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बाबूलाल मरांडी 'एसेट' साबित होंगे या 'लायबिलिटी', उलझन में बीजेपी !

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Published : Aug 27, 2020, 9:05 PM IST

Updated : Aug 27, 2020, 9:31 PM IST

बाबूलाल मरांडी की बीजेपी में घर वापसी के बाद भारतीय जनता पार्टी अब दोराहे पर आकर खड़ी हो गई है. फरवरी में मरांडी को बीजेपी का विधायक दल नेता चुना गया. लेकिन अब हालत यह है कि झारखंड विधानसभा सचिवालय ने उनकी घर वापसी पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं.

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बाबूलाल मरांडी

रांची: लंबी जद्दोजहद के बाद झारखंड विकास मोर्चा के सुप्रीमो रहे बाबूलाल मरांडी की बीजेपी में घर वापसी के बाद भारतीय जनता पार्टी अब दोराहे पर आकर खड़ी हो गई है. मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य में मरांडी पार्टी के लिए 'एसेट साबित होंगे या फिर 'लायबिलिटी' बनकर रह जाएंगे इसको लेकर अंदर खाने चर्चाएं तेज हो गई हैं. बीजेपी ने मरांडी की घर वापसी के बाद की 'पटकथा' पहले ही लिख रखी थी. लेकिन उसे 'क्लाइमेक्स' पर झारखंड विधानसभा के स्पीकर रवींद्र नाथ महतो ने पहुंचा दिया है. दरअसल, बीजेपी के कैलकुलेशन के अनुसार झाविमो में बीजेपी के विलय के बाद मरांडी की स्वीकार्यता नेता प्रतिपक्ष के रूप में हो जानी थी, लेकिन अभी तक ऐसा नहीं हो पाया.

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बने बीजेपी विधायक दल के नेता, लटका नेता प्रतिपक्ष का मामला
फरवरी में मरांडी को बीजेपी का विधायक दल नेता चुना गया. लेकिन अब हालत यह है कि झारखंड विधानसभा सचिवालय ने उनकी घर वापसी पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं. बीजेपी ने विधानसभा सचिवालय में लिखकर दिया कि मरांडी उनके 'अपने' हैं. लेकिन विधानसभा सचिवालय अभी भी इस बात को स्वीकार नहीं कर रहा है. विधानसभा अध्यक्ष स्पीकर रवींद्र नाथ महतो के अनुसार मरांडी का मामला भी दल बदल से जुड़ा है.
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बीजेपी में शामिल होने के दौरान बाबूलाल मरांडी

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मरांडी के बीजेपी में, अन्य दो का कांग्रेस में जाने से उलझा पेंच
पूरे राजनीतिक घटनाक्रम के बैकग्राउंड में जाएं तो तस्वीर और साफ उभर कर आती है. मरांडी ने बीजेपी में घर वापसी से पहले अपने पुराने दल के दो विधायकों को भी बाहर का रास्ता दिखा दिया. प्रदीप यादव और बंधु तिर्की झाविमो की टिकट पर 2019 का विधानसभा चुनाव मरांडी के साथ जीते. मरांडी बीजेपी के हो गए, जबकि प्रदीप यादव, बंधु तिर्की कांग्रेस में चले गए. बीजेपी ने मरांडी को नेता प्रतिपक्ष के रूप में प्रोजेक्ट किया. विधानसभा ने तीनों झाविमो के विधायकों को दल बदल के मामले की परिधि में ला दिया. मजेदार बात यह है कि पिछले (चतुर्थ) विधानसभा में मरांडी अपने छह विधायकों के ऊपर दल बदल के मामले को लेकर झारखंड विधानसभा सचिवालय गए थे, अब उनके ऊपर ही इस तरह का मामला बन रहा है.

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अभिवादन स्वीकार करते बाबूलाल



ऐसा है दल बदल के मामलों की सुनवाई का पुराना रिकॉर्ड
पुराने रिकॉर्ड को देखें तो 2014 के विधानसभा चुनाव के बाद झाविमो के जिन छह विधायकों ने कथित तौर पर बीजेपी में विलय किया उनका मामला लगभग 5 साल तक स्पीकर ट्रिब्यूनल में चला. अभी मरांडी और उनके साथ जीतने वाले दोनों विधायकों का मामला भी स्पीकर ट्रिब्यूनल में ही चलेगा जब तक स्पीकर यह साफ नहीं कर देते कि मरांडी कि सदन के अंदर क्या स्थिति है. तब तक नेता प्रतिपक्ष को लेकर भी मरांडी के नाम पर संशय बना रहेगा. ऐसे में सदन के 'कस्टोडियन' होने के नाते स्पीकर का फैसला ही मान्य होगा.
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झारखंड विधानसभा

