ETV Bharat / city

ग्रामीण महिलाएं बदल रहीं महुआ की परिभाषा, शराब छोड़ बना रहीं अचार

author img

By

Published : Aug 22, 2019, 3:15 PM IST

Updated : Aug 22, 2019, 4:30 PM IST

रांची की ग्रामीण महिलाएं अब महुआ से शराब बनाना छोड़कर महुआ का अचार बना रही हैं. इनका मानना है कि इससे शराब न बने इसलिए हमलोग महुआ का अचार बना रहे हैं. इसकी मांग दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है.

डिजाइन इमेज

रांची: झारखंड में महुआ को देशी शराब के पर्यायवाची के रूप में जाना जाता है, लेकिन राजधानी के ग्रामीण इलाकों की महिलाओं के एक समूह ने इस अवधारणा को बदल कर रख दिया है. रांची के लाल खटंगा स्थित बायोडायवर्सिटी पार्क में महिलाओं के एक समूह 'खुशहाली' ने पहली बार महुआ का अचार बनाना शुरू किया है.

देखें स्पेशल स्टोरी

12 महिलाओं के समूह ने चार महीने पहले शुरू किया यह काम
दरअसल 12 महिलाओं के इस समूह ने पिछले 4 महीने में लगभग पौने दो लाख का व्यापार भी अचार से कर लिया है. समूह महुआ का अचार तैयार करने के साथ-साथ उसे बोतल में बंद कर मार्केट तक पहुंचाने में भी काफी सक्रिय है. उनकी मेहनत का फल यह हुआ कि लोग जिस महुआ को घर के आंगन या किनारे बोरों में बंद कर रखा करते थे. अब उसी महुआ के अचार की बोतल घरों के रसोईघर तक पहुंच रही है.

ये भी पढ़ें- मां मनसा की पूजा से दूर होता है सर्पदोष, सदियों से चली आ रही है यह परंपरा

2 साल तक खराब नहीं होता बोतलबंद अचार
महिला समूह की सदस्य रेखा देवी ने बताया कि महुआ का अचार बनाने की प्रक्रिया अन्य अचार जैसी है. पहले महुआ को सुखाया जाता है, फिर उबालकर रखा जाता है. उसके बाद जीरा, अजवाइन, गोल मिर्च जैसे मसालों के साथ मिलाकर उसे एक दिन धूप में रखा जाता है. उसके बाद उन्हें शीशियों में बंद कर उसकी पैकेजिंग की जाती है. उन्होंने बताया कि बोतलबंद अचार 2 साल तक खराब नहीं होता.

महुआ की अवधारणा को बदलने की है कोशिश
वहीं, समूह की दूसरी महिला आरती टोप्पो ने कहा कि अब तक महुआ को लेकर अलग-अलग भ्रांतियां फैली हुई थी. उन्होंने कहा कि महुआ से शराब न बने इसी इरादे से उन्होंने महुआ का अचार बनाने का काम शुरू किया. उन्होंने कहा कि उनकी इस कोशिश को सफलता मिल रही है. एक तरफ महिलाएं आर्थिक रूप से मजबूत हो रही है वहीं दूसरी तरफ उनमें स्वावलंबन की भावना भी आ रही है.

20 महिलाओं ने ली थी ट्रेनिंग
दरअसल लालखटंगा में 20 से अधिक महिलाओं ने इससे जुड़ी ट्रेनिंग ली थी, उसके बाद उन्हें फॉरेस्ट डिपार्टमेंट से कुछ सामान दिया गया ताकि वो अचार का उत्पादन शुरू कर सके. अब लाल खटंगा स्थित बायोडाइवर्सिटी पार्क में इन्हें बकायदा एक कमरा मिला हुआ है जहां वे अपना यह काम करती हैं.

वहीं, समूह की कोषाध्यक्ष आरती टोप्पो ने बताया कि पिछले 4 महीने में संतोषजनक आमदनी हुई है. इसके साथ ही उम्मीद से अधिक पैसा समूह के पास इकट्ठा हुआ है, समूह से जुड़ी महिलाओं का दावा है कि अब तक 3000 से अधिक बोतल बाजार में जा चुके हैं. समूह के पास अचार पैक करने के लिए शीशी कोलकाता से लायी जाती है जबकि उसके ऊपर लगने वाला रैपर रांची में प्रिंट कराया जाता है.

