रांची: राज्य में लोगों को सस्ता और सुलभ आवास मिले. इसको लेकर झारखंड आवास बोर्ड ने अपार्टमेंट बनाया, जिसमें 86 फ्लैट हैं. लेकिन फ्लैटों के खरीदार नहीं है. स्थिति यह है कि कई वर्ष पहले बना फ्लैट खरीदार के अभाव में बेकार पड़ा हुआ है और दूसरी ओर आवास बोर्ड नया फ्लैट बनाने की तैयारी में जुटी है.
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आवास बोर्ड के द्वारा नए-पुराने फ्लैट की बिक्री को लेकर कई बार लॉटरी निकाली गई, लेकिन मार्केट वैल्यू से ज्यादा दाम रहने के कारण खरीदार नहीं के बराबर मिले. आंकड़ों के मुताबिक आवास बोर्ड के पास रांची, जमशेदपुर, धनबाद, हजारीबाग आदि शहरों में करीब तीन सौ फ्लैट और बैक्वेट हॉल कई वर्षों से बनकर तैयार है. साल 2019 में आवास बोर्ड ने रांची और जमशेदपुर में 86 नये फ्लैट के आवंटन के लिए आवेदन मांगे थे. हालांकि, इसमें सिर्फ 51 खरीदार ने ही आवेदन दिया. इसके बाद आवास बोर्ड ने समय सीमा बढ़ाई. इसके बावजूद खरीदार नहीं आए.
हरमू निवासी सर्वजीत चौधरी ने बताया कि आवास बोर्ड ने फ्लैट की कीमत अधिक तय किया है. इसलिये खरीदार कम है और फ्लैट वर्षों से खाली पड़े हैं. उन्होंने कहा कि रांची और जमशेदपुर के प्राइम लोकेशन में फ्लैट होने के बाबजूद खरीदार 75 लाख रुपया देना मुनासिब नहीं समझते हैं. आवास बोर्ड के फ्लैट निर्माण में बरती गई अनियमितता और मेंटेनेंस के अभाव के कारण भी फ्लैट नहीं बिक रहे हैं. वार्ड पार्षद अरुण कुमार झा ने बताया कि आवास बोर्ड का फ्लैट एक नंबर जमीन पर दो नंबर निर्माण कार्य हुआ है. ड्रैनेज सिस्टम का भी अभाव है. उन्होंने कहा कि बगैर कोई प्लानिंग के केवल कमाई के लिए बनाए जाने के कारण आवास बोर्ड के फ्लैट का ये हश्र है. यही वजह है कि लोग निजी बिल्डर के फ्लैट खरीद रहे हैं. उन्होंने कहा कि बिना प्लानिंग के फ्लैट के निर्माण कराने वाले अधिकारियों को चिन्हित कर सरकार कारवाई करें.
आवास बोर्ड के बेकार पड़े फ्लैट पर अवैध कब्जा भी हो रहा है. लेकिन आवास बोर्ड इसको लेकर गंभीर नहीं है. खास बात यह कि इस संबंध में अधिकारी जुबान खोलना भी उचित नहीं समझते हैं. ऐसे में बड़ा सवाल यह कि सरकारी राशि की बर्बादी करनेवाले जिम्मेदार अधिकारी पर अब तक क्यों कारवाई नहीं हुई है.