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Vijayadashami 2023: झारखंड की धार्मिक-आध्यात्मिक राजधानी देवघर में नहीं होता है रावण दहन, जानिए क्यों

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Oct 24, 2023, 4:41 PM IST

झारखंड की धार्मिक-आध्यात्मिक राजधानी के रूप में प्रसिद्ध देवघर में रावण दहन नहीं होता है. आखिर क्यों यहां के लोग रावण के प्रति “कृतज्ञता” का भाव रखते हैं? जानिए इस रिपोर्ट में. Why Ravana Dahan is not done in Deoghar.

Why Ravana Dahan is not done in Deoghar
Why Ravana Dahan is not done in Deoghar

देवघर: दशहरे पर पूरे देश में जगह-जगह पर रावण और कुंभकर्ण के विशालकाय पुतले जलाए जा रहे हैं, लेकिन झारखंड के देवघर शहर में ऐसे आयोजन को निषिद्ध माना जाता है. देवघर यानी बाबाधाम, झारखंड की धार्मिक-आध्यात्मिक राजधानी के रूप में प्रसिद्ध है, जहां रावण के पुतले नहीं जलाए जाने के पीछे एक खास मान्यता है.

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देवघर में भगवान शंकर के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक कामना महादेव स्थापित हैं, जिनकी ख्याति रावणेश्वर महादेव के रूप में भी है. मान्यता है कि लंकाधिपति रावण इस ज्योतिर्लिंग को लंका ले जा रहे थे, लेकिन परिस्थितियां ऐसी बनी कि इसकी स्थापना देवघर में ही हो गई. ऐसे में इस नगर के लोग रावण के प्रति “कृतज्ञता” का भाव रखते हुए विजयादशमी पर उसके पुतले नहीं जलाते.

देवघर यानी बाबाधाम मंदिर के तीर्थ पुरोहित प्रभाकर शांडिल्य बताते हैं कि ऐसा नहीं है कि इस नगर में रावण को बुराई का प्रतीक नहीं माना जाता, लेकिन हमारी संस्कृति में कृतघ्नता की परंपरा नहीं रही है. अगर किसी शत्रु ने भी जाने-अनजाने हम पर उपकार किया हो तो हम उसकी उस अच्छाई के प्रति आदर भाव रखते हैं.

रावण एक महान शिवभक्त था. वह जब कैलाश से बैद्यनाथ के ज्योतिर्लिंग को लेकर आ रहा था तो भगवान विष्णु द्वारा रची गई माया के चलते उस ज्योतिर्लिंग को देवघर की धरती पर रखना पड़ा और वे यहीं स्थापित हो गए. तब से यह स्थान बाबा नगरी के रूप में विख्यात है. रावण यहां ज्योतिर्लिंग की स्थापना का निमित्त बना, इसलिए यहां उसके पुतले जलाने की परंपरा नहीं है.

प्रभाकर शांडिल्य कहते हैं कि देश-विदेश में रावण का दहन बुराई के प्रतीक के संहार के तौर पर होता है. देवघर के लोग भी इस शाश्वत सत्य को स्वीकार करते हैं, लेकिन इसके बावजूद उसकी शिवभक्ति का हम सम्मान करते हैं. उल्लेखनीय है कि देवघर ज्योतिर्लिंग धाम के साथ-साथ शक्तिपीठ के रूप में भी विख्यात है. मान्यता है कि देवघर में माता सती का हृदय गिरा था. इसलिए यह इकलौता धाम है, जहां शिव और शक्ति की पूजा समान आस्था के साथ होती है.

इनपुट- आईएएनएस

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