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गढ़वा में त्रिदेव के रूप में विराजमान हैं भगवान वंशीधर, अनूठा है इतिहास

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Published : Aug 24, 2019, 12:07 AM IST

गढ़वा में त्रिदेव के रूप में भगवान श्री कृष्ण की अनोखी मूर्ति है, जो सोने से बना हुआ है. इस मूर्ति का वजन 1280 किलो का है. यहां हर रोज भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है, लेकिन जन्माष्टमी के अवसर पर यहां का नजारा कुछ अलग ही होता है.

त्रिदेव के रूप में विराजमान हैं भगवान वंशीधर

गढ़वा: जिले के वंशीधर नगर में भगवान श्री वंशीधर की शुद्ध सोने की मूर्ति राधा रानी के साथ विराजमान हैं. इस मूर्ति का वजन लगभग 1280 किलो बताया जाता है. विश्व प्रसिद्ध योगेश्वर कृष्ण के दर्शन के लिए यहां हर रोज हजारों भक्तों की भीड़ उमड़ती है, लेकिन जन्माष्टमी के पवित्र अवसर पर यहां भक्तों की श्रद्धा अलौकिक हो जाती है.

देखें जन्माष्टमी पर स्पेशल स्टोरी

कहा जाता है कि भगवान वंशीधर के दर्शन होने से सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है. वंशीधर नगर उत्तर प्रदेश, छतीसगढ़ और बिहार की सीमा पर मिश्रित संस्कृति का बेजोड़ स्थल है. यहां हरी-भरी वादियों, कन्दराओं, पर्वतों और नदियों के अलावा कई प्राकृतिक मनोरम दृश्य देखने को मिलता है. इस पावन नगरी में योगेश्वर कृष्ण का हर्षित आकर्षक, मोहक और आत्म शांति प्रदान करने वाला मुखमंडल लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है. विश्व विख्यात इस मूर्ति में जटाधारी कृष्ण शेष शैय्या और कमलपुष्प पर विराजमान होकर वंशी वादन कर रहे हैं.

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त्रिदेव के रूप में विराजमान हैं भगवान वंशीधर
जानकार बताते हैं कि खुले लट और घुंघराले बाल वाले कृष्ण शेषनाग पर भगवान महादेव के रूप में विराजमान हैं. इसी तरह यहां पर कमलपुष्प ब्रह्मा का भी आसन है और श्री कृष्ण खुद भगवान विष्णु के अवतार हैं. यहां वंशीधर की अद्भुत प्रतिमा ब्रह्मा, विष्णु और महेश के रूप में विराजमान हैं.

पहले रानी के सपनों में, फिर वंशीधर नगर पधारे श्री कृष्ण
जानकारों के अनुसार, नगर ऊंटारी रियासत के राजा भवानी सिंह कि विधवा रानी शिवमानी कुंवर भगवान श्री कृष्ण की बहुत बड़ी भक्त थी. वह जन्माष्टमी का व्रत की हुई थी. 14 अगस्त 1827 की मध्य रात्रि भगवान कृष्ण रानी के सपनों में आए और वरदान मांगने को कहा. रानी ने सदैव कृपा बनाए रखने का अनुरोध किया.

कनहर नदी किनारे शिव पहाड़ी से लाया गया है मूर्ति
भगवान ने उन्हें उत्तर प्रदेश की सीमा पर कनहर नदी के किनारे शिव पहाड़ी पर अपनी प्रतिमा गड़े होने की बात बताई. श्री कृष्ण ने रानी को उस प्रतिमा को अपने राज्य में लाने को कहा, जिसके बाद रानी ने पहाड़ी पर खुदाई करवाकर उस प्रतिमा को हाथियों पर लादकर नगर ऊंटारी लाया. प्रतिमा को स्थापित कराकर वहां पर मंदिर का निर्माण करवाया गया, उसके बाद से ही नगर ऊंटारी का नाम बदलकर वंशीधर नगर रख दिया गया. 2018 में झारखंड सरकार ने भी नगर ऊंटारी का नाम बदलकर वंशीधर नगर करने की अधिसूचना जारी किया और अब इसे वंशीधर नगर से जाना जाता है.

सरकार प्रतिवर्ष मनाती है श्री वंशीधर महोत्सव
झारखंड सरकार ने श्री वंशीधर मंदिर को पर्यटन केंद्र घोषित किया है. सरकार यहां हर साल श्री वंशीधर महोत्सव का आयोजन करवाती है. इस आयोजन में श्रद्धालुओं को विशेष सुविधा भी दी जाती है. सरकार मंदिर के विकास के लिए लगातार प्रयास भी कर रही है.

एक सप्ताह लगता है मेला, होता है भागवत कथा
वैसे तो इस मंदिर में प्रतिदिन देश भर के भक्तगण दर्शन के लिए आते हैं, लेकिन जन्माष्टमी के अवसर पर भगवान के दर्शन के लिए यहां भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती हैं. इस मौके पर मंदिर परिसर मेला में तब्दील हो जाता है. वहीं, एक सप्ताह के लिए विद्वान आचार्यों द्वारा श्रीमद भागवत कथा का भी प्रवचन करवाया जाता है.

