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GEL चर्च की अनसुनी कहानी, जानिए 1857 के सैनिक विद्रोह में क्या थी इसकी भूमिका

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Published : Aug 13, 2019, 7:09 PM IST

Updated : Aug 13, 2019, 7:19 PM IST

1857 में हुए सैनिक विद्रोह का इतिहास रांची के जीईएल चर्च से जुड़ा हुआ है. इस चर्च को ऐतिहासिक धरोहर के रूप में चिन्हित किया गया है. यह गिरजाघर झारखंड का पहला चर्च है, जो 1855 में बनकर तैयार हुआ था.

GEL चर्च की अनसुनी कहानी

रांची: झारखंड यानी छोटानागपुर के साथ कई इतिहास जुड़े हुए हैं. कहा जाता है कि बीता हुआ कल कभी वापस नहीं आता है, लेकिन कुछ ऐसे ऐतिहासिक धरोहर होते हैं जो अपने आप में कई इतिहास को समेटे हुए हैं. रांची में आज भी ऐसे कई ऐतिहासिक धरोहर हैं जिसको देखने के बाद हमारी गौरवशाली इतिहास की जानकारी मिलती है.

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चर्च धव्स्त करने को बरसाए थे 3 गोले
राजधानी रांची के मेन रोड स्थित जीईएल चर्च से 1857 के सैनिक विद्रोह का इतिहास जुड़ा हुआ है. क्रांतिकारियों ने इस चर्च को ध्वस्त करने के लिए तोप के गोले बरसाए थे. जिसका निशान आज भी चर्च के ऊपरी दीवार पर तोप का गोला फंसा हुआ नजर आता है. यह 1857 के सैनिक विद्रोह का जीवंत उदाहरण पेश करता है. जिस समय देश के आजादी के लिए देश के तमाम हिस्सों के सैनिक एकजुट होकर अंग्रेजों के खिलाफ सैनिक विद्रोह का बिगुल फूंक दिए थे. जिसका इतिहास आज भी इस जीईएल चर्च में देखने को मिलता है.

चर्च बनाने का श्रेय फादर गोस्सनर को मिला
जीईएल चर्च का इतिहास काफी पुराना है यह झारखंड का पहला गिरजाघर है. स्थापत्य की दृष्टि से यह श्रेष्ठ गिरजाघरों में शुमार है. गौथिक शैली में बने इस गिरजाघर की भव्य इमारत देखने लायक है. इस चर्च के निर्माण की नींव 1850 में डाली गई थी और इस विशाल गिरजाघर की स्थापना का सारा श्रेय फादर गोस्सनर को जाता है, क्योंकि फादर के द्वारा 13 हाजर रुपए इस चर्च के निर्माण के लिए दिए गए थे.

गोस्सनर इबैंजलिकाल लिथर्न चर्च है पूरी नाम
छोटानागपुर के महाराजा ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव के द्वारा भूमि दान में दी गई थी. जिसके बाद 1855 में चर्च बन कर तैयार हुआ था. हालांकि इसकी शुरुआत 1845 में जर्मन से आए 4 मिशनरियों के समय हुआ था. जब चारों मिशनरी दो नवंबर 1845 को गोस्सनर कंपाउंड में कैंप करने के बाद अपना मिशनरी धर्म प्रचार का कार्य शुरू किया था. इस चर्च को गोस्सनर इबैंजलिकाल लिथर्न चर्च यानी जीईएल चर्च के नाम से भी जाना जाता है.

चर्च के पादरियों ने भाग कर बचाई थी जान
ब्रिटिश शासन काल में स्थापित में जीईएल चर्च ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं. पूरे देश में जब सैनिक विद्रोह का बिगुल फूंका गया था. उस समय छोटा नागपुर में भी सैनिकों का विद्रोह देखने को मिला था. 1857 के प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन के समय इस चर्च पर भी हमला हुए थे इस चर्च को ध्वस्त करने के लिए क्रांतिकारियों के द्वारा इस चर्च पर टॉप से 3 गोले दागे गए थे, लेकिन इस चर्च को कोई विशेष क्षति नहीं हुई. क्रांतिकारियों के हमले के बाद चर्च के पादरियों ने रांची से भागकर कैरो नदी के तीन टापू और जंगल में शरण ली थी. क्रांतिकारियों के द्वारा चर्च के अलावे स्कूल भवन और मिशनरी बंगला और गिरजाघरों को भी क्षतिग्रस्त किया था.

छोटानागपुर के ऐतिहासिक घटनाओं का यह चर्च गवाह बन कर आज भी खड़ा है और लोगों के आस्था को मजबूत बना रहा है. यही वजह है कि इस चर्च को राष्ट्रीय धरोहर के रूप में चिन्हित किया गया है, क्योंकि ब्रिटिश काल के समय निर्माण इस चर्च ने कई उतार चढ़ाव देखने के बावजूद भी आज ऐतिहासिक रूप में मौजूद है.

