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धनबाद के गोमो स्टेशन से 'नेताजी' का है गहरा नाता, प्लेटफॉर्म संख्या 3 में छिपे हैं कई रहस्य

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Published : Jan 22, 2020, 5:00 PM IST

Updated : Jan 23, 2020, 9:32 AM IST

धनबाद के गोमो स्टेशन से नेताजी सुभाष चंद्र बोस का गहरा रिश्ता जुड़ा है. देश की आजादी के लड़ाई के दौरान भी वे कई बार धनबाद आ चुके हैं. महानिष्क्रमण यात्रा के दौरान वह गोमो आए थे. इसी स्टेशन से वह कालका मेल पकड़कर पेशावर के लिए रवाना हुए थे. यहीं से नेताजी के गुम हो जाने की वजह से इस स्टेशन का नाम गोमो रखा गया था.

धनबाद के गोमो स्टेशन से 'नेताजी' का है गहरा नाता, प्लैटफॉर्म संख्या 3 में छिपे हैं कई रहस्य
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धनबाद: कोयलांचल से नेताजी सुभाष चंद्र बोस का गहरा रिश्ता था. देश की आजादी को लेकर वह कई बार धनबाद दौरा कर चुके हैं. 18 जनवरी 1941 को उन्हें अंतिम बार गोमो स्टेशन में देखा गया था. महानिष्क्रमण यात्रा के दौरान वह गोमो आए थे. इसी स्टेशन से वह कालका मेल पकड़कर पेशावर के लिए रवाना हुए थे. यहीं से नेताजी के गुम हो जाने की वजह से इस स्टेशन का नाम गोमो रखा गया था.

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18 जनवरी निष्क्रमण दिवस

बता दें कि निष्क्रमण यात्रा के दौरान नेताजी सुभाष चंद्र बोस धनबाद के तोपचांची प्रखंड स्थित गोमो रेलवे स्टेशन पर 18 जनवरी को अपने कार से कोलकाता से सड़क के रास्ते गोमो पहुंचे थे. यहां पर वह अपने मित्र शेख मोहम्मद अब्दुल्ला के यहां ठहरे थे. फिर कुछ देर रहने के बाद उसी दिन अमीन नामक एक दर्जी ने उन्हें कालका मेल में बिठाकर यहां से विदा किया था, जिसके बाद वह फिर कभी नहीं देखे गए. आज भी 18 जनवरी को निष्क्रमण दिवस स्टेशन में मनाया जाता है. स्टेशन में नेताजी की प्रतिमा भी लगाई गई है और जगह-जगह वॉल पेंटिंग कर नेताजी की यादों को दिखाने का प्रयास किया गया है. 23 जनवरी को नेताजी के जन्मदिवस पर भी यहां पर कई तरह के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं.

गौरतलब है कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस 18 जनवरी को अपने बेबी अस्टिन कार से गोमो पहुंचे थे और शेख मोहम्मद अब्दुल्ला के घर पठान का भेष बनाकर पहुंचे थे और यहीं से वे कालका मेल को पकड़कर पेशावर के लिए रवाना हो गए थे. हालांकि उन्हें पेशावर जाना था या कहीं और यह आज तक स्पष्ट नहीं हो पाया है और इस यात्रा के बाद वह दोबारा देखें भी नहीं गए.

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17 जनवरी 2000 को किया गया नामांकरण

गोमो रेलवे स्टेशन 1906 में अस्तित्व में आई थी और इस स्टेशन का नाम उस समय क्या था इसका कोई रिकॉर्ड भी मौजूद नहीं है. लेकिन नेताजी के यहां से गुम होने के बाद इस स्टेशन को गोमोह के नाम से जाना जाने लगा. हालांकि गोमो से पूरी जानकारी स्पष्ट रूप से नेताजी के बारे में नहीं मिल पा रही थी. तब बाद में तत्कालीन रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव ने 17 जनवरी 2000 को इस स्टेशन का नाम बदलकर नेताजी सुभाष चंद्र बोस जंक्शन गोमो कर दिया गया.

शेख अब्दुल्ला और अमीन दर्जी का परिवार को है गौरव

शेख अब्दुल्ला और अमीन नामक दर्जी अब इस दुनिया में नहीं रहे लेकिन उनका परिवार आज भी गोमो में रहकर गुजर-बसर कर रहे हैं. शेख अब्दुल्लाह के पोते शेख मोहम्मद हसीबुल्लाह बताते हैं कि उनके पिताजी ने बताया था कि नेताजी पठान का भेष बनाकर अंग्रेजों से छुपते हुए यहां पर पहुंचे थे और उनके दादा शेख मोहम्मद अब्दुल्ला के कहने पर अमीन दर्जी ने उन्हें रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर 3 में रात्रि लगभग 1 बजे कालका मेल में बिठा दिया था, जिसके बाद नेताजी कभी नहीं देखे गए. अमीन दर्जी के पोते और शेख अब्दुल्ला के पोते दोनों ने कहा कि यह उनके लिए गौरव की बात है.

स्टेशन की स्थिति नाम के अनुरूप नहीं

स्थानीय लोगों का कहना है कि गोमो के लिए यह गौरव वाली बात है और यहा एक इतिहास छुपा है जिसके बारे में बहुत कम लोग ही जानते है. इस पर सरकार को विशेष ध्यान देने की जरूरत है. इस स्टेशन को एक विश्वस्तरीय आदर्श रेलवे स्टेशन के तौर पर डेवलप करना चाहिए, लेकिन सरकार इस पर ध्यान नहीं दे रही है. मात्र 18 जनवरी को निष्क्रमण दिवस और 23 जनवरी को नेताजी जन्म दिवस को मना कर इतिश्री कर ली जाती है. लोग कहते हैं कि सरकार को इस पर जल्द ही ध्यान देने की जरूरत है ताकि नेताजी की यादों को और भी बेहतरीन ढंग से लोगों के बीच लाई जा सके.

