्ति

पास्कल अभी ढोरी माता की मूर्ति बना रहे हैं. यह मूर्ति इसलिए खास है कि हजारीबाग के चर्च के फादर जोजो बिशप इसे रोम के पॉप फ्रांसिस को उपहार के रूप में देंगे. पास्कल इस मूर्ति को बेहद ही खूबसूरत ढंग से तैयार कर रहे हैं. उनका कहना है कि आज का दिन उनके लिए बेहद खास है. क्योंकि, उनके द्वारा बनाई हुई मूर्ति विदेश जा रही है. वह भी पॉप के हाथों में, इससे उन्हें वह मंच हासिल हुआ है जिसकी तलाश उन्हें 40 वर्षों से थी.
सरकार पर उपेक्षा का आरोप
पास्कल इस बात को लेकर खुश भी हैं कि उनकी मूर्ति पॉप के हाथों में जाने वाली है, तो दूसरी ओर दुखी भी हैं कि सरकार ने आज तक उनकी मदद नहीं की. उनका कहना है कि सरकार अगर सहयोग करती तो आज उनकी यह स्थिति नहीं होती. वे सरकारी जमीन पर बने एक कमरे में वर्षों से रह रहे हैं और उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है. उनके पिता की मौत बचपन में ही हो गई थी और मां देख नहीं सकती थी. ऐसे में उनका बचपन काफी कष्टों से बीता.

बाद में हजारीबाग चर्च के फादर ने उनकी मदद की और वे पढ़ाई करने पूना आर्ट कॉलेज चले गए. वहीं उन्होंने मूर्ति बनाना सीखा. पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने हजारीबाग में ही मूर्ति बनाने का काम शुरू कर दिया. उनका कहना है कि यदि सरकार मदद करती तो वे दूसरे कलाकारों को भी सिखाते ताकि यह कलाकारी आगे भी जीवित रहती.

पास्कल के काम में उनकी पत्नी भी साथ देती हैं और कहती हैं कि उन्हें बेहद गरीबी में जीवन-यापन करना पड़ रहा है. क्योंकि हजारीबाग में मूर्ति खरीदने वाले बेहद कम हैं. ऐसे में कभी-कभार कोई विदेशी मेहमान हजारीबाग पहुंचता है तो वह मूर्ति बनाने का ऑर्डर मिलता है. हमें एक मूर्ति बनाने में महीनों लग जाते हैं. इसलिए सरकार को भी हम जैसे कलाकारों की कद्र करनी चाहिए और उन्हें उचित सम्मान भी देना चाहिए.

कौन है ढोरी माता?

12 जून 1956 को ढोरी खदान से कोयला निकालने के क्रम में एक मूर्ति मिली थी. जो बाद में ढोरी माता के नाम से प्रसिद्ध हुई.
मान्यता है कि ढोरी माता कोयला खदानों में काम करने वालों की रक्षा करती है. यहां ईसाइयों के अलावा दूसरे संप्रदाय के लोग भी मत्था टेकते हैं.
1957 के अक्टूबर महीने में अल्बर्ट भराकन की अगुवाई में ढोरी माता की मूर्ति जारंगडीह स्थित संत अंथोनी गिरजाघर में रखी गई थी. जिसके बाद 1964 के मई महीने में मूर्ति को गिरजाघर से बाहर रख कर तीर्थालय के रूप में स्थापित किया गया था. बोकारो के बेरमो प्रखंड में यह तीर्थालय है.

Intro:प्रतिभा किसी की मोहताज नहीं होती ।अथक मेहनत और सही दिशा में काम करने से प्रतिभा निखरती भी है ।ऐसा ही एक प्रतिभावान मूर्तिकार पास्कल प्रभु वाला पिछले 40 वर्षों से सड़क के किनारे मूर्ति बना रहा है। जिसकी मूर्ति की मांग विदेशों में भी है। लेकिन सरकारी उपेक्षा के कारण उसे उचित स्थान नहीं मिला। लेकिन वह हिम्मत नहीं हारा और काम करता रहा। इसका ही परिणाम है कि हजारीबाग चर्च के फादर जोजो बिशप ने उसे ढोरी माता का मूर्ति बनाने का ऑर्डर दिया है जो पेरिस के पॉप को तोहफे के रूप में देंगे।


