हजारीबाग आजकल हमारा समाज धर्म और जाति के आधार पर इस तरह बंटता जा रहा है कि आए दिन कोई न कोई घटना घटती रहती है. जिससे मन विचलित हो जाता है. लेकिन आज भी कई ऐसे जगह हैं, जहां के लोग आपसी सौहार्द्र की अलग कहानी बयां करते हैं. हम आपको एक ऐसी दरगाह के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां सभी फूल विक्रेता हिंदू समुदाय से हैं. कोई 50 साल से तो कोई दो-तीन पीढ़ियों से अकीदतमंद के लिए फूल बेच रहा है.
सालाना उर्स का आयोजन: हजारीबाग के हजरत दाता मदरसा की दरगाह पर सालाना उर्स मेला का आयोजन किया जाता है. इस बार 366वें उर्स मेले का आयोजन किया जा रहा है. यह उर्स मेला आपसी एकता का भी प्रतीक है. जहां हिंदू और मुस्लिम आकर सिर झुकाते हैं, वहीं दूसरी ओर एक हिंदू परिवार 60 साल से भी अधिक समय से यहां फूलों की दुकान लगाता आ रहा है. इस दुकान से लोग फूलों की चादरें खरीदते हैं और बाबा की चादरपोशी करते हैं.
मेला देखने वालों की उमड़ी भीड़: हजरत दाता मदारा शाह के सालाना उर्स के मौके पर हजारीबाग में अकीदतमंद उमड़ पड़े. चादरपोशी और मेला देखने वालों की भीड़ सुबह से रात तक लगी रही. दूर-दूर से आए अकीदतमंदों ने दाता के दरबार में हाजिरी लगाई. सभी ने देश की तरक्की और शांति के लिए दुआ की. इस बार समाज के लोगों की मदद के लिए कई सामाजिक कार्य भी किए जा रहे हैं.
हर साल होता है मेले का इंतजार: हजरत दाता मदरसा के मजार परिसर में तीन फूल वाले फूल का कारोबार करते हैं, जिनमें रामदुलारी भी हैं. जो पिछले 30 सालों से मजार पर फूल बेचकर अपना गुजारा कर रही हैं. उनका कहना है कि हम साल भर उर्स मेले का इंतजार करते हैं ताकि फूल बेचकर अपना घर चला सकें. उनका कहना है कि फूलों का कारोबार साल भर चलता है लेकिन उर्स के दौरान फूलों की मांग बढ़ जाती है.
दरगाह हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक: परिसर के अंदर डायमंड जी का परिवार भी पिछली तीन पीढ़ियों से फूल बेच रहा है. डायमंड जी के बेटे अमन कुमार बताते हैं कि हम यहां 50 से 60 साल से फूल बेच रहे हैं. इस मजार की खासियत यह है कि हमारे तीन अलग-अलग हिंदू परिवार हैं जो परिसर के अंदर फूल बेचते हैं. बाबा को उनके ही फूलों से बनी चादर चढ़ाई जाती है. यह आपसी एकता का प्रतीक है. इन दिनों पूरा देश धर्म और मजहब में उलझा हुआ है. ऐसे में हजारीबाग का दाता बाबा दरगाह हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक है.
शनि मालिक मालाकार 30 वर्षों से मजार परिसर में फूलों का कारोबार कर रहे हैं. वे खीरगांव के रहने वाले हैं. उनका कहना है कि पहले उनके पिता फूलों की चादरें बेचते थे, अब वे बेच रहे हैं. यहां साल भर दुकान लगती है. वे फूलों की चादर बनाते हैं जो बाबा पर चढ़ाई जाती है. उनका कहना है कि शायद ही कोई ऐसा मजार है, जहां मजार परिसर के अंदर सिर्फ तीन दुकानें हों और इन्हें हिंदू धर्म के लोग चलाते हों.
तकिया बाबा मजार के नाम से भी प्रसिद्ध दरगाह: हजरत दाता बाबा दरगाह को तकिया बाबा मजार के नाम से भी जाना जाता है. इस मजार के बारे में मान्यता है कि जो भी सच्चे मन से यहां मन्नत मांगता है, उसकी मनोकामना पूरी होती है. यहां सभी धर्मों के लोग आते हैं और सिर झुकाते हैं. पिछले सैकड़ों वर्षों से यहां उर्स का आयोजन होता आ रहा है. जहां न सिर्फ हजारीबाग बल्कि दूसरे राज्यों से भी उनके चाहने वाले पहुंचते हैं.
यह भी पढ़ें: पासपोर्ट वाले बाबा की अजब महिमा! विदेश में नौकरी पाने के लिए श्रद्धालु लगाते हैं अर्जी
यह भी पढ़ें: कौमी एकता की मिसाल बनी बाबा खलील शाह की दरगाह, यहां सभी धर्म के लोगों की होती हैं मुरादें पूरी
यह भी पढ़ें: बोकारो के दुर्गा मंदिर परिसर में स्थित है मजार, सदियों से बनी है आपसी सद्भावना की मिसाल