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बैंक वाली दीदी: मेचुआ गांव की एक महिला सशक्त बनकर चला रही है बैंक, रात को भी मिलता है पैसा

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Published : Aug 13, 2021, 8:46 PM IST

Updated : Aug 14, 2021, 6:16 PM IST

जमशेदपुर के मेचुआ गांव की एक महिला सशक्त बनकर बैंक चला रही है. इससे गांव की तस्वीर और तकदीर दोनों बदल रही है. बैंक वाली दीदी के नाम से पहचान बनाने वाली सोनामनि लोहार ने कई लोगों को बैंक से जोड़ा. घर पर जाकर भी बैंकिंग सेवा देती हैं.

Bank didi sonamani
बैंक दीदी सोनामनि

जमशेदपुर: 21वीं सदी के हिंदुस्तान में अब गांवों की तस्वीर बदल रही है. ग्रामीण क्षेत्र में सीमित संसाधन में अपनी जिंदगी संवारने के लिए ग्रामीण खुद को बदलकर गांव की तकदीर लिख रहे हैं जिनमें महिलाएं प्रमुखता से कदम बढ़ा रही हैं. इसके कारण आज ग्रामीण क्षेत्र में व्यवस्थाएं बदल रही है और ये शहर की व्यवस्था को चुनौती देने की ओर अग्रसर हैं. सरकार की विभिन्न योजनाओं से जुड़ने के बाद गांव की महिलाएं आज न केवल आत्मनिर्भर हो रही हैं बल्कि अपने परिवार और समाज को एक नई दिशा देने में जुटी हुई हैं.

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जमशेदपुर शहर से 21 किलोमीटर दूर पोटका विधानसभा क्षेत्र के मेचुआ गांव में रहने वाली एक महिला सोनामनि लोहार आज गांव की महिलाओं के लिए प्रेरणा बन गई हैं. सोनामनि की मेहनत और इक्छाशक्ति ने उसे बैंक वाली दीदी का नाम दिया है. अपने घर में बैंक चलाने वाली सोनामनि के बैंक से रात के वक्त भी पैसा मिलता है.

देखिये स्पेशल रिपोर्ट

खुद की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए उठाया कदम

सोनामनि लोहार की शादी एक साधारण परिवार में हुई थी. आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने के कारण परिवार की चलाना मुश्किल था. पति किसान हैं. अपने परिवार और बच्चों का भविष्य संवारने के लिए सोनामुनि महिला स्वयं सहायता समूह से जुड़ीं और अपने दम पर गांव की महिलाओं को जागरूक कर 14 महिला समूह बनाकर उसका संचालन करने लगीं. आर्थिक समस्या से उबरने के लिए सोनामनि दीदी बैंक बनाकर हर सप्ताह महिलाओं से 10 रुपये जमा करती थीं. गांव की किसी महिला को अचानक पैसे की जरूरत होने पर सोनामनि उन्हें अपने दीदी बैंक से पैसे देती थीं. वह झारखंड सरकार के ग्रामीण विकास विभाग की ओर से संचालित झारखंड स्टेट लाईवलीहुड प्रमोशन सोसायटी जेएसएलपीएस से जुड़ीं. सोनामनि की कार्यक्षमता को देखते हुए जिला कार्यक्रम प्रबंधक की पहल पर एक बैंक के शाखा की ओर से उन्हें बैंक बीसी बैंकिंग क्रॉसपोंडेंस का कार्य देकर एक नई जिम्मेदारी दी गई.

6 महीने में सीख गई कंप्यूटर चलाना

मैट्रिक पास सोनामनि ने बताया कि उसे कंप्यूटर चलाना नहीं आता था लेकिन 6 महीने में कंप्यूटर चलाना सीख गई. आज कीबोर्ड पर सोनामनि की उंगलियां दौड़ती हैं. सोनामनि ने अपने घर मे एक मिनी बैंक खोलकर काम करना शुरू किया. इस दौरान उसने गांव की सभी महिलाओं का बैंक खाता खोलकर उन्हें बैंक से जोड़ा. वह बताती हैं कि अच्छी सेवा देते-देते लोग उन्हें जानने लगे और उनके पास आने लगे. आज वह बैंक वाली दीदी के रूप मे एक पहचान बना चुकी हैं.

