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पहले बीहड़ों में डर के साये के बीच कट रही थी जिंदगी, अब खुली हवा में ले रहे हैं सांस

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Published : Oct 22, 2021, 12:24 PM IST

Updated : Oct 22, 2021, 1:17 PM IST

मनुष्य एक समाज प्राणी हैं. समाज से भटका आदमी ना अपना भला करता है और ना ही दूसरों का. कुछ ऐसा ही हाल मुख्यधारा से भटके दो नक्सलियों का था. लेकिन अब वो फिर से सामान्य जिंदगी जी रहे हैं. जिसमें उन्हें काफी सुकून मिल रहा है.

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पहले बीहड़ों में डर के साये के बीच कट रही थी जिंदगी

रांचीः एक समय ऐसा था जब 25 लाख के इनामी छोटा विकास और 10 लाख के इनामी करगिल यादव के नाम का झारखंड में खौफ हुआ करता था. लाल आतंक के परचम को लहराने के लिए करगिल और छोटा विकास ने कई बार खून बहाया, लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला. जब उन्हें इस बात का अहसास हुआ तब दोनों ने हथियार डाल दिए. साल 2016 में छोटा विकास ने आत्मसमर्पण किया तो 2018 करगिल यादव ने. आत्मसमर्पण करने के बाद दोनों ने ओपन जेल में अपने जीवन के कुछ साल गुजारे. आज दोनों आजाद हैं. दोनों अपने परिवार के साथ जीवन गुजार रहे हैं. छोटा विकास और करगिल का जीवन आत्मसमर्पण करने के बाद कैसा चल रहा है इसका जायजा लिया ईटीवी भारत के संवाददाता प्रशांत कुमार ने.

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साल 2016 में छोटा विकास ने किया था सरेंडर

भाकपा माओवादी के शीर्ष नेताओ में शुमार रहे दिनेश यादव उर्फ छोटा विकास पर 25 लाख रुपए का इनाम था. 12 अप्रैल 2016 को छोटा विकास ने तत्कालीन पलामू डीआईजी साकेत कुमार सिंह के सामने आत्मसमर्पण किया था. छोटा विकास एक दुर्दांत नक्सली कमांडर था. भाकपा माओवादी की स्पेशल एरिया कमेटी के सदस्य के रूप में दस वर्षों तक सक्रिय रहा था. उसके आत्मसमर्पण करने से भाकपा माओवादी संगठन की विचारधारा को बड़ा झटका लगा था. आत्मसमर्पण करने के बाद छोटा विकास को हजारीबाग स्थित ओपन जेल में रखा गया था. आज छोटा विकास अपने पूरे परिवार के साथ शांतिपूर्वक जीवन जी रहा है. उसके ऊपर चल रहे लगभग सभी मामले खत्म हो गए हैं. ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए छोटा विकास ने बताया कि जंगल की दुनिया बेहद खौफनाक थी. भटकाव की वजह से वह जंगल की तरफ मुड़ गया था और वहां उसने कई तरह के कांडों को अंजाम दिया लेकिन अब उसे इसका पछतावा है. छोटा विकास के अनुसार झारखंड सरकार की आत्मसमर्पण नीति बेहद प्रभावशाली है।

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2018 में करगिल यादव ने किया था आत्मसमपर्ण

छोटा विकास की तरह ही करगिल यादव भी एक दुर्दांत नक्सली था. कारगिल यादव ने वर्ष 1999 में भाकपा माओवादी संगठन ज्वाइन किया था. लेकिन बाद में वह पीएलएफआई का सदस्य बन गया. वर्ष 2003 में वह पुलिस के हत्थे चढ़ा था. जेल से छूटने के बाद उसने कुछ साथियों के साथ लोरिक सेना का गठन किया था, लेकिन करगिल को टीपीसी से लगातार चुनौती मिलने लगी, करगिल को जब यह लगा कि वह टीपीसी से अकेले नहीं निपट पाएगा, तो वह खूंटी के रनिया जंगल में पीएलएफआई सुप्रीमो दिनेश गोप के सामने संगठन में शामिल हो गया. बाद में उसे संगठन में जोनल कमांडर बनाया गया.


इस दौरान उसने कई नक्सली वारदातों को अंजाम दिया. करगिल यादव पर दस लाख रुपये का इनाम भी रखा गया था. साल 2018 में करगिल भी आत्मसमर्पण कर मुख्यधारा में लौट आया. जिसके बाद उसे भी हजारीबाग स्थित ओपन जेल में रखा गया. करगिल के अनुसार ओपन जेल का कॉन्सेप्ट बहुत ही बढ़िया है. आज करगिल आजाद है. उस पर कुछ ही मामले बाकी हैं. जिनका ट्रायल चल रहा है. करगिल के अनुसार वास्तविक दुनिया बेहद अच्छी है और वह अपने साथियों से यह अपील भी करता है कि वे लोग भी आत्मसमर्पण नीति का फायदा उठाते हुए मुख्यधारा में वापसी करे.

Last Updated : Oct 22, 2021, 1:17 PM IST
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