सीमांचल में अमित शाह की रैली: बीजेपी को कराएंगे बिहार का किला फतह, ये है प्लान

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Published : Sep 22, 2022, 7:53 PM IST

Bihar Seemanchal voting trend

बिहार के सीमांचल में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की रैली को लेकर विपक्ष की नींद उड़ी हुई है. केंद्रीय गृह मंत्री के इस दौरे को बिहार की राजनीति के लिए काफी अहम माना जा रहा है. ये रैली बीजेपी की प्रदेश में वापसी कराने में अहम भूमिका निभा सकती है. आगे पढ़ें पूरी खबर...

पटना: बिहार की राजनीति में एक कहावत है कि जिसने कोसी और सीमांचल में जीत हासिल कर ली उसने बिहार जीत लिया. अगर पिछले कई चुनाव के नतीजों को उठाकर देखें तो सरकार बनाने में इन दोनों क्षेत्रों की अहम भूमिका सामने आई है. ऐसे में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Union Home Minister Amit Shah ) जब सीमांचल में अपनी रैली करने जा रहे हैं तो राजनीतिक पंडितों का सारा ध्यान उस ओर ही अटक गया है. रैली सीमांचल में हो रही है लेकिन इसकी गूंज पूरे देश में सुनाई दे रही है. बीजेपी की तरफ से इस इलाके में 23 और 24 सितंबर को बड़ी राजनीतिक पहल होनी है. जिस पर नेताओं की बयानबाजी का दौर भी जारी है और पक्ष या विपक्ष सबकी नजरें इस रैली पर टिकी हुई है.

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समझें सीमांचल का समीकरण: राज्य के सबसे पिछड़े हिस्से में शुमार होने वाले इस इलाके में चुनाव के दौरान सबसे खास बात यह होती है कि हर चुनाव में यहां अलग-अलग मुद्दे हावी रहते हैं. 2020 के चुनाव में भी एक तरफ मोदी का पक्ष, वहीं दूसरी तरफ मोदी का विरोध मुद्दा था. दरअसल सीमांचल में 4 जिलों की गिनती होती है. इनमें पूर्णिया, कटिहार, अररिया और किशनगंज शामिल हैं. इन 4 जिलों में 60 लाख के करीब मतदाता हैं. पूर्णिया जिले में 7 विधानसभा की सीटें हैं, इनमें करीब साढ़े 20 लाख मतदाता हैं. वहीं कटिहार जिले में भी 7 विधानसभा क्षेत्र हैं जहां 19 लाख के करीब वोटर हैं. अररिया जिले के 6 विधानसभा क्षेत्रों में 18 लाख के करीब तो किशनगंज के 4 विधानसभा क्षेत्रों में 11 लाख के करीब मतदाता हैं. पूर्णिया जिले में विधानसभा क्षेत्रों की बात करें तो रूपौली, धमदाहा, पूर्णिया सदर, बनमनखी, कसबा, अमौर और बायसी है. वहीं कटिहार जिले में प्राणपुर, कटिहार, मनिहारी, कोढ़ा, कदवा, बरारी और बलरामपुर सीटें हैं. अररिया में सिकटी, रानीगंज, फारबिसगंज, अररिया, जोकीहाट और नरपतगंज विधानसभा सीटें हैं. जबकि किशनगंज में किशनगंज सदर, कोचाधामन, ठाकुरगंज और बहादुरगंज विधानसभा सीटें हैं.


तीन दर्जन सीटें अहम: दरअसल बिहार विधानसभा में 243 सीटें हैं इनमें से 3 दर्जन से अधिक सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम वोटर निर्णायक स्थिति में है इन क्षेत्रों में मुस्लिम वोटर 20 से 40 फीसदी या उससे भी ज्यादा है राज्य की 11 के करीब ऐसी सीटें हैं जहां मुस्लिम मतदाता 40% के करीब हैं. अगर सीमांचल को देखा जाए तो सीमांचल कई मायनों में बिहार और देश से अलग है इनमें सबसे स्पष्ट अंतर क्षेत्र की जनसंख्या की प्रोफाइल है, सीमांचल में मुस्लिम आबादी 47% के करीब है जब कि पूरे राज्य में औसत मुस्लिम आबादी 17% है. सीमांचल की 1.08 करोड़ की आबादी में से क्षेत्र में 49 लाख मुसलमान हैं. सीमांचल के 4 जिलों में सबसे ज्यादा किशनगंज में 68 प्रतिशत, कटिहार में साढे 44.5%, अररिया में 43% और पूर्णिया में 38.5% के करीब मुस्लिम आबादी है.

वोटिंग का रहा है अलग ट्रेंड: सीमांचल से ताल्लुक रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार पुष्यमित्र बताते हैं सीमांचल में अमूमन मतदान के वक्त जो ट्रेंड होता है, वह ध्रुवीकरण में बदल जाता है. लेकिन 2020 में ट्रेंड में बदलाव हुआ था. अल्पसंख्यक के वोट में बटवारा हो गया था. जिसका नतीजा यह हुआ कि एआईएमआईएम को 5 सीटों पर सफलता मिली. उसके पहले का ट्रेंड अलग था, 2020 के पहले अल्पसंख्यक यही सोचते थे कि जो पार्टी बीजेपी को हराएगी, उसे वोट दे दिया जाएगा. पूरे सीमांचल में यह ट्रेंड अमूमन एक जैसा ही होता था.

"यहां अल्पसंख्यकों में भी दो तरह की बातें हैं. जो उच्च वर्ग के अल्पसंख्यक हैं वह अलग सोचते हैं और जो दूसरे अल्पसंख्यक हैं, जिनकी माली हालत बेहतर नहीं है या जो घर से कम निकलते हैं, वह अलग सोचते हैं. इन सबसे अलग अल्पसंख्यक वर्ग में जो युवा हैं वह अलग सोचते हैं. वह डेवलपमेंट खोजते हैं, सोशल मीडिया पर डेवलपमेंट को लेकर बहुत एक्टिव रहते हैं. पूरे इलाके में तमाम सोशल मीडिया ग्रुप बने हुए हैं. वह कहते हैं, पूरे सीमांचल की एक सबसे बड़ी खास बात यह है कि यहां मुसलमानों में नहीं बल्कि हिंदुओं में ध्रुवीकरण होता है."-पुष्यमित्र, वरिष्ठ पत्रकार

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