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ETV BHARAT SPECIAL: जानें कैसे सोलन का मानव मंदिर मस्कुलर डिस्ट्रॉफी रोगियों के लिए बन रहा वरदान

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Published : Nov 27, 2019, 3:43 PM IST

मानव मंदिर में न केवल हिमाचल से बल्कि देश के कोने-कोने से रोगी यहां इलाज करवाने आ रहे हैं. यह मानव मंदिर अपनी तरह का भारत का पहला केंद्र है जहां रोगियों को थेरेपी दिए जाने के साथ ही परिजनों और रोगी दोनों को जीवन से संघर्ष करने की प्रेरणा दी जाती है. उन्हें जीने का नया मार्ग दिखाया जाता है.

special story on Manav Mandir of Solan
जानें कैसे सोलन का मानव मंदिर मस्कुलर डिस्ट्रॉफी रोगियों के लिए बन रहा वरदान

सोलन: जिला का मानव मंदिर (Manav Mandir) लोगों के लिए एक वरदान साबित हो रहा है, ये बात हम नहीं कह रहे हैं,ये बात यहां आने वाले हर रोगी के मुंह से सुनी जा सकती है.

special story on Manav Mandir of Solan
मानव मंदिर सोलन

सोलन शहर से 6 किलोमीटर की दूरी पर कोठो गांव में बना ये मानव मंदिर हिमाचल की एक मात्र जगह है जहां आधुनिक तकनीक से मस्कुलर डिस्ट्रॉफी के रोगियों का उपचार किया जा रहा है. भारत के कोने-कोने से लोग यहां आ रहे हैं, खास बात यह है कि ऐसे रोगी भी यहां आ रहे है जो हिम्मत हार चुके हैं.

मस्कुलर डिस्ट्रॉफी से किया जा रहा है रोगियों का उपचार
सोलन में बना मानव मंदिर मस्कुलर डिस्ट्रॉफी (Muscular Dystrophy) के रोगियों को आधुनिक तकनीक के द्वारा उनका उपचार कर रहा है. अच्छी फेसिलिटी देने के साथ-साथ इस मानव मंदिर का वातावरण ऐसा बनाया गया है जिसमें आने वाला हर रोगी अपने आप ही उस वातावरण में ढल जाता है.

special story on Manav Mandir of Solan
मानव मंदिर सोलन

हाइड्रोथेरेपी पूल में रोगियों को दी जा रही हैं थैरेपी
हिमाचल के सोलन में मस्कुलर डिस्ट्रॉफी रोगियों के लिए हाइड्रोथेरेपी पूल का निर्माण भी किया गया है. यह हाइड्रोथेरेपी पूल हिमाचल का पहला पूल है जहां मस्कुलर डिस्ट्रॉफी से प्रभावित रोगियों को हाइड्रो थेरेपी दी जा रही है. खास बात यह है कि इस थेरेपी के लिए रोगियों को या तो दिल्ली जाना पड़ता था या देश के किसी अन्य बड़े शहर में, लेकिन रोगियों को अब यह सुविधा सोलन में ही मिल रही है.

मानव मंदिर में न केवल हिमाचल से बल्कि देश के कोने-कोने से रोगी यहां इलाज करवाने आ रहे हैं. यह मानव मंदिर अपनी तरह का भारत का पहला केंद्र है जहां रोगियों को थेरेपी दिए जाने के साथ ही परिजनों और रोगी दोनों को जीवन से संघर्ष करने की प्रेरणा दी जाती है. उन्हें जीने का नया मार्ग दिखाया जाता है.

बता दें कि दुनिया भर में 3500 बच्चों में से एक बच्चा ड्यूशेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी रोग से ग्रस्त होता है.

special story on Manav Mandir of Solan
मानव मंदिर सोलन

कैसे होती है यह बीमारी
मस्कुलर डिस्ट्रॉफी मासपेशियों के रोगों का एक ऐसा समूह है, जिसमें लगभग 80 प्रकार की बीमारियां शामिल हैं. इस समूह में कई प्रकार के रोग शामिल हैं, लेकिन आज भी सबसे खतरनाक और जानलेवा बीमारी-ड्यूशेन मस्कुलर डिस्ट्राफी (डीएमडी) है.