Intro:धनबाद: कोयलांचल धनबाद से नेताजी सुभाष चंद्र बोस का गहरा रिश्ता था. देश की आजादी को लेकर वह कई बार धनबाद दौरा कर चुके हैं 18 जनवरी 1941 को उन्हें अंतिम बार गोमोह स्टेशन में देखा गया था. महानिष्क्रमण यात्रा के दौरान वह गोमो आए थे. इसी स्टेशन से वह कालका मेल पकड़कर पेशावर के लिए रवाना हुए थे यहीं से नेताजी के गुम हो जाने की वजह से इस स्टेशन का नाम गोमोह रखा गया था.

Body:आपको बता दें कि निष्क्रमण यात्रा के दौरान नेताजी सुभाष चंद्र बोस धनबाद के तोपचांची प्रखंड स्थित गोमोह रेलवे स्टेशन पर 18 जनवरी को अपने कार से कोलकाता से सड़क के रास्ते गोमो पहुंचे थे. यहां पर वह अपने मित्र शेख मोहम्मद अब्दुल्ला के यहां ठहरे थे. फिर कुछ देर रहने के बाद उसी दिन अमीन नामक एक दर्जी ने उन्हें कालका मेल में बिठाकर यहां से विदा किया था. जिसके बाद वह फिर कभी नहीं देखे गए.आज भी 18 जनवरी को निष्क्रमण दिवस स्टेशन में मनाया जाता है. स्टेशन में नेताजी की प्रतिमा भी लगाई गई है और जगह-जगह वॉल पेंटिंग कर नेताजी की यादों को दिखाने का प्रयास किया गया है. 23 जनवरी को नेताजी के जन्मदिवस पर भी यहां पर कई तरह के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं.

गौरतलब है कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस 18 जनवरी को अपने बेबी अस्टिन कार संख्या बी एल ए 7169 से गोमो पहुंचे थे और शेख मोहम्मद अब्दुल्ला के घर पठान का भेष बनाकर पहुंचे थे और यहीं से वे कालका मेल को पकड़कर पेशावर के लिए रवाना हो गए थे हालांकि उन्हें पेशावर जाना था या कहीं और यह आज तक स्पष्ट नहीं हो पाया है और इस यात्रा के बाद वह दोबारा देखें भी नहीं गए.

गोमोह रेलवे स्टेशन 1906 में अस्तित्व में आई थी और इस स्टेशन का नाम उस समय क्या था इसका कोई रिकॉर्ड भी मौजूद नहीं है. लेकिन नेताजी के यहां से गुम होने के बाद इस स्टेशन को गोमोह के नाम से जाना जाने लगा. हालांकि गोमोह से पूरी जानकारी स्पष्ट रूप से नेताजी के बारे में नहीं मिल पा रही थी. तब बाद में तत्कालीन रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव ने 17 जनवरी 2000 को इस स्टेशन का नाम बदलकर नेताजी सुभाष चंद्र बोस जंक्शन गोमो कर दिया गया.

शेख अब्दुल्ला और अमीन नामक दर्जी अब इस दुनिया में नहीं रहे लेकिन उनका परिवार आज भी गोमो में रहकर गुजर-बसर कर रहे हैं. शेख अब्दुल्लाह के पोते शेख मोहम्मद हसीबुल्लाह ने बतलाया कि हमारे पिताजी ने बताया था कि नेताजी पठान का भेष बनाकर अंग्रेजों से छुपते हुए यहां पर पहुंचे थे और उनके दादा शेख मोहम्मद अब्दुल्ला के कहने पर अमीन दर्जी ने उन्हें रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर 3 में रात्रि लगभग 1 बजे कालका मेल में बिठा दिया था.जिसके बाद नेताजी कभी नहीं देखे गए.अमीन दर्जी के पोते और शेख अब्दुल्ला के पोते दोनों ने कहा कि यह हमारे लिए गौरव की बात है.

Conclusion:लोगों का कहना है कि गोमोह के लिए यह गौरव वाली बात है और यंहा एक इतिहास छुपा है जिसके बारे में आज भी बहुत कम लोग ही जानते है. जिस पर सरकार को विशेष ध्यान देने की जरूरत है. इस स्टेशन को एक विश्वस्तरीय आदर्श रेलवे स्टेशन के तौर पर डेवलप करना चाहिए लेकिन सरकार इस पर ध्यान नहीं दे रही है. मात्र 18 जनवरी को निष्क्रमण दिवस और 23 जनवरी को नेताजी जन्म दिवस को मना कर इतिश्री कर ली जाती है. जैसे दुर्गापूजा, दीपावली आदि पर्व को लोग याद करते हैं उसी तरह एक पर्व बनकर यह यादें यहां पर रह गई है सरकार को इस पर जल्द ही ध्यान देने की जरूरत है ताकि नेताजी की यादों को और भी बेहतरीन ढंग से लोगों के बीच लाई जा सके.

बाइट-

1.B C मंडल-CYM-गोमोह रेलवे स्टेशन
2.दिलीप गोस्वामी- स्थानीय
3. मोहम्मद सिराजुद्दीन- अमीन दर्जी के पोते
4. शेख मोहम्मद हसीबुल्लाह- शेख मुहम्मद अब्दुल्ला के पोते

Last Updated : Jan 23, 2020, 9:32 AM IST
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