Intro:मैक्सिमम वीडियो और बाइट अटैच है।

बाइट 1 आरती टोप्पो, सदस्य खुशहाली समूह
बाइट 2 रेखा देवी
बाइट 3 संगीता देवी कोषाध्यक्ष


रांची। झारखंड में महुआ को देशी शराब के पर्यायवाची के रूप में जाना जाता है,लेकिन राजधानी के ग्रामीण इलाकों की महिलाओं का एक समूह ने यह अवधारणा बदल दी है।रांची के लाल खटंगा स्थित बायोडायवर्सिटी पार्क में महिलाओं के एक समूह 'खुशहाली' ने पहली बार महुआ का अचार बनाना शुरू किया है।

12 महिलाओं के समूह ने चार महीने पहले शुरू किया यह काम
दरअसल 12 महिलाओं के इस समूह ने पिछले 4 महीने में लगभग पौने दो लाख का व्यापार भी अचार से कर लिया है। समूह अचार तैयार करने के साथ-साथ उसे बोतल में बंद कर मार्केट तक पहुंचाने में भी काफी सक्रिय है। उनकी मेहनत का फल यह हुआ कि लोग जिस महुआ को घर के आंगन या किनारे बोरों में बंद कर रखा करते थे। अब उसी महुआ के अचार की बोतल घरों के रसोईघर तक पहुंच रही है।


Body:महिला समूह की सदस्य रेखा देवी ने बताया कि इसकी प्रक्रिया अन्य अचार बनाने जैसी है। पहले महुआ को सुखाया जाता है। फिर उबालकर रखा जाता है। उसके बाद जीरा, अजवाइन, गोल मिर्च जैसे मसालों के साथ मिलाकर उसे 1 दिन धूप में रखा जाता है। उसके बाद उन्हें शीशियों में बंद कर उसकी पैकेजिंग की जाती है। उन्होंने बताया कि बोतलबंद अचार 2 साल तक खराब नहीं होता।

महुआ के अवधारणा को बदलने की है कोशिश
वही समूह की दूसरी महिला आरती टोप्पो ने कहा कि अब तक महुआ को लेकर अलग-अलग भ्रांतियां फैली हुई थी। उन्होंने कहा कि महुआ से शराब न बने इसी इरादे से उन्होंने यह काम शुरू किया। उन्होंने कहा कि उनकी इस कोशिश को सफलता मिल रही है। एक तरफ महिलाएं आर्थिक रूप से मजबूत हो रही है वहीं दूसरी तरफ उनमें स्वावलंबन की भावना भी आ रही है।


Conclusion:वही समूह की कोषाध्यक्ष आरती टोप्पो ने बताया कि पिछले 4 महीने में संतोषजनक आमदनी हुई है। साथ ही उम्मीद से अधिक पैसा समूह के पास इकट्ठा हुआ है। समूह से जुड़ी महिलाओं का दावा है कि अब तक 3000 से अधिक बोतल बाजार में जा चुके हैं। समूह के पास अचार पैक करने के लिए शीशी कोलकाता से लायी जाती है जबकि उसके ऊपर लगने वाला रैपर रांची में प्रिंट कराया जाता है।

20 महिलाओं ने ली थी ट्रेनिंग
दरअसल लालखटंगा में 20 से अधिक महिलाओं ने इससे जुड़ी ट्रेनिंग ली थी। उसके बाद उन्हें फारेस्ट डिपार्टमेंट से कुछ सामान दिया गया ताकि वो अचार का उत्पादन शुरू कर सके। अब लाल खटंगा स्थित बायोडाइवर्सिटी पार्क में इन्हें बाकायदा एक कमरा मिला हुआ है जहां वे अपना यह काम करती हैं।
Last Updated :Aug 22, 2019, 4:30 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.