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बीजेपी के सामने उहापोह की स्थिति
पूरे तामझाम के साथ मरांडी को बीजेपी में घर वापसी कराने के बाद अब पार्टी निर्णय नहीं कर पा रही है कि क्या करे. पार्टी को पूरी उम्मीद थी कि मरांडी के बीजेपी आने के बाद एक तरफ जहां उन्हें बतौर नेता प्रतिपक्ष का दरबार दर्जा दिलाकर उन्हें 'ट्राइबल फेस' के रूप में प्रोजेक्ट करेगी. वहीं, दूसरी तरफ राज्य में अनुसूचित जनजाति इलाकों में मरांडी का सहारा लेकर अपनी पकड़ मजबूत करेगी. लेकिन 'राजनीतिक चौसर' में बीजेपी को अपना ही दांव उल्टा पड़ गया. बीजेपी के अंदरखाने में चर्चा पर विश्वास करें तो अब पार्टी मरांडी को दुमका विधानसभा में उतारने पर भी विचार कर रही है. हालांकि, यह चर्चा फिलहाल प्राथमिक स्तर पर है. बीजेपी के अंदरूनी सूत्रों का यकीन करें तो दुमका विधानसभा सीट पर मरांडी को उम्मीदवार बनाकर उतारा जाए और उनकी जीत सुनिश्चित करा कर वापस विधानसभा लाया जाए. पार्टी सूत्रों की माने तो इससे बीजेपी विधायक दल के नेता और नेता प्रतिपक्ष झारखंड विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनने में मरांडी को ज्यादा कानूनी अड़चन नहीं झेलनी होगी. संशय इस बात का है कि चुनाव के नतीजे अगर बीजेपी के फेवर में नहीं आए तब पार्टी क्या करेगी. दूसरी तरफ मरांडी के अलावा सदन में नेता प्रतिपक्ष किसे बनाया जाए उस पर अभी किसी तरह का निर्णय लेने के मूड में नहीं है. सूत्रों की माने तो इन सभी मुद्दों पर पार्टी के राज्य स्तर के नेता सेंट्रल लीडरशिप से डिस्कशन करेंगे उसके बाद ही किसी तरह का फैसला लिया जाएगा.

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बीजेपी कार्यालय, रांची


कुशल संगठनकर्ता रहे हैं मरांडी
मरांडी के पॉलिटिकल कैरियर को देखें तो बीजेपी से कथित तौर पर मोहभंग होने के बाद उन्होंने झारखंड विकास मोर्चा का 2006 में गठन किया. 2006 से लेकर अब तक हुए चुनाव का रिकॉर्ड देखें तो मरांडी की पार्टी के विधायक हमेशा जीतकर 2014 में झारखंड विकास मोर्चा के टिकट से आठ विधायक जीत का झारखंड विधानसभा पहुंचे. हालांकि, उनमें से छह ने बीजेपी का दामन थाम लिया. 2019 में मरांडी समेत तीन विधायक झारखंड विकास मोर्चा से जीते. इससे पहले 2009 में भी झारखंड विकास मोर्चा से 11 विधायक जीतकर झारखंड विधानसभा पहुंचे, लेकिन उनमें से कईयों ने बीजेपी का दामन थाम लिया था.

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क्या कहते हैं राजनीतिक दल
बीजेपी ने साफ तौर पर कहा कि बाबूलाल मरांडी पार्टी लिए हमेशा से एक 'एसेट' ही बने रहेंगे. बीजेपी के प्रदेश प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव ने कहा कि उनके आने से न केवल पार्टी मजबूत हुई है बल्कि पिछले 8 महीने में राज्य में हेमंत सोरेन सरकार की नाकामियों को लेकर उन्होंने हमेशा आवाज उठाई है. शाहदेव ने कहा कि मरांडी के आने से बीजेपी में नई ऊर्जा का संचार हुआ है.

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'मरांडी एक तरह से लायबिलिटी बनकर रह गए हैं'

इधर, झारखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता आलोक दुबे ने कहा कि बाबूलाल मरांडी ना घर के रहे और ना घाट के. उन्होंने कहा कि मरांडी लगातार कहते रहे कि किसी भी कीमत में बीजेपी में वापस नहीं जाएंगे, भले ही उन्हें कुतुबमीनार से क्यों नहीं छलांग लगानी पड़े. दूसरी बीजेपी में जाने के बाद उनकी स्थिति दयनीय हो गई है. नेता प्रतिपक्ष बनाने को लेकर बीजेपी उनके साथ शाह और मात का खेल खेल रही है. मरांडी एक तरह से लायबिलिटी बनकर रह गए हैं.

Last Updated : Aug 27, 2020, 9:31 PM IST
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