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झारखंड में फ्लॉप हो गई मुख्यमंत्री श्रमिक योजना, एक साल में केवल 26 हजार लोगों का ही बना जॉब कार्ड

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Published : Aug 17, 2021, 9:52 PM IST

झारखंड में मनरेगा के तर्ज पर शहरी इलाकों में रहने वाले गरीब बेरोजगार मजदूरों के लिए गारंटी रोजगार देने की योजना की पिछले साल शुरुआत हुई थी. इस योजना का नाम 'मुख्यमंत्री श्रमिक योजना' (Mukhyamantri Shramik Yojana) दिया गया था, लेकिन यह योजना राज्य में पूरी तरह से फ्लॉप हो गई. आंकड़े बताते हैं की 14 अगस्त 2020 को शुरू इस योजना के एक साल पूरा हो जाने के बाद भी लक्ष्य की प्राप्ति नहीं हो सकी.

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रोजगार का इंतजार

रांची: मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने मनरेगा के तर्ज पर शहरी इलाकों में रहने वाले गरीब बेरोजगार मजदूरों के लिए गारंटी रोजगार देने की योजना की पिछले साल शुरुआत की थी. इस योजना का नाम 'मुख्यमंत्री श्रमिक योजना' (Mukhyamantri Shramik Yojana) दिया गया था. जिसका लक्ष्य मनरेगा के तर्ज पर शहरी बेरोजगारों को कम से कम 100 दिन रोजगार उपलब्ध कराना था.

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शहरी रोजगार मंजूरी फॉर कामगार को झारखंड सरकार की महती योजना के रूप में प्रचारित किया गया था, जिसमें वैसे ग्रामीण मजदूरों को भी लाभ पहुंचाने की योजना थी, जो गांव से शहर में मजदूरी करने आते हैं और उनका मनरेगा जॉब कार्ड नहीं बना है. उनके लिए भी इस योजना में प्रावधान किए गए थे.

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14 अगस्त 2020 को मुख्यमंत्री श्रमिक योजना की शुरुआत


आंकड़े बताते हैं की 14 अगस्त 2020 को शुरू इस योजना के एक साल पूरा हो जाने के बाद भी लक्ष्य की प्राप्ति नहीं हो सकी. राजधानी रांची में ही हर दिन मजदूरी की तलाश में सैकड़ों की संख्या में बेरोजगार चौक चौराहों पर जुटते हैं और उनमें से कई ऐसे होते हैं, जो बिना काम पाए वापस घर लौट जाते हैं. इन मजदूरों के लिए ना तो इस योजना में इनरोल किया गया है और ना ही कभी इन्हें कोई रोजगार मिला है. नाराज मजदूरों का कहना है कि सरकारी योजनाएं हमारे लिए नहीं बनती है.

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आंकड़ों में मुख्यमंत्री श्रमिक योजना

  • एक साल में आवेदन- 33462
  • एक साल में जॉब कार्ड निर्गत हुए- 26243
  • एक साल में कुल मानव दिवस सृजित- 232246

एक साल में योजना का प्रदर्शन फीका

नगरीय प्रशासन निदेशालय के द्वारा लॉन्च की गई इस योजना के एक साल में प्रदर्शन बेहद फीका रहा है. शहरी निकायों में अभी भी बेरोजगारों को काम नहीं मिल रहा है. राज्य के श्रम मंत्री इस योजना के हिट नहीं होने के पीछे की वजह कम मजदूरी बताते हैं. राज्य के श्रम एवं कौशल विकास मंत्री सत्यानंद भोक्ता ने कहा कि इस योजना में सिर्फ 224 रुपया प्रतिदिन की मजदूरी मिलती है. जबकि बाहर में मजदूरी 400 से 500 रुपया प्रतिदिन है. ऐसे में कोई क्यों इस योजना से जुड़ेगा.

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जब मजदूरी कम तो बढ़ाती क्यों नहीं सरकार

राज्य के कौशल विकास मंत्री सत्यानंद भोक्ता से जब ईटीवी भारत के संवाददाता ने पूछा कि मजदूरी क्यों सरकार नहीं बढ़ाती है? इस सवाल के जवाब पर उन्होंने कहा कि मनरेगा में मजदूरी बढ़ाना केंद्र सरकार का काम है. संवाददाता ने जब उनसे पूछा कि राज्य सरकार की योजना के लिए केंद्र सरकार जिम्मेवार कैसे? जिसपर उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया.

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