गोड्डा: देश की आजादी की लड़ाई में गोड्डा की धरती का अमूल्य योगदान रहा है. अब तक 101 स्वतंत्रता सेनानी का नाम सरकारी दस्तावेज में अंकित है, लेकिन कई ऐसे लोग भी हैं जिनके नाम भले ही सूची में न हो लेकिन उनका योगदान रहा है.
और पढ़ें- मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने चाईबासा-लोहरदगा की घटना पर जताई चिंता, कहा- नए झारखंड का करेंगे निर्माण
1942 की लड़ाई में इस केंद्र का बड़ा योगदान
इन सबों के रणनीति का जो केंद्र होता था वह था बनैली स्टेट का तत्कालीन लोक सेवा केंद्र जिसकी देख भाल से हर खर्च की जिम्मेदारी स्टेट के राजा पंडित रामेश्वर बाबू उठाते थे. अब तक घोषित सभी स्वतंत्रता सेनानियों के केंद्र बनैली स्टेट ही होता था. इस भवन से ही आंदोलन की रणनीति तैयार होती थी. खासकर 1942 की लड़ाई में इस केंद्र का बड़ा योगदान रहा, जहां से बुद्धिनाथ झा कैरव, जगदीश मंडल, सगरमोहन पाठक, भागवत झा आजाद रामणिकांत जहां सरीखे कई लोग निकले इनमें से ज्यादातर लोग अब नहीं है.
वर्तमान में गोड्डा जिले में कुल 5 स्वतंत्रता सेनानी जीवित रह गए. इन्ही में से एक बड़ा नाम रमणी कांत झा जिनकी उम्र सौ वर्ष से ज्यादा हो गई है, लेकिन आज भी जब आजादी की बात होती है तो वह हर वाकये को याद करते हैं. वे कहते हैं कैसे 1942 की लड़ाई में इसी लोक सेवा केंद्र से भाग कर बैंक होते हुए नेपाल के जानकीपुर पहुंचे. झा बिहार से भागकर के नेपाल में छिप कर रहे थे. बाद में वे सरवोदय आंदोलन से भी जुड़े और विनोबा भावे के साथ काम किया. उनके पुत्र जगद्धात्री झा जो कांग्रेस के वरिष्ठ नेता है वो अपने पिता के अनुभव शेयर करते हैं. उस पीढ़ी के कई बुजुर्ग भी हैं जिन्हें उस वक्त का वाक्या याद है और बताते हैं कैसे ये लड़के सरकार के विरोध में तोड़-फोड़ करते थे.