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झारखंड में धान की फसल में ब्राउन प्लांट हॉपर कीट का प्रकोप, जानिए कृषि वैज्ञानिकों की क्या है राय

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Published : Oct 31, 2020, 12:28 PM IST

झारखंड में धान की खड़ी फसल में ब्राउन प्लांट हॉपर कीट का प्रकोप देखा जा रहा है. इस कीट के प्रकोप की शिकायत बीएयू के कीट वैज्ञानिकों को मिली है. राज्य में सबसे पहले साहिबगंज और गोड्डा जिले में कीट का प्रकोप देखा गया था.

Brown plant hopper pest outbreak in paddy crop in jharkhand
धान की फसल में ब्राउन प्लांट हॉपर कीट का प्रकोप

रांची: बिरसा कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू) के कीट वैज्ञानिकों को राज्य के कई जिलों में धान की खड़ी फसल में ब्राउन प्लांट हॉपर कीट के प्रकोप की शिकायत मिली है. राज्य के दुमका, देवघर, गोड्डा और रामगढ जिलों में कीट का प्रकोप देखे जाने की सूचना है. इस साल कीट का प्रभावी प्रकोप दुमका के सरैयाहाट और गोड्डा के पोड़ैयाहाट प्रखंड में देखा गया है. ब्राउन प्लांट हॉपर इस कीट को स्थानीय भाषा में भनभनिया बीमारी और भूरा मधुआ कीट के नाम से जाना जाता है.

धान फसल में ब्राउन प्लांट हॉपर कीट का प्रकोप

बीएयू के मुख्य वैज्ञानिक सह अध्यक्ष (कीट) डॉ. पीके सिंह ने इस संबंध में बताया कि प्रदेश में संकर किस्मों के धान की खेती प्रचलन काफी बढ़ गई है. इस धान प्रजाति की खेती में किसान रासायनिक उर्वरकों खासकर नाइट्रोजन धारी (यूरिया) उर्वरक के अत्यधिक उपयोग करते हैं. इसकी वजह से खड़ी धान फसल में ब्राउन प्लांट हॉपर कीट के प्रकोप देखने को मिल रहा है. इस कीट के आक्रमण से धान फसल को 70-80 प्रतिशत तक क्षति की संभावना होती है. इससे बचाव के लिए किसानों को रोपाई के समय से ही बचाव के उपाय और जागरूक किया जाना जरूरी है.

6-7 सालों से कई जिलों में प्रकोप

बीएयू के धान फसल कीट विशेषज्ञ डॉ. रविंद्र प्रसाद बताते हैं कि भारत में धान का भूरा मधुआ कीट (ब्राउन प्लांट हॉपर) महत्वपूर्ण हानिकारक कीट है. इसका आक्रमण निचली और मध्यम भूमि वाले धान खेत में अधिक देखा जाता है. झारखंड में यह कीट विगत 6-7 सालों से दस्तक दे रहा है. इसका प्रकोप सबसे पहले साहिबगंज और गोड्डा जिले में देखा गया. कई सालों में इसका प्रकोप हजारीबाग के केरेडारी, रांची के बुंडू और इटकी, सरायकेला, पश्चिमी सिंहभूम, गढ़वा, पलामु और जामताड़ा जिलों में देखा गया.

गोलाकार रूप में कीट का प्रकोप

इस कीट का प्रकोप धान की पत्तियों के नीचे और जड़ के उपर वाले तने में होता है. जहां सैकड़ों की संख्या में माइक्रो आकार आकृति वाले भूरे रंग के फूद्के पौधों के तने पर असंख्य माइक्रो छेद बनाकर पौधे का रस चुसकर पौधे को कमजोर बना देते हैं. जिससे पौधे के डंठल सड़ जाते है और पौधा बौना हो जाता है. कीट से ग्रसित पौधे भूरे और पूआल के रंग के हो जाते हैं. इस कीट का आक्रमण धान के खेतों में गोलाकार आकृति का रूप ले लेता है.

पोटाश उर्वरक के प्रयोग से प्रकोप कम

इससे बचाव के लिए किसानों को धान रोपाई के समय से ही विशेष ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है. खेतों में रासायनिक उर्वरकों के साथ–साथ जैविक उर्वरकों जैसे नीम खल्ली, करंज खल्ली, कंपोस्ट और वर्मी कंपोस्ट का प्रयोग करने से रासायनिक उर्वरकों विशेषकर नाइट्रोजन धारी उर्वरक के उपयोग में कमी लाई जा सकती है. धान की रोपाई में कतार से कतार और पौधों की दूरी बढ़ाकर कीट और रोग की रोकथाम संभव है. वैकल्पिक तरीके से खेतों को सुखाकर और सिंचित करना भी कारगर होगा. प्रदेश के किसान पोटाश उर्वरक का उपयोग हमेशा नहीं करते है. पोटाश उर्वरक के प्रयोग से धान सहित सभी फसलों में कीट रोग के प्रकोप को कम किया जा सकता है.

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धान की खड़ी फसल में रोपाई के 3 सप्ताह के बाद खेतों में 4-5 सेमी. स्थिर पानी रखते हुए फिफ्रोनील नाम के दानेदार कीटनाशी का 20-25 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से फसल पर बिखेरकर रोकथाम की जा सकती है. इसके बावजूद कीट का प्रकोप दिखाई देने पर बूप्रोफेजिन 25 प्रतिशत एससी को 500-750 मिली. प्रति हेक्टेयर की दर से पानी में घोलकर 15 दिनों के अंतराल में दो से तीन बार छिड़काव करना चाहिए.

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