हैदराबाद : बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार की छवि कभी भी बहुत अच्छे रणनीतिकार की नहीं रही. क्रिकेट की भाषा में कहा जाए तो उनकी छवि उस मध्यम तेज गति के गेंदबाज की रही, जिसकी ताकत विकेट टू विकेट बॉलिंग करने की रहती है. नीतीश ने बिहार की राजनीतिक पिच पर विकास के स्टंप को साधे रखा है. हालांकि, यह छवि कितनी वास्तविक है और कितनी गढ़ी हुई इस पर विवाद हो सकता है, लेकिन नीतीश की छवि बिहार में 'विकास' पुरुष की रही है. पिछले दस साल से कम समय में नीतीश कुमार ने दो बार यह साबित किया है कि वह केवल 'विकेट टू विकेट बॉलिंग' ही नहीं कर सकते हैं बल्कि समय-समय पर 'आउट स्विंग' और 'इन स्विंग' भी कर सकते हैं.
2014 लोकसभा चुनाव से पहले नीतीश कुमार बीजेपी से अलग होकर महागठबंधन में शामिल हुए थे. 2019 लोकसभा से डेढ़ साल पहले यानी 2017 में नीतीश कुमार महागठबंधन से अलग होकर बीजेपी में शामिल हुए. अब जबकि सभी पार्टियां 2024 की तैयारियों में जुट गई हैं, तो नीताश कुमार ने एक बार फिर राजद (महागठबंधन) की ओर 'इन स्विंग' कर दिया. 2013 में नरेंद्र मोदी के नाम पर नीतीश कुमार ने भाजपा को 'आउट स्विंग' करते हुए उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया था. तब नीतीश ने तत्कालीन डिप्टी सीएम सुशील मोदी समेत भाजपा के सारे मंत्रियों को बर्खास्त कर दिया था. तब नीतीश कुमार को राजद ने बाहर से समर्थन दिया था. सरकार चलती रही. हालांकि, 2014 में मोदी के पीएम बनने पर उन्होंने मुख्यमंत्री पद छोड़ दिया था और जीतनराम मांझी सीएम बने थे. बाद में कुछ मुद्दों पर गलतफहमी के बाद जीतनराम मांझी को इस्तीफा देना पड़ा. 22 फरवरी 2015 को नीतीश कुमार ने चौथी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली.
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2017 में नीतीश RJD के साथ सरकार चला रहे थे. लालू के छोटे बेटे उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव और बड़े बेटे तेजप्रताप कैबिनेट में थे. सावन महीने में नीतीश ने राजद को 'आउट स्विंग' किया और बीजेपी के साथ नई साझेदारी बनाई. तब नीतीश ने राज्यपाल से मिलकर इस्तीफा दे दिया था. ऐसे में मंत्रिमंडल खुद-ब-खुद भंग हो गया था. इसके बाद नीतीश कुमार ने भाजपा के साथ सरकार बनायी. गौरतलब है कि नीतीश को उनके गठबंधन से मोह भंग तभी होता है जब लोकसभा चुनाव आसपास हो. 2014 के लोकसभा चुनाव के पहले उन्होंने 2013 में भाजपा से गठबंधन तोड़ दिया. फिर 2019 के लोकसभा चुनाव से करीब डेढ़ साल पहले 2017 में वह महागठबंधन से अलग हो गये. अब जब भारतीय जनता पार्टी 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारी में लगने लगी थी तो नीतीश ने एक बार फिर उनसे अपना दामन छुड़ा लिया है. और राजद भला इस मौके को हाथ से कैसे जाने देगी. वह नई सरकार में भागीदार बनने के लिए तैयार हो गई है. इस्तीफा देने के बाद नीतीश कुमार ने तेजस्वी से मुलाकात की है.
सात बार सीएम रह चुके हैं नीतीश कुमार : पहली बार 3 मार्च 2000 को बिहार के मुख्यमंत्री बने थे, लेकिन बहुमत नहीं होने के कारण उनको 7 दिन बाद ही 10 मार्च को इस्तीफा देना पड़ा था. 2005 में नीतीश कुमार ने बीजेपी के साथ चुनाव लड़ा और पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई. नीतीश कुमार ने दूसरी बार 24 नवंबर 2005 को बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और अपना कार्यकाल पूरा करते हुए 24 नवंबर 2010 तक सीएम रहे. बिहार की जनता ने 2010 के चुनाव में भी नीतीश कुमार पर भरोसा किया और उन्होंने तीसरी बार 26 नवंबर 2010 को बिहार की बागडोर संभाली.
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हालांकि 2014 में लोकसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन न कर पाने की वजह से 17 मई 2014 को नीतीश कुमार ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया और जेडीयू के जीतनराम मांझी को मुख्यमंत्री बनाया. कुछ मुद्दों पर गलतफहमी के बाद जीतनराम मांझी को इस्तीफा देना पड़ा. 22 फरवरी 2015 को नीतीश कुमार ने चौथी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. वह 19 नवंबर 2015 तक अपने पद पर बने रहे. 2015 के चुनाव में बीजेपी से अलग होने के बाद नीतीश कुमार की पार्टी महागठबंधन का हिस्सा बनी और बहुमत हासिल किया.
चुनाव में जीत के बाद 20 नवंबर 2015 को नीतीश ने पांचवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, लेकिन उन्होंने बीच में ही आरजेडी का साथ छोड़ दिया और 26 जुलाई 2017 को अपने पद से इस्तीफा दे दिया. आरजेडी से अलग होने के बाद नीतीश कुमार एक बार फिर बीजेपी के साथ आ गए. इसके बाद उन्होंने 27 जुलाई 2017 की छठी बार बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और कार्यकाल पूरा किया. 2020 के चुनाव में एनडीए को बहुमत मिला और नई सरकार के गठन से पहले नीतीश ने 13 नवंबर 2020 को राज्यपाल को अपना इस्तीफा सौंप दिया था. 16 नवंबर 2020 को उन्होंने सातवीं बार सीएम पद की शपथ ली थी. आज एक बार फिर से नीतीश कुमार ने इस्तीफा दे दिया है. अब वह एक बार फिर से राजद, कांग्रेस और वाम दलों के सहयोग से आठवीं बार सीएम पद की शपथ लेने के लिए तैयार हैं.