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Tribal Research Institute: उपेक्षा का शिकार होकर बंद हो गया दुमका का आदिवासी शोध संस्थान

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Published : Jan 24, 2022, 5:43 PM IST

Updated : Jan 24, 2022, 7:46 PM IST

सरकारी उपेक्षा का दंश झेलते-झेलते दुमका का आदिवासी शोध संस्थान (Tribal Research Institute) आखिरकार बंद हो गया. इसको लेकर आदिवासी समाज के लोग काफी नाराज और निराश हैं. वो सरकार से आदिवासी शोध संस्थान को जल्द चालू कराने की मांग कर रहे हैं.

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दुमका का आदिवासी शोध संस्थान

दुमकाः अलग झारखंड राज्य के गठन का एक बड़ा उद्देश्य यहां की जनजातीय समाज का समग्र विकास भी था. यहां की पूरी राजनीति आदिवासियों के उत्थान के इर्द-गिर्द घूमती है. वर्तमान समय में हेमंत सरकार ने आदिवासियों के हित का हवाला देते हुए पिछले शीतकालीन सत्र में आदिवासी विश्वविद्यालय के बिल को पास करवाया. लेकिन इससे जुड़ा महत्वपूर्ण पहलू के रूप में काम करने वाला दुमका का आदिवासी शोध संस्थान (Tribal Research Institute) उपेक्षा का शिकार होकर बंद हो गया. इससे आदिवासी समाज नाराज हैं.

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झारखंड में जनजातीय विकास को लेकर कई तरह की पहल गयी. इसके लिए आदिवासी विश्वविद्यालय के बिल भी पास कराया गया. लेकिन अब हम आपको आदिवासियों के हित से जुड़े एक अन्य पहलू से रूबरू कराते हैं. आपको लिए चलते हैं झारखंड की उपराजधानी दुमका. दुमका शिबू सोरेन की कर्मभूमि रही है, वो यहां से आठ बार सांसद रहे हैं. वर्तमान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन 2009 में पहली बार दुमका से ही विधायक बने और पहले डिप्टी सीएम और सीएम की गद्दी को संभाला. अभी उनके भाई बसंत सोरेन दुमका के विधायक हैं. शिबू सोरेन की पुत्रवधू सीता सोरेन दुमका जिला के जामा विधानसभा की लगातार प्रतिनिधित्व कर रही हैं. इसके बावजूद 2007-08 में दुमका में स्थापित किया गया जनजातीय शोध संस्थान सरकारी उपेक्षा का शिकार होते होते पूरी तरह से बंद हो गया है. संस्थान के मुख्य गेट पर लटका ताला इस बात का संकेत दे रहा है कि इस पर किसी हुक्मरानों ने ध्यान नहीं दिया.

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आदिवासी शोध संस्थान में होते थे रिसर्च वर्कः झारखंड की उपराजधानी दुमका में वर्ष 2007-08 में आदिवासियों के जीवन पर शोध करने के लिए झारखंड सरकार के द्वारा एक आदिवासी शोध संस्थान स्थापित कराया गया था. कल्याण विभाग द्वारा संचालित इस शोध संस्थान में आदिवासियों के जीवन से जुड़े सभी पहलू, उनकी संस्कृति, कला, साहित्य, जीवन शैली, पर्व त्योहार पर शोध किया जाता था. इसमें कार्यरत अधिकारी और कर्मी गांव-गांव जाकर जनजातीय समाज के लोगों की सरकार से क्या अपेक्षा है, इसकी जानकारी प्राप्त कर विभाग को रिपोर्ट करते थे. अगर कोई अन्य व्यक्ति पर इस विषय पर रिसर्च करते तो इस संस्थान के द्वारा उन्हें संबंधित पुस्तकें और अन्य मेटेरियल भी उपलब्ध कराया जाता. इसके लिए देश भर के आदिवासी साहित्यकारों के हजारों पुस्तके यहां उपलब्ध थे.

सरकारी उदासीनता की भेंट चढ़ गया महत्वपूर्ण संस्थानः 2008 के बाद से यह संस्थान काफी बेहतर तरीके से काम करना शुरू किया. लगभग एक दशक तक इसने अपनी भूमिका अच्छी तरह निभायी. लेकिन उसके बाद इसमें कार्यरत अधिकारी और कर्मी की कमी होने लगी, धीरे-धीरे सभी मैन पावर हटने लगे, संस्थान जैसे-तैसे चलने लगा. एक समय यह भी वक्त आया जब इसकी विद्युत व्यवस्था काट दी गयी और सिर्फ एक नाइट गार्ड इसे संभालने लगा. कुछ माह पहले एक दिन ऐसा भी आया जब इसके मुख्य गेट पर बड़ा सा ताला लटका दिया गया. दुमका देश में काफी संख्या में आदिवासी समाज के लोग निवास करते हैं. वो भी गाहे-बगाहे इस आदिवासी शोध संस्थान पहुंचते और जानकारियां प्राप्त करते हैं. लेकिन अब जब बंद हो गया तो उन्हें काफी नाराजगी है, वो काफी मायूस भी हैं. उनका कहना है कि इतना बड़ा संस्थान हमारे यहां था लेकिन यह बंद कर दिया गया. वो सरकार से मांग कर रहे हैं कि जल्द से जल्द इसे चालू कराया जाए.

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क्या कहते हैं दुमका सांसदः दुमका के आदिवासी शोध संस्थान के बंद हो जाने के मामले में दुमका सांसद सुनील सोरेन से बात की. उन्होंने कहा कि यह काफी दुखद विषय है कि आदिवासी शोध संस्थान सरकारी उपेक्षा का भेंट चढ़ गया और बंद हो गया. वो कहते हैं कि भारत सरकार के आदिवासी कल्याण मंत्री अर्जुन मुंडा से बात करूंगा और प्रयास रहेगा कि इसे चालू करवाया जाए. ईटीवी भारत की टीम ने विभागीय अधिकारी से भी बात की. उन्होंने बताया कि यह संस्थान रांची मुख्यालय से ही संचालित हो रहा था. इसे बंद हो जाने के मामले में आवश्यक पहल की जाएगी. हालांकि कैमरे के सामने कुछ भी नहीं करना चाहते.

Last Updated : Jan 24, 2022, 7:46 PM IST
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