अगर इस बीमारी का समय रहते इलाज न किया जाए तो ज्यादातर बच्चों की मौत 11 से 21 वर्ष के मध्य हो जाती है, लेकिन डॉक्टरों और अभिभावकों में उत्पन्न जागरूकता ने इनकी जान बचाने और ऐसे बच्चों की जिंदगी बेहतर बनाने में विशेष भूमिका निभाई है. विशेष रूप से स्टेम सेल और बोन मैरो सेल-ट्रांसप्लांट के प्रयोग से इन मरीजों की आयु बढ़ाई जा रही है.

ऐसे होती है पहचान
ड्यूशेन मस्कुलर डिस्ट्राफी सिर्फ लड़कों में ही उजागर होती है और लड़कियां, जीन विकृति होने पर कैरियर (वाहक) का कार्य करती हैं या अपनी संतान को भविष्य में ये बीमारी दे सकती हैं, जबकि लड़कियों में किसी प्रकार के लक्षण उत्पन्न नहीं होते हैं. मस्कुलर डिस्ट्रॉफी यह एक अनुवांशिक बीमारी है, जो खासतौर से बच्चों में होती है. इस बीमारी की वजह से किशोर होते-होते बच्चा पूरी तरह विकलांग हो जाता है.

कैसे होते हैं लक्षण
◆ सीढ़ियां चढ़ने में मुश्किल होती है
◆ पैर की पिंडलिया मोटी हो जाती हैं
◆ पैरों की मांसपेशियों का फूल जाना
◆ शुरू में बच्चा तेज चलने पर गिर जाता है
◆ बच्चा थोड़ा चलने या दौड़ने पर थक जाता है
◆ उठने में घुटने या हाथ का सहारा लेना पड़ता है.

वीडियो.

क्यों है ये रोग गंभीर
चूंकि यह मांसपेशियों का रोग है. इसलिए यह सबसे पहले कूल्हे के आसपास की मांसपेशियों और पैर की पिंडलियों को कमजोर करता है, लेकिन उम्र बढ़ते ही यह कमर और बाजू की मांसपेशियों को भी प्रभावित करना शुरू कर देता है, लेकिन लगभग नौ वर्ष की उम्र के बाद से यह फेफड़े को और हृदय की मांसपेशियों को भी कमजोर करना शुरू कर देता है. नतीजतन, बच्चे की सांस फूलना शुरू हो जाती है और ज्यादातर बच्चों में मृत्यु का कारण हृदय और फेफड़े का फेल हो जाना होता है.

ये भी पढ़ें- ठंड की चपेट में हिमाचल, बारिश से किसानों व बागवानों के खिले चेहरे

Intro:
ETv Bharat ....Solan Special Story on Muscular Dystrophy Patients....सोलन का मानव मंदिर मस्कुलर डिस्ट्रॉफी रोगियों के लिए बन रहा वरदान

सोलन का मानव मन्दिर लोगों के लिए एक वरदान की साबित हो रहा है, ये बात हम नही कह रहे है,ये बात यहां आने वाले हर रोगी के मुह से सुनी जा सकती है। सोलन शहर से 6 किलोमीटर की दूरी पर कोठो गांव में बना ये मानव मन्दिर हिमाचल की एक मात्र जगह है जहां आधुनिक तकनीक से मस्कुलर डिस्ट्रॉफी के रोगियों का उपचार किया जा रहा है। भारत के कोने कोने से लोग यहां आ रहे है, खास बात यह है कि ऐसे रोगी भी यहां आ रहे है जो हिम्मत हार चुके है।


Body:किस तरह से किया जा रहा है मस्कुलर डिस्ट्रॉफी रोगियों का उपचार......
सोलन में बना मानव मन्दिर मस्कुलर डिस्ट्रॉफी के रोगियों को आधुनिक तकनीक के द्वारा उनका उपचार कर रहा है। अछि फेसिलिटी देने के साथ साथ इस मानव मन्दिर का वातावरण ऐसा बनाया गया है जिसमें आने वाला हर रोगी अपने आप ही उस वातावरण में ढल जाता है।

