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स्थापना दिवस विशेष: आहूति और बलिदानों के बाद मिला है झारखंड, जानिए किन नेताओं की रही है अहम भूमिका

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Published : Nov 15, 2019, 10:01 AM IST

Updated : Nov 15, 2019, 12:46 PM IST

झारखंड राज्य की परिकल्पना सबसे पहले जयपाल सिंह मुंडा ने की थी. धीरे-धीरे उनके सपने ने एक आंदोलन का रूप लिया फिर कारवां आगे बढ़ा. जिसमें दिशोम गुरु शिबू सोरेन, निर्मल महतो, एके राय जैसे आंदोलनकारी नेताओं ने बढ़-चढ़कर झारखंड को अलग करने में अहम भूमिका निभाई.

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रांची: इतिहासकारों का कहना है झारखंड गठन की परिकल्पना सबसे पहले जयपाल सिंह मुंडा ने की थी. धीरे-धीरे उनके सपने ने एक आंदोलन का रूप लिया फिर कारवां आगे बढ़ा. जिसमें दिशोम गुरु शिबू सोरेन, निर्मल महतो, एके राय जैसे आंदोलनकारी नेताओं ने बढ़-चढ़कर झारखंड को अलग करने में अहम भूमिका निभाई.

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2000 में बना अलग राज्य
ऐसा माना जाता है झारखंड आंदोलन देश के इतिहास का सबसे बड़ा आंदोलन था. राज्य के गठन को लेकर आंदोलन चलता रहा. कई आंदोलनकारी नेताओं ने आहुति दी तो कईयों ने अहम भूमिका निभाई. तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेई ने 15 नवंबर 2000 को इस राज्य के गठन को लेकर अंतिम मुहर लगाई. अलग राज्य के आंदोलन में हजारों आंदोलनकारियों ने अपना बलिदान दिया था. लेकिन सबसे अग्रिम भूमिका निभाने वाले में दिशोम गुरु शिबू सोरेन, निर्मल महतो, एके राय जैसे नामचीन नाम सबके जेहन में हैं.

2 हजार से अधिक आंदोलनकारियों ने लिया हिस्सा
हालांकि पूरे राज्य में ऐसे आंदोलनकारियों की संख्या 2000 से अधिक है. आंदोलन का कारवां लगातार बढ़ता गया और कई संगठनों का गठन भी होता रहा. लोग जुड़ते गए और अलग राज्य के सपने को लेकर आंदोलनकारी अपनी आहुति देते रहें. सबसे पहले 1938 में झारखंड पार्टी का गठन 28 दिसंबर को अलग राज्य की परिकल्पना को लेकर हुई थी. फिर 1951 में झारखंड पार्टी की विधानसभा में दस्तक हुई. 1967 में विनोद बिहारी महतो ने शिवाजी समाज नामक संगठन शुरू किया और विनोद बिहारी महतो ने भी बिहार से अलग एक राज्य का सपना देखा. 1969 में शिबू सोरेन द्वारा सोनत संथाल समाज की स्थापना की गई.1972 में विनोद बिहारी महतो ने झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन किया. वहीं 1986 में निर्मल महतो ने ऑल इंडिया झारखंड स्टूडेंट यूनियन का गठन किया गया.

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ईसाई मिशनरी भी अलग झारखंड के पक्ष में थी
इतिहासकारों का यह भी कहना है कि 1845 में पहली बार यहां ईसाई मिशनरियों के आगमन से क्षेत्र में एक बड़ा सांस्कृतिक परिवर्तन और उथल-पुथल शुरू हुआ था. आदिवासी समुदाय का एक बड़ा और महत्वपूर्ण हिस्सा इसकी ओर आकृष्ट हुआ. इस वजह से ईसाई मिशनरियां भी चाहते थे कि झारखंड एक अलग राज्य बने. ताकि वह इस राज्य में इसाई धर्म को सही तरीके से फैला सके. क्षेत्र में ईसाई स्कूल और अस्पताल खूब खोलें गए. लेकिन ईसाई धर्म में वृहद धर्मांतरण के बावजूद आदिवासियों ने अपनी पारंपरिक धार्मिक आस्था में भी कायम रहे और यह द्वंद आज भी कायम है.

सच हुई जयपाल सिंह मुंडा की परिकल्पना
इतिहासकारों का तो यह भी मानना है कि झारखंड राज्य का इतिहास लगभग 100 वर्ष से भी ज्यादा पुराना है. जयपाल सिंह मुंडा ने वर्ष 1939 में वर्तमान बिहार राज्य के कुछ दक्षिणी जिलों को मिलाकर एक नया राज्य बनाने का विचार रखा था. हालांकि जयपाल सिंह मुंडा का यह सपना 2 अक्टूबर 2000 को साकार हुआ. जब संसद में झारखंड को अलग राज्य का दर्जा देने का बिल पास हो गया. फिर उसी साल 15 नवंबर को झारखंड भारत का 28वां राज्य बना. इतिहासकारों का यह भी मानना है कि इस क्षेत्र को मगध साम्राज्य से पहले भी एक इकाई के रूप में चिन्हित किया जाता था. क्योंकि इस क्षेत्र की भू-संरचना सांस्कृतिक पहचान अलग ही थी.