मंदिर के ट्रस्टी सह वंशीधर नगर गढ़ के युवराज राजेश प्रताप देव ने बताया कि रानी शिवमानी कुंवर के कारण यहां भगवान की विश्व प्रसिद्ध अद्वितीय प्रतिमा स्थापित की गई है. जन्माष्टमी के मौके पर यहां कई तरह के कार्यक्रम किए जाते हैं.

Intro:गढ़वा। झारखंड के गढ़वा में वंशीधर नगर में भगवान श्री वंशीधर की 32 मन की शुद्ध सोने की मूर्ति राधा रानी के साथ विरसजमान हैं। विश्व प्रसिद्ध योगेश्वर कृष्ण के दर्शन के लिए वैसे तो यहां प्रतिदिन भक्तों की भीड़ उमड़ती है, लेकिन जन्माष्टमी के पवित्र दिन को भक्तों का श्रद्धा अलौकिक बन जाती है। कहा जाता है कि भगवान वंशीधर के दर्शन मात्र से मनोकामनाएं पूरी हो जाती है।


Body:वंशीधर नगर उत्तर प्रदेश, छतीसगढ़ और बिहार की सीमा पर तीनों राज्यों की मिश्रित संस्कृति का बेजोड़ स्थल है। हरी-भरी वादियों, कन्दराओं, पर्वतों और नदियों से आच्छादित मनोरम इस पावन नगरी में योगेश्वर कृष्ण का हर्षित आकर्षक, मोहक और आत्म शांति प्रदान करने वाला मुखमंडल लोगों को बरवस अपनी ओर आकर्षित करता है। विश्व विख्यात इस मूर्ति में जटाधरी कृष्ण शेष शैय्या और कमलपुष्प पर विराजमान होकर वंशी वादन कर रहे हैं।

त्रिदेव के रूप में विराजमान हैं भगवान वंशीधर

जानकार बताते हैं कि खुले लट और घुंघराले बाल वाले कृष्ण शेषनाग पर भगवान महादेव के रूप में विराजमान हैं। इसी तरह कमलपुष्प ब्रह्मा का आसन है और श्री कृष्ण स्वयं भगवान विष्णु के अवतार हैं। इस तरह वंशीधर की यह अद्भुत प्रतिमा यहां त्रिदेव यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश के रूप में विराजमान है।

पहले रानी के सपना में फिर वंशीधर नगर पधारे श्री कृष्ण

किवंदतियों के अनुसार नगर ऊंटारी रियासत के राजा भवानी सिंह की विधवा रानी शिवमानी कुंवर भगवान श्री कृष्ण की अनन्य भक्त थी। वह जन्माष्टमी व्रत की हुई थीं। 14 अगस्त 1827 की मध्य रात्रि भगवान कृष्ण रानी के सपने में आये और वरदान मांगने को कहा। रानी ने सदैव कृपा बनाये रखने का अनुरोध किया। भगवान ने उन्हें उत्तर प्रदेश की सीमा पर कनहर नदी के किनारे शिव पहाड़ी पर अपनी प्रतिमा गड़े होने की बात कही। श्री कृष्ण के रानी को उस प्रतिमा को अपने राज्य में लाने को कहा। रानी ने पहाड़ी पर खुदाई कराकर उस प्रतिमा को हाथियों पर लादकर नगर ऊंटारी में लाया। प्रतिमा को स्थापित कराया फिर मन्दिर का निर्माण कराया। उसी समय नगर ऊंटारी का नाम बदलकर वंशीधर नगर कर दिया। 2018 में झारखंड सरकार ने भी नगर ऊंटारी का नाम बदलकर वंशीधर नगर करने की अधिसूचना जारी कर दिया और अब इसे वंशीधर नगर से जाना जाता है।

सरकार प्रतिवर्ष मनाती है श्री वंशीधर महोत्सव

सरकार ने श्री वंशीधर मन्दिर को पर्यटन केंद्र घोषित किया है। सरकार यहां प्रतिवर्ष श्री वंशीधर महोत्सव का आयोजन कर मन्दिर के विकास और श्रद्धालुओं को सुविधा प्रदान करने का प्रयास करती है।

एक सप्ताह लगता है मेला, होता है भागवत कथा

वैसे तो इस मंदिर में प्रतिदिन देश भर के भक्तगण दर्शन के लिए आते है, परन्तु जन्माष्टमी के दिन भगवान के दर्शन के लिये दर्शक उमड़ पड़ते हैं। इस मौके पर मन्दिर परिसर मेला में तब्दील हो जाता है। वहीं एक सप्ताह के लिए विद्वान आचार्यों द्वारा श्रीमद भागवत कथा का वाचन-प्रवचन कराया जाता है।


Conclusion:मन्दिर के ट्रस्टी सह वंशीधर नगर गढ़ के युवराज राजेश प्रताप देव ने कहा कि रानी शिवमानी कुंवर के कारण यहां भगवान की विश्व प्रसिद्ध अद्वितीय प्रतिमा स्थापित हुई है। जन्माष्टमी के मौके पर आवश्यक व्यवस्था की जाती है।
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बाइट-राजेश प्रताप देव, ट्रस्टी, श्री वंशीधर मन्दिर
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