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सिरमौर की महिलाएं बन रहीं आत्मनिर्भर, इस काम से प्रतिमाह कर रहीं इतनी कमाई

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Published : Apr 4, 2023, 6:12 PM IST

सिरमौर की आधी आबादी बन रही आत्मनिर्भर.
सिरमौर की आधी आबादी बन रही आत्मनिर्भर.

देश की आधी आबादी महिलाएं अब आत्मनिर्भर बन रही हैं. महिलाएं स्वयंसेवी संस्थाओं के साथ जुड़ कर रोजगार मुखी हो रही हैं. हिमाचल प्रदेश के जिला सिरमौर की महिलाएं भी आत्मनिर्भर बन अपने परिवार का भरण पोषण कर रही हैं. पढ़ें पूरी खबर...

सिरमौर की आधी आबादी बन रही आत्मनिर्भर.

नाहन: भारत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सपना 'आत्मनिर्भर भारत' और 'लोकल फॉर वोकल' का सपना साकार होता नजर आ रहा है. देश के साथ हिमाचल प्रदेश के युवा और महिलाएं आत्मनिर्भर बन रही हैं. जिससे वे परिवार का भरण पोषण कर रही हैं. जिला सिरमौर की बात की जाए तो यहां पर धारटीधार क्षेत्र के कसोगा गांव की महिलाएं दोना-पत्तल बनाकर अपनी जिंदगी संवार रही हैं. इन महिलाओं द्वारा तैयार किए गए दोना-पत्तल की शादी सहित अन्य सरकारी व गैर सरकारी कार्यक्रमों में काफी डिमांड है. इस कारण ग्रामीण महिलाओं को अच्छी आमदनी भी हो रही है.

साथ ही वह घरद्वार के समीप स्वावलंबी बनकर प्रत्येक महीने हजारों रुपये की कमाई कर अन्यों के लिए उदाहरण भी प्रस्तुत कर रही हैं. दरअसल कसोगा गांव की ला शक्ति स्वयं सहायता समूह से जुड़ी करीब 15 महिलाओं को राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत दोना-पत्तल बनाने की मशीन जिला प्रशासन की ओर से प्रदान की गई थी. इसको लेकर महिलाओं को प्रशिक्षित भी किया गया. हालांकि कोरोना काल में महिलाओं के कारोबार पर काफी असर पड़ा, लेकिन अब एक बार फिर इनके कारोबार ने रफ्तार पकड़ ली है. प्रतिदिन महिलाएं काफी संख्या में दोना-पत्तल तैयार कर रही हैं. जिले के कई समारोह से इन महिलाओं को आर्डर मिल रहे हैं.

सिरमौर के धारटीधार क्षेत्र के कसोगा गांव की महिलाएं दोना-पत्तल बनाकर अपनी जिंदगी संवार रही हैं.
सिरमौर के धारटीधार क्षेत्र के कसोगा गांव की महिलाएं दोना-पत्तल बनाकर अपनी जिंदगी संवार रही हैं.

पहले करती हैं जंगल से मालझन के पत्ते एकत्रित- दोना-पत्तल में इस्तेमाल होने वाले हरे पत्ते मालझन नामक पेड़ के होते हैं. जंगल से महिलाएं इन पत्तों को एकत्रित करती हैं और फिर इन्हीं पत्तों से मशीन के माध्यम से दोना-पत्तल बनाती है. यही नहीं अब महिलाओं ने अपने घरों के समीप भी मालझन को उगाना शुरू कर दिया है, ताकि घर के समीप ही उन्हें यह पत्ते आसानी से मिल सके. सभी महिलाएं एकत्रित होकर यह कार्य करती हैं. पिछले करीब 5 वर्षों से महिलाएं यह कार्य कर रही हैं, जिससे वह आत्मनिर्भरता की तरफ अग्रसर है.

दोना-पत्तल बनाकर सिरमौर की आधी आबादी बन रही आत्मनिर्भर.
दोना-पत्तल बनाकर सिरमौर की आधी आबादी बन रही आत्मनिर्भर.

क्या कहती हैं समूह की अध्यक्ष?- ला शक्ति स्वयं सहायता समूह कसोगा की अध्यक्ष संतोष देवी ने बताया कि वह पिछले करीब 5 वर्षों से यह कार्य कर रही हैं. समूह से 15 महिलाएं जुड़ी है. सभी आपसी सहयोग से दोना पत्तल बनाकर अच्छी आय कमा रही हैं. वे प्रति माह 30 हजार रुपए अर्जित कर रही हैं. जिला भर में बहुत से समारोह में दोना-पत्तल की सप्लाई हो रही है.

दोना-पत्तल बनाने की मशीन.
दोना-पत्तल बनाने की मशीन.

'प्रशिक्षण के बाद बढ़ा था हौसला'- समूह की सदस्य रंजीता ने बताया कि राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत उन्हें दोना-पत्तल बनाने का प्रशिक्षण दिया गया था. साथ ही उन्हें मशीन भी उपलब्ध करवाई गई. हौसला बढ़ा, तो काम करना शुरू किया. अब सभी मिलकर आमदनी को बढ़ाने की दिशा में काम कर रही हैं.

दोना-पत्तल बनाने के लिए इस्तेमाल होते हैं मालझन नामक पेड़ के पत्ते.
दोना-पत्तल बनाने के लिए इस्तेमाल होते हैं मालझन नामक पेड़ के पत्ते.

'कई समारोह से मिल रहे ऑर्डर'- समूह की सदस्य संतोष कुमारी बताती हैं कि कई समारोहों से उन्हें ऑर्डर मिलते हैं और उनकी बनाई दोना-पत्तल को काफी सराहा भी जाता है. आय में तो बढ़ोतरी हो ही रही है. साथ में वह इस कार्य से भी बहुत खुश हैं, क्योंकि घर द्वार के समीप ही काम मिल रहा है. कुल मिलाकर आधुनिकता के इस दौर में इन महिलाओं की दोना-पत्तल जिला सिरमौर में लोकप्रिय हो रहे हैं, तो वहीं यह आर्थिक रूप से भी सुदृढ़ बन रही है. इसके साथ-साथ पर्यावरण, स्वास्थ्य व गुणवत्तापूर्ण पात्रों के लिए भी यह दोना-पत्तल लाभदायक है.

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