रांची: सावन के महीने में आने वाली पूर्णिमा को सावन पूर्णिमा कहा जाता है. इस दिन रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाता है और सभी बहनें अपने भाई को राखी बांधती है. बहनें अपने भाई की लंबी उम्र के लिए दुआं भी करती हैं. इस साल सावन पूर्णिमा आज (22 अगस्त) मनाया जा रहा है. सावन पूर्णिमा शनिवार की शाम से ही शुरू हो गई है. इसकी समाप्ति रविवार की शाम 6:00 बजे तक होगी, इसीलिए पूजा का शुभ मुहूर्त 22 अगस्त के प्रातः से शाम 6:00 बजे तक मानी जा रहा है.
ये भी पढ़ें- Raksha Bandhan 2021: यहां जानिये रक्षा बंधन का शुभ मुहूर्त
सावन मास की पूर्णिमा को लेकर रांची के प्रख्यात पंडित दिव्यानंद महाराज जी बताते हैं कि इस बार का रक्षाबंधन बेहद खास है. हर साल भद्रा के हटने का इंतजार किया जाता था और तभी शुभ मुहूर्त के बाद बहनें अपने भाई के कलाई पर राखी बांधती हैं. लेकिन इस साल भद्रा के प्रवेश की कोई समस्या नहीं है. बहन सुबह से ही अपने भाई को राखी बांध सकती है. वहीं, सावन पूर्णिमा का व्रत रखने वाले भक्त भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा अर्चना कर अपनी मनोकामना पूर्ण कर सकते हैं.
पंडित जितेंद्र महाराज बताते हैं कि सावन पूर्णिमा के दिन भक्त सुबह जल्दी उठकर स्नान कर लें और नहाने के पानी में गंगाजल डालकर स्नान करें. इसके साथ ही नहाते समय सभी पावन नदियों का ध्यान करें. नहाने के बाद घर के मंदिर में दीप प्रज्ज्वलित करें. साथ ही संभव हो सके तो घर की महिला या पुरुष व्रत भी रख सकते हैं. सावन पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की तुलसी के पत्ते से पूजा अवश्य करें और उनकी आरती करें.
क्यों मनाते हैं रक्षाबंधन
रक्षाबंधन मनाने को लेकर अध्यात्म में बताया गया है कि राजा बली के यज्ञ से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु धरती पर वामन अवतार लेकर आए थे. भगवान विष्णु ने राजा बलि से तीन पग भूमि की मांग की. जिसे राजा बलि ने सह्रदय स्वीकार कर लिया. जैसे ही भगवान विष्णु ने तीन पग भूमि नापने के लिए अपने कदम उठाए कि उन्होंने एक पग में ही पूरी धरती नाप ली और दूसरे पग में पूरा अंबर और तीसरे पग के लिए राजा बलि ने अपना मस्तक दे दिया. जिससे भगवान विष्णु खुश हो गए और उन्होंने राजा बलि को वरदान मांगने के लिए कहा. जिस पर राजा बलि ने भगवान विष्णु को अपने साथ पाताल लोक में रहने की गुजारिश की. इस पर भगवान विष्णु मना नहीं कर सके और वह राजा बलि की तपस्या से खुश होकर उनके साथ चल दिए. लेकिन माता लक्ष्मी भगवान विष्णु के लिए व्याकुल होने लगी फिर माता लक्ष्मी ने राजा बलि को रक्षा सूत्र बांधकर अपना भाई बना लिया और उपहार के बदले अपने स्वामी भगवान विष्णु को पाताल लोक से अपने साथ लेकर चली गई, तभी से रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाता है.