हाइड्रोथेरेपी पूल में रोगियों को दी जा रही हैं थेरैपी......
हिमाचल के सोलन में मस्कुलर डिस्ट्रॉफी रोगियों के लिए हाइड्रोथेरेपी पूल का निर्माण भी किया गया है।. यह हाइड्रोथेरेपी पूल हिमाचल का पहला पूल है जहां मस्कुलर डिस्ट्रॉफी से प्रभावित रोगियों को हाइड्रो थेरेपी दी जा रही है.। खास बात यह है कि इस थेरेपी के लिए रोगियों को या तो दिल्ली जाना पड़ता था या देश के किसी अन्य बड़े शहर में, लेकिन रोगियों को अब यह सुविधा सोलन में ही मिल रही है।

एक मात्र ऐसी जगह जहां रोगियों को जीवन मे सँघर्ष करने की दी जा रही प्रेरणा......
मानव मंदिर में न केवल हिमाचल से बल्कि देश के कोने कोने से रोगी यहां इलाज करवाने आ रहे हैं. यह मानव मंदिर अपनी तरह का भारत का पहला केंद्र है जहां रोगियों को थेरेपी दिए जाने के साथ ही परिजनों और रोगी दोनों को जीवन से संघर्ष करने की प्रेरणा दी जाती है. उन्हें जीने का नया मार्ग दिखाया जाता है।


Conclusion:
साइड स्टोरी.........

दुनिया भर में 3500 बच्चों में से एक बच्चा ड्यूशेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी रोग से ग्रस्त होता है।

कैसे होती है यह बीमारी........
मस्कुलर डिस्ट्रॉफी मासपेशियों के रोगों का एक ऐसा समूह है, जिसमें लगभग 80 प्रकार की बीमारियां शामिल हैं। इस समूह में कई प्रकार के रोग शामिल हैं, लेकिन आज भी सबसे खतरनाक और जानलेवा बीमारी-ड्यूशेन मस्कुलर डिस्ट्राफी (डीएमडी) है। अगर इस बीमारी का समय रहते इलाज न किया जाए तो ज्यादातर बच्चों की मौत 11 से 21 वर्ष के मध्य हो जाती है, लेकिन डॉक्टरों और अभिभावकों में उत्पन्न जागरूकता ने इनकी जान बचाने और ऐसे बच्चों की जिंदगी बेहतर बनाने में विशेष भूमिका निभाई है। विशेष रूप से स्टेम सेल और बोन मैरो सेल-ट्रांसप्लांट के प्रयोग से इन मरीजों की आयु बढ़ाई जा रही है।


ऐसे होती है पहचान.....
ड्यूशेन मस्कुलर डिस्ट्राफी सिर्फ लड़कों में ही उजागर होती है और लड़कियां, जीन विकृति होने पर कैरियर (वाहक) का कार्य करती हैं या अपनी संतान को भविष्य में ये बीमारी दे सकती हैं, जबकि लड़कियों में किसी प्रकार के लक्षण उत्पन्न नहीं होते हैं। मस्कुलर डिस्ट्रॉफी यह एक अनुवांशिक बीमारी है, जो खासतौर से बच्चों में होती है। इस बीमारी की वजह से किशोर होते-होते बच्चा पूरी तरह विकलांग हो जाता है।


कैसे होतेे है लक्षण.....

◆सीढ़ियां चढ़ने में मुश्किल होती है
◆पैर की पिंडलिया मोटी हो जाती हैं
◆पैरों की मांसपेशियों का फूल जाना
◆शुरू में बच्चा तेज चलने पर गिर जाता है
◆बच्चा थोड़ा चलने या दौड़ने पर थक जाता है
◆उठने में घुटने या हाथ का सहारा लेना पड़ता है

क्यों है ये रोग गम्भीर...
चूंकि यह मांसपेशियों का रोग है। इसलिए यह सबसे पहले कूल्हे के आसपास की मांसपेशियों और पैर की पिंडलियों को कमजोर करता है, लेकिन उम्र बढ़ते ही यह कमर और बाजू की मांसपेशियों को भी प्रभावित करना शुरू कर देता है, लेकिन लगभग नौ वर्ष की उम्र के बाद से यह फेफड़े को और हृदय की मांसपेशियों को भी कमजोर करना शुरू कर देता है। नतीजतन, बच्चे की सांस फूलना शुरू हो जाती है और ज्यादातर बच्चों में मृत्यु का कारण हृदय और फेफड़े का फेल हो जाना होता है।


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