मेहनत के जरिये मिली पहचान

सोनामनि लोहार ने बताया कि खाताधारी किसी भी वक्त उनके घर में आकर अपने खाता से पैसा निकालते हैं और जमा करते हैं. खाता धारक का फिंगर प्रिंट के जरिये ट्रांजेक्शन पूरा होता है. इसके अलावा मनी ट्रांसफर का काम भी वो करती हैं. महिलाओं के लिए सोनामनि का कहना है कि खुद को सबल करने के लिए जागरूक होने की जरूरत है. आज उनकी मेहनत के जरिये ही पहचान मिली है और आर्थिक लाभ भी मिल रहा है. सरकार की विभिन्न योजनाओं के जरिये ग्रामीणों को जागरूक कर उन्हें योजनाओं का लाभ पहुंचाने के प्रयास में जुटे हुए हैं.

ईमानदारी से कायम किया विश्वास

झारखंड स्टेट लाईवलीहुड प्रमोशन सोसायटी के जिला कार्यक्रम प्रबंधक जेवियर एक्का बताते हैं कि सोनामनि लोहार ने अपने उत्कृष्ट सेवा और ईमानदारी के बल पर लोगों के बीच विश्वास कायम किया है और आज लोग खुद उनके पास सेवा लेने के लिए आते है. सोनामनि वर्तमान में हर महीने करीब 30 लाख का बैंकिंग ट्रांजेक्शन कर लेती हैं. इसके अलावा घर-घर जाकर सेवा भी देती हैं. यह महिलाओं के लिए एक प्रेरणा हैं.

लोगों के लिए प्रेरणा हैं सोनामनि

सोनामनि को शुरुआती दौर में थोड़ा वक्त लगा लेकिन अब मेचुआ गांव के अलावा आसपास के कई गांव के लोग सेवा लेने के लिए पहुंचते हैं. घर में महिलाओं की भीड़ लगी रहती है. वह बैंक में लोगों का बीमा भी कराती हैं. अपने मिनी बैंक के साथ-साथ वृद्धा, विधवा पेंशन के अलावा दिव्यांग लोगों के लिए स्वामी विवेकानंद प्रोत्साहन भत्ता की राशि निकासी के लिए घर में जाकर भी बैंकिंग सेवा देती हैं. गांव के एक घर में बैंक की सुविधा मिलने पर कोरोना काल में लोगों को भीड़ से बड़ी राहत मिली है. छात्रा संयोगिता का कहना है कोरोना काल में बाहर जाना मना है. ऐसे में हमें गांव में ही बैंक की सुविधा मिल जाती है. समय की कोई पाबंदी नहीं है. संयोगिता बताती हैं कि सोनामनि से काफी कुछ सीखने को मिलता है. वो हमारे गांव के लिए एक प्रेरणा हैं.

रात के अंधेरे में भी गांव की महिलाओं के अलावा बुजुर्ग अपने गांव के बैंक वाली दीदी के घर पैसे लेने के लिए पहुंचती हैं. उनका कहना है कि हमने कभी बैंक जाने का सोचा भी नहीं था लेकिन सोनामनि के प्रयास से हमारा बैंक अकाउंट खुला है. पैसे निकालने या जमा करने के लिये कोई परेशानी नहीं होती है. हमें अपनी बैंक वाली दीदी पर विश्वास है. एक तरफ ग्रामीण महिलाएं सरकार की विभिन्न योजनाओं से जुड़कर आत्मनिर्भर और सशक्त हो रही हैं. वहीं, बैंक दीदी के नाम से पहचान बनाने वाली सोनामनि खुद सशक्त बनकर गांव को सशक्त बनाने का प्रयास कर रही हैं जो एक सराहनीय कदम है.

Last Updated : Aug 14, 2021, 6:16 PM IST
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