Body:कोई भी कलाकार अपने आपको तब सफल बनता है जब उसकी कला की पूछ होने लगती है। ऐसा ही एक कलाकार पास्कल प्रभु वाला हजारीबाग के जुलू पार्क स्थित चर्च के सामने पिछले 40 वर्षों से लकड़ी की मूर्ति बना रहा है ।

पास्कल की मूर्ति की मांग सिर्फ हजारीबाग ही नहीं बल्कि देश और विदेश में भी है ।वह अभी ढोरी माता का मूर्ति बना रहा है। यह मूर्ति इसलिए खास है कि हजारीबाग के चर्च के फादर जोजो बिशप रोम के पॉप को उपहार के रूप में देंगे ।पास्कल इस मूर्ति को बेहद ही खूबसूरती के साथ तैयार भी कर रहा है ।उसका कहना है कि यह उसके लिए आज का दिन बेहद खास है ।क्योंकि उसका बनाया हुआ मूर्ति विदेश जा रहा है और वह भी पॉप के हाथ में ।जिससे हजारीबाग और झारखंड का नाम तो होगा ही साथ ही साथ संतुष्टि भी मिलेगी। उसे वह मंच मिला जिसकी व तलाश पिछले 40 वर्षों से कर रहा है।

पास्कल जहां एक ओर काफी खुश है कि उसकी मूर्ति पॉप के हाथों में जाने वाली है ।तो दूसरी ओर दुख भी है कि सरकार ने उसे आज तक सम्मान नहीं दिया। उसका कहना है कि सरकार अगर उसे सहयोग करती तो आज उसकी यह स्थिति नहीं होती। उसका कहना है कि सरकारी जमीन मे एक कमरे में वह पिछले 40 सालों से रह रहा है और उसका सुध लेने वाला भी कोई नहीं है। उसकी मां देख नहीं सकती थी और पिता की मौत बचपन में ही हो गई ।ऐसे में उसका जीवन भी काफी कष्ट में बीता ।चर्च के फादर ने उसे सहायता की और वह पूना आर्ट कॉलेज में पढ़ाई किया और मूर्ति बनाना सिखा ।पढ़ाई करने के बाद वह हजारीबाग आया और यहीं पर मूर्ति बना रहा है ।उसका कहना है कि अगर सरकार उसे मदद करती तो और वह कलाकारों को सिखाता ताकि यह कलाकार आगे भी जीवित रहती।

उसकी पत्नी भी उसका साथ देती है और कहती है कि बेहद गरीबी में जीवन यापन करना पड़ता है ।क्योंकि हजारीबाग में मूर्ति खरीदने वाले और आर्डर देने वालों की कमी है। ऐसे में कभी-कभार कोई विदेशी मेहमान हजारीबाग पहुंचता है तो वह मूर्ति बनाने का ऑर्डर देता है। साथ ही साथ कभी कभार बाहर के लोग भी बनाने के लिए आर्डर देते हैं ।एक मूर्ति को बनाने में महीनों लग जाता है ।इसलिए सरकार को भी हम जैसे कलाकारों का कद्र करना चाहिए और उन्हें उचित सम्मान भी देना चाहिए।



byte..... पास्कल प्रभु दास ,मूर्तिकार
byte...... रानी टोप्पो, मूर्तिकार की पत्नी





Conclusion:कौन है ढोरी माता..।.

12 जून 1956 को ढोरी खदान से कोयला निकालने के क्रम में एक मूर्ति मिली थी। जो बाद में ढोरी माता के नाम से प्रसिद्ध हुई।
ढोरी माता को कोयला खनिको का संरक्षिका माना जाता है। सीसीएल कामगारों के लिए भी ढोरी माता रक्षा कवच के रूप में मानी जाती है। यहां ईसाइयों के अलावा दूसरे संप्रदाय के लोग भी माथा टेकते हैं।

1957 के अक्टूबर माह में फादर अल्बर्ट भराकन की अगुवाई में ढोरी माता की मूर्ति जारंगडीह स्थित संत अंथोनी गिरजाघर में रखी गई ।फादर अलबर्ट भराकन के नेतृत्व में मूर्ति गिरजाघर से बाहर लाकर वर्ष 1964 के मई माह में तीर्थालय में स्थापित किया गया था। झारखंड के बोकारो जिला के बेरमो प्रखंड में यह तीर्थालय है।
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