Intro:स्पेशल



रांची।

इतिहासकारों का कहना है झारखंड गठन की परिकल्पना सबसे पहले जयपाल सिंह मुंडा ने देखी थी और धीरे-धीरे उनका सपना एक आंदोलन का रूप लिया फिर कारवां आगे बढ़ी .जिसमें ढिशुम गुरु शिबू सोरेन निर्मल महतो एके राय जैसे आंदोलनकारी नेताओं ने बढ़-चढ़कर इस झारखंड को अलग करने में अहम भूमिका निभाई .ऐसा माना जाता है झारखंड आंदोलन देश के इतिहास का सबसे बड़ा आंदोलन था .राज्य के गठन को लेकर आंदोलन चलता रहा कई आंदोलनकारी नेताओं ने आहुति दी तो कईयों ने अहम भूमिका निभाई. तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेई ने 15 नवंबर 2000 को इस राज्य के गठन को लेकर अंतिम मुहर लगाई.


Body:झारखंड अलग राज्य के आंदोलन में हजारों आंदोलनकारियों ने अपना बलिदान दिया था. लेकिन सबसे अग्रिम भूमिका निभाने वाले में शहीद निर्मल महतो ,दिसुम गुरु शिबू सोरेन ,एके राय जैसे नामचीन नाम सबके जेहन में है. हालांकि पूरे राज्य में ऐसे आंदोलनकारियों की संख्या 2000 से अधिक है . आंदोलन का कारवां लगातार बढ़ता गया और कई संगठनों का गठन भी होता रहा .लोग जुड़ते गए और अलग राज्य कि सपना को लेकर आंदोलनकारी अपना आहुति देते रहें .सबसे पहले 1938 में झारखंड पार्टी का गठन 28 दिसंबर को अलग राज्य की परिकल्पना को लेकर हुई थी .फिर 1951 में झारखंड पार्टी का विधानसभा में दस्तक हुई. 1967 में विनोद बिहारी महतो ने शिवाजी समाज नामक संगठन शुरू किया और विनोद बिहारी महतो ने भी बिहार से अलग एक राज्य का सपना देखा. 1969 में शिबू सोरेन द्वारा सोनत संथाल समाज की स्थापना की गई और इस संगठन का भी उद्देश्य अलग झारखंड का ही था. 1972 में विनोद बिहारी महतो द्वारा झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन किया गया. वहीं 1986 में निर्मल महतो द्वारा ऑल इंडिया झारखंड स्टूडेंट यूनियन का गठन किया गया.

ईसाई मिशनरी भी चाहती थी झारखंड अलग राज्य बने:

इतिहासकारों का यह भी कहना है कि 1845 में पहली बार यहां ईसाई मिशनरियों के आगमन से क्षेत्र में एक बड़ा सांस्कृतिक परिवर्तन और उथल-पुथल शुरू हुआ था. आदिवासी समुदाय का एक बड़ा और महत्वपूर्ण हिस्सा ईसायत की ओर आकृष्ट हुआ. इस वजह से ईसाई मिशनरियां भी चाहते थे कि झारखंड एक अलग राज्य बने. ताकि वह इस राज्य में इसाई धर्म को सही तरीके से फैला सके. क्षेत्र में ईसाई स्कूल और अस्पताल खूब खोलें गए. लेकिन ईसाई धर्म में वृहद धर्मांतरण के बावजूद आदिवासियों ने अपनी पारंपरिक धार्मिक आस्था में भी कायम रहे और यह द्वंद आज भी कायम है.


Conclusion:इतिहासकारों का तो यह भी मानना है कि झारखंड राज्य का इतिहास लगभग 100 वर्ष से भी ज्यादा पुराना है .जयपाल सिंह मुंडा ने वर्ष 1939 में वर्तमान बिहार राज्य के कुछ दक्षिणी जिलों को मिलाकर एक नया राज्य बनाने का विचार रखा था. हालांकि जयपाल सिंह मुंडा का यह सपना 2 अक्टूबर 2000 को साकार हुआ. जब संसद में झारखंड को अलग राज्य का दर्जा देने का बिल पास हो गया .और फिर उसी साल 15 नवंबर को झारखंड भारत का 28 वां राज्य बना .इतिहासकारों का यह भी मानना है कि इस क्षेत्र को मगध साम्राज्य से पहले भी एक इकाई के रूप में चिन्हित किया जाता था.क्योंकि इस क्षेत्र की भू संरचना सांस्कृतिक पहचान अलग ही थी.


बाइट- राजकुमार, इतिहासकार ,झारखंड.
Last Updated : Nov 15, 2019, 12:46 PM IST
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