Intro:रांची


बाइट-1---प्रदीप कुजूर सचिव GEL चर्च
बाइट-2---प्रदीप कुजूर सचिव GEL चर्च
पीटीसी---ओपनिंग एंड एंडिंग पीटीसी..


झारखंड यानी छोटानागपुर के साथ कई इतिहास जुड़े हुए हैं। कहा जाता है कि बीता हुआ कल कभी वापस नहीं आता है लेकिन कुछ ऐसे ऐतिहासिक धरोहरों होते है जो अपने आप में कई इतिहास को समेटे हुए हैं। रांची में आज भी ऐसे कई ऐतिहासिक धरोहर है जिसको देखने के बाद हमारी गौरवशाली इतिहास की जानकारी मिलते हैं। हम बात कर रहे हैं राजधानी रांची के मेन रोड में स्थित जीईएल चर्च की। जिसके के साथ 1857 का सैनिक विद्रोह का इतिहास जुड़ा हुआ है। क्रांतिकारियों ने इस चर्च को ध्वस्त करने के लिए तोप के गोले बरसाए थे। जिसका निशान आज भी चर्च के ऊपरी दीवार पर तोप का गोला फंसा हुआ नजर आता है। यह 1857 के सैनिक विद्रोह का जीवंत उदाहरण पेश करता है जिस समय देश के आजादी के लिए देश के तमाम हिस्सों के सैनिक एकजुट होकर अंग्रेजो के खिलाफ सैनिक विद्रोह का बिगुल फूंक दिए थे। जिसका इतिहास आज भी इस जीईएल चर्च में देखने को मिलता है।


Body:जीईएल चर्च चर्च का इतिहास काफी पुराना है झारखंड का पहला गिरजाघर है स्थापत्य की दृष्टि से यह श्रेष्ठ गिरजाघरों में शुमार है गैथिकशैली मैं बने इस गिरजाघर की भव्य इमारत देखने लायक है इस चर्च के निर्माण की नींव 1850 में डाली गई थी और इस विशाल गिरजाघर की स्थापना का सारा श्रेय फादर गोस्सनर को जाता है क्योंकि फादर के द्वारा ₹13 हाजर रुपय इस चर्च के निर्माण के लिए दिए गए थे छोटानागपुर के महाराजा ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव के द्वारा भूमि दान में दी गई थी थे और 1855 में चर्च बन कर तैयार हुआ था। हालांकि इसका शुरुआत 1845 में जर्मन से आए 4 मिशनरियों के समय हो गया था जब चारों मिशनरी दो नवंबर 1845 को गोस्सनर कंपाउंड में कैंप करने के बाद अपना मिशनरी धर्म प्रचार का कार्य शुरू किया था इस चर्च को गोस्सनर इबैंजलिकाल लिथर्न चर्च यानी जीईएल चर्च के नाम से भी जाना जाता है


Conclusion:ब्रिटिश शासन काल में स्थापित यह जीईएल चर्च ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं पूरे देश में जब सैनिक विद्रोह का बिगुल फूंका गया था तब उस समय छोटा नागपुर में भी सैनिकों का विद्रोह देखने को मिला था 1857 के प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन के समय इस चर्च पर भी हमला हुए थे इस चर्च को ध्वस्त करने के लिए क्रांतिकारियों के द्वारा इस चर्च पर टॉप से 3 गोले दागे गए थे लेकिन इस चर्च को कोई विशेष क्षति नहीं हुई हमले के निशान आज भी चर्च भवन के पश्चिम भाग में मौजूद है एक तोप का गोला फंसा हुआ है क्रांतिकारियों के हमले के बाद चर्च के पुजारियों ने रांची से भागकर करो नदी के तीन टापू और जंगल में शरण ली थी। क्रांतिकारियों के द्वारा चर्च के अलावे स्कूल भवन और मिशनरी बंगला और गिरजाघरों को भी क्षतिग्रस्त किया था।


छोटानागपुर के ऐतिहासिक घटनाओं का यह चर्च गवाह बन कर आज भी खड़ा है और लोगों के आस्था को मजबूत बना रहा है यही कारण है कि इस चर्च को राष्ट्रीय धरोहर के रूप में चिन्हित किया गया है क्योंकि ब्रिटिश काल के समय निर्माण इस चर्च ने कई उतार चढ़ाव देखने के बावजूद भी आज ऐतिहासिक रूप मैं मौजूद है
Last Updated : Aug 13, 2019, 7:19 PM IST
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