देवघर: पहाड़ पत्थर और प्राकृतिक छटाओं से घिरी है पूरी देवनगरी. कहा जाता है कि देवघर के कण-कण में भगवान विराजते हैं. इतना ही नहीं, देवघर में रावण और शिव से जुड़ी कई कहानियों का जीवंत उदाहरण आज भी देखने को मिल जाता है. इन्हीं में से एक है देवघर से लगभग 17 किलोमीटर दूर स्थित त्रिकुट पर्वत जहां आज भी रावण से जुड़ी कहानियां मौजूद हैं.
आखिर क्यूँ पड़ा इस पर्वत का नाम त्रिकुट
जानकर बताते हैं कि रावण संहिता के अनुसार त्रिकुट पर्वत लंका में है ऐसे कई पर्वत हैं जिसका नाम वहीं के स्थानीय गांव के नाम से जाना जाता है मगर सिर्फ त्रिकुट ही एक ऐसा नाम है जिससे सिर्फ पर्वत को ही जाना जाता है और लंका त्रिकुट पर्वत पर ही बसा था जो सोने से आच्छादित लंका थी. रावण संहिता के अनुसार रावण का वास त्रिकुट पर्वत पर ही था और देवघर-दुमका मुख्य मार्ग पर स्थित त्रिकुट को इसलिए प्रमाणित करता है क्योंकि रावण ही यहां शिवलिंग लेकर आए थे. ऐतिहासिक पृष्टभूमि के अनुसार ही इस पर्वत का नाम त्रिकुट रखा गया था. इसलिए ये मानना है कि रावण इसी त्रिकुट पर्वत पर तप करते थे और अपने आराध्य देव की पूजा करने आते थे.
बहरहाल, देवघर स्थित त्रिकुट पर्वत पर आज भी रावण का उतारा जाने वाला पुष्पक विमान का हेलीपेड, सीता दीप, रावण गुफा जैसे प्रमाण आज भी लोग वहां जाकर देख प्रफुल्